लगभग सत्ताईस साल पहले छोटी चचेरी बहन की शादी जगाधरी में हुई थी । ज़ाहिर है की वहांआना-जाना लगा ही रहता है । जगाधरी के पास में ही है एतिहासिक गुरुद्वारा पांवटा साहब । यूं तो यह जगह हिमाचल के सिरमौर में है मगर जगाधरी के बेहद पास है अत: जब भी वहां जाता हूं, पांवटा साहब जाना नहीं भूलता। सिख धर्म से नज़दीकियां बचपन से ही महसूस करता हूं। अब पांवटा साहब तो वह जगह ही है जहां दसवें गुरु गोविंद सिंह ने अपनी अधिकांश रचनाएं लिखीं तो पांवटा के नज़दीक आकर भला कोई कैसे वहां नहीं जाएगा। यही वह स्थान है जहां गुरु गोविंद सिंह अपना कवि दरबार लगाते थे और लगभग साढ़े चार साल यहां रह कर ही उन्होंने अपने उस साहित्यकर्म को सम्पूर्ण किया जिससे करोड़ों लोग आज भी मार्गदर्शन पाते हैं। हाल ही में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कहा कि गुरु गोविंद सिंह जी ने भी रामायण लिखी थी और उसका नाम था-गोविंद रामायण, तभी से मन बेचैन है। गुरु गोविंद सिंह की रचनाकर्म स्थली पांवटा साहब इतनी बार होकर आने के बावजूद यह बात भला मुझे आज तक क्यों नहीं पता चली? मुझे तो अब तक बस इतनी ही ख़बर थी कि दशम गुरु ने आदि ग्रंथ को पूर्ण करने के अतिरिक्त चण्डी चरित्र, अकाल उस्तत, खालसा महिमा, जफर नामा और अपनी जीवनी बिचित्र नाटक ही लिखी थी ।
संत सिपाही के इस लौकिक जीवन में आतातायीयों से लड़ते हुए इससे अधिक लिखने का समय ही उन्हें कहां मिला? पांवटा के प्रवास के अतिरिक्त तो शायद फिर कभी वे लिख भी न पाये होंगे, फिर ये गोविंद रामायण कहां से अवतरित हो गई? जहां तक मेरी जानकारी है कि गुरु गोविंद सिंह ने अपने पूरे लेखन में अकाल पुरुष के अतिरिक्त किसी संसारिक व्यक्ति या अवतार का गुणगान नहीं किया। राम-कृष्ण और तमाम अन्य देवी देवता भी उनके रचनाकर्म में कहीं नहीं हैं, फिर उनके द्वारा रामायण लिखने वाली बात किसके दिमाग की उपज है? क्या ऐसा तो नहीं यह भी हमारे मोदी जी की दिमागी खलिश हो क्योंकि इतिहास सम्बंधी ऐसी ऊलजलूल जानकरियां तो वही खोज कर लाते हैं। कबीर दास की जयंती पर वे कहते हैं कि कबीर, गुरु नानक और गुरु गोरख नाथ एक साथ बैठ कर धर्म चर्चा करते थे। जबकि एतिहासिक तथ्य यह है कि तीनो महापुरुषों के जन्मों में सैंकड़ों साल का अंतर है। कभी मोदी जी तक्शिला को बिहार में बताते हैं तो कभी कहते हैं कि सिकंदर को बिहारियों ने मार कर भगाया था। चंद्रगुप्त मोर्या इन्हें गुप्त काल के राजा लगते हैं और श्यामा प्रसाद मुखर्जी गुजराती। स्वामी विवेकानंद और श्यामा प्रसाद मुखर्जी को वे समकालीन बताते हैं तो भगत सिंह के बारे में भी वे हवा हवाई दावे करते हैं।
स्वतंत्रता आंदोलन और पंडित नेहरु के बारे में उनकी अनोखी जानकरियों से तो संसद भी रूबरू हो चुकी है। सवाल यह है कि क्या मोदी जी कि एतिहासिक जानकरियां वाकई बेहद कमजोर हैं या वे जानबूझकर कर ऐसा करते हैं। माना नेहरू और स्वतंत्रता आंदोलन सम्बंधी उनके दावे राजनीतिक उद्देश्य से व्यक्त किए जाते हों मगर चंद्रगुप्त मौर्य, सिकंदर, संत कबीर और अब गुरु गोविंद सिंह के बारे में तथ्यहीन बातें उन्होंने क्यों कही? कहीं ऐसा तो नहीं कि इतिहास को नये सिरे से परिभाषित किया जा रहा हो और इस नए इतिहास में बस सब कुछ वही होगा जो वर्तमान राजनीति के माफिकहो। कुछ राजनीतिज्ञ चाहते हैं कि जो वह चाहते है वही सब लोग स्वीकार करें। यही हाल इतिहास में फेरबदल का है, जहां अपने मन माफिक हो रहा है। इतिहास में राजनीति से प्रेरित होकर बदलाव करने का प्रयास किया जा रहा है। अब बिहारियों को यह बताने का क्या फ़ायदा कि सिकंदर पाकिस्तान के कब्जे वाले पंजाब से ही वापस लौट गया था। वोट की खातिर कबीर पंथियों को गुदगुदाना हो तो उन्हें बताना ही पड़ेगा कि बाबा नानक और गुरु गोरखनाथ भी तुम्हारे गुरु के पास आते थे। शायद अब इसी तरह राम भक्तों और मंदिर आंदोलन से सिखों को जोडऩे को गोविंद रामायण की बात उछाली गई। अब इतना बड़ा आदमी जो कहेगा वह प्रामाणिक तो मानना पड़ेगा।
राकेश शर्मा
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)