असहनशीलता चरम पर

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मौजूदा दौर में भारत का या हाल हो गया है, ये घटना उसकी एक मिसाल है। यहां सााधारी दल की विचारधारा कोई अलग राय या समझ रखना लगातार जोखिम भरा होता जा रहा है। वरना ऐसा नहीं होता कि आभूषणों की एक कंपनी को अंतरधार्मिक सौहार्द दिखाने वाले एक विज्ञापन को हटा लेना पड़ता। ऐसा उसने विज्ञापन के खिलाफ सोशल मीडिया पर विरोध के बाद किया। जाहिर है, इस घटना से अंतर-धार्मिक रिश्तों के खिलाफ बढ़ती असहिष्णुता को लेकर बहस छिड़ गई है।

विज्ञापन में एक मुस्लिम परिवार को अपनी हिंदू बहू के लिए गोद-भराई की रस्म आयोजित करते हुए दिखाया गया था। वीडियो के अंत में बहू अपनी सास से कहती है- पर यह रस्म तो आपके घर में होती भी नहीं है ना? उस पर उसकी सास का जवाब था- पर बिटिया को खुश रखने की रस्म तो हर घर में होती है ना। सोशल मीडिया पर कई लोगों ने इस विज्ञापन की आलोचना की। आरोप लगाया कि यह लव-जिहाद को बढ़ावा देता है। लव-जिहाद मुस्लिम-विरोधी विचारधारा वाले कुछ लोगों द्वारा इजाद किया गया शब्द है, जिससे वो लोग अंतर-धार्मिक विवाहों को निशाना बनाते हैं।

उनका आरोप है कि मुस्लिम पुरुष एक षडयंत्र के तहत हिंदू महिलाओं को अपने प्रेम में फंसा कर उनसे विवाह करते हैं। विज्ञापन का विरोध करने वालों ने ट्विटर पर विज्ञापन के खिलाफ बॉयकॉट तनिष्क नाम का हैशटैग ट्रेंड करवाया, जिसके तहत बड़ी संख्या में ट्वीट किए गए। तब इस आभूषण कंपनी तनिष्क ने अब इस विज्ञापन को अपने यूट्यूब चैनल से हटा लिया। टाटा समूह की इस कंपनी ने इस मामले में कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। ट्विटर पर कई जाने माने लोगों ने विज्ञापन की सराहना की और उसका विरोध करने वालों की निंदा की। उन लोगों ने विज्ञापन के कथित रूप से हटाए जाने पर अफसोस व्यक्त किया। कांग्रेस पार्टी के सांसद शशि थरूर ने एक ट्वीट में कहा कि इन लोगों को अगर हिंदू-मुस्लिम एकता से इतनी ही तकलीफ है, तो वो देश का ही बॉयकॉट यों नहीं कर देते, योंकि खुद भारत हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक रहा है। दरअसल, इससे पहले भी ऐसा कई विज्ञापनों के साथ हो चुका है।

उनमें से कुछ को इसी विज्ञापन की तरह हटा लिया गया था, लेकिन कुछ कंपनियों ने विरोध के बावजूद अपने विज्ञापनों को जारी रखा। जाहिर है, टाटा समूह साहस नहीं दिखा सका और उसने विज्ञापन हटा लिया। सोशल मीडिया बेलगाम तो पहले से ही है और शायद इसी वजह से ताकतवर हो चला है। पगलाया बिना नकेल का सांड जितना खतरनाक होता है उससे कहीं ज्यादा ये घातक हो चला है। महिलाओं का मामला ही देख लीजिए-सोशल मीडिया स्त्रियों के लिए एक प्रतिकूल जगह है, ऐसी शिकायतें पहले भी आई थीं। अब एक ताजा सर्वे से यह सामने आया है कि ऑनलाइन दुव्र्यवहार और उत्पीडऩ के कारण लड़कियां सोशल मीडिया छोडऩे को मजबूर हो रही हैं।

इसमें 15-25 वर्ष उम्र की 14,000 लड़कियों को शामिल किया गया। अध्ययन में पाया गया कि इस तरह के हमलों के कारण हर पांच लड़कियों में से एक ने सोशल मीडिया साइट का इस्तेमाल क्या तो बंद कर दिया या फिर सीमित कर दिया। 22 फीसदी लड़कियों ने कहा कि वे या फिर उनकी दोस्तों को शारीरिक हमले का भय था। सर्वे में शामिल लड़कियों ने बताया कि सोशल मीडिया पर हमले के सबसे सामान्य तरीके में अपमानजनक भाषा और गाली शामिल है। 41 फीसदी लड़कियों ने कहा कि बॉडी शेमिंग और यौन हिंसा की धमकियां उन्हें झेलनी पड़ीं।

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