अर्थ व्यवस्था सुधरने के संकेत

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केंद्र सरकार देश की आर्थिक स्थिति को ठीक करने के लिए पूरी कोशिश कर रही है। अनेक पैकेज व सुविधाएं देने के बाद अर्थव्यवस्था में सुधार दिखाई दे रहा है। यह सुधार कोरोना काल में केंद्र सरकार द्वारा दिये गये रियायतों और पैकेज के कारण हुआ है। रियायतों व पैकेज का लाभ अब आम जनता तक पहुंचता दिखाई दे रहा है। वहीं औद्योगिक जगत को भी पर्याप्त लाभ मिला है। केंद्र सरकार ने हालांकि जीएसटी के दरों में कोई परिवर्तन नहीं किया है परंतु कोरोबारियों की परिस्थिति को देखते हुए राहत प्रदान की है। निर्मला सीतारमण ने जुर्माने व याज की दरों में कटौती की घोषणा की है। आर्थिक क्षेत्र में एक सुखद स्थिति यह भी सामने आई है कि देश का विदेशी मुद्रा भंडार साठ हजार करोड़ रुपये से बढ़कर 37.62 लाख करोड़ हो गया है। मई के अंतिम सप्ताह के दौरान लगभग 344 करोड़ रुपये की बढ़ोारी हुई। योरोपीय बाजारों में आई तेजी ने शेयर बाजार की गिरावट को थाम लिया। देश के प्रमुख शेयर बाजार बढ़त के साथ मंद हुए। सेंसेक्ट पैक में महिंद्रा एण्ड महिंद्रा के शेयरों में सात प्रतिशत उछाल दिखाई दिया।

बजाज फाइनेंस, हीरो मोटोकार्प, रिलायन्स, टाइटन और बजाज आटो के शेयर तेजी के साथ बंद हुए। भारत की शेयर बाजार में उत्साहवर्धक स्थिति है। परंतु एशिया के अन्य बाजारों में गिरावट का रुख रहा। ऐसी स्थिति निश्चित रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सुखद है। परंतु यूचुअल फंड के क्षेत्र में निराशाजनक स्थिति देखी गई। कोरोना के चलते यूचुअल फंड में होने वाले निवेश में भारी गिरावट दर्ज की गई। पिछले महीने यह ग्यारह महीने के निचले स्तर पर रहा। परंतु विशेषज्ञ इस क्षेत्र में भी सुधार की आशा व्यक्त कर रहे हैं। उनका मानना है कि जैसे-जैसे स्थिति सुधरेगी वैसे-वैसे इस क्षेत्र में भी निवेश के मामले में सुधार आएगा। उधर सोने की कीमतों में भी बढ़त है। यह अच्छे वैश्विक संकेतों के कारण हुआ है। भारतीय अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने का सुखद संकेत है तो दूसरी तरफ सरकार को धन जुटाने के लिए कठिन प्रयास करने पड़ रहे हैं। लोकदल ने आरोप लगाया है कि केंद्र व राज्य सरकारें ब्रांड व ड्राफ्ट के जरिए भारी मात्रा में धन जुटा रही हैं । इस तरह धन जुटाने के अपने अलग सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव होते हैं। इनका प्रभाव अर्थव्यवस्था पर दूरगामी रूप से पड़ता है। उधर केंद्र सरकार ने राजस्व संग्रह का सर्वाधिक बोझ पेट्रोलियम उत्पादों पर डाल रखा है।

उसके इस कदम के चलते आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ रहा है। पेट्रोलियम उत्पादों के मूल्यों में वृद्धि को लेकर केंद्र सरकार विपक्ष के निशाने पर हैं। वैश्विक बाजार में पेट्रोलियम पदार्थों के दामों मे पिछले कई माह से भारी गिरावट देखने को मिल रही है। इसके बावजूद देश में डीजल व पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोारी लगातार हो रही है। जब क्रूड आयल की अन्तर्राष्ट्रीय कीमतें काफी कम हुई तो भी आम जनता को कोई फायदा नहीं मिला इसका मूल कारण यह है कि कोरोना संक्रमण के कारण केंद्र व राज्य सरकारों के राजस्व संग्रह में कमी आई। इसकी प्रतिपूर्ति पेट्रोलियम क्षेत्र से की जा रही है। मई माह में सरकार ने पेट्रोल व डीजल पर तीन रुपये प्रति लीटर के हिसाब से कर लगाया था। केंद्र सरकार के इस कदम के साथ ही कई राज्यों ने इस क्षेत्र पर लगाए जाने वाले शुल्क में बढ़ोारी कर दी थी। पेट्रोलियम क्षेत्र की कीमतों का असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। इससे उपभोक्ता वस्तुओं के दाम बढ़ जाते हैं। देश में महंगाई भी बढ़ती है। अत: केंद्र व राज्य सरकारों को राजस्व वृद्धि के लिए अन्य क्षेत्रों पर भी ध्यान देना होगा। अगर पेट्रोलियम क्षेत्र में मूल्य की कमी होगी तो महंगाई पर भी लगाम लगेगी। आम जनता को काफी राहत मिलेगी।

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