देश की अर्थव्यवस्था में जो नित-नए हालात बन-बिगड़ रहे हैं, वे कभी खुशी, कभी गम जैसे हैं। यह इसलिए कि सरकार बार-बार उम्मीद बंधाती है और विपक्ष समेत दूसरी मूल्यांकन एजेंसियां सवाल खड़े करती हैं। ढांचागत सुधार के दौर में बहुत कुछ छूट और टूट रहा है यह सच है। हालांकि तात्कालिक तौर पर जब लोगों के हाथों से काम छिनता है तब वे भविष्य के वादे पर रोजमर्रा के सवालों का इंतजार नहीं कर सकते। कई बड़े संस्थानों में छंटनी से जुड़े मामले कुछ इसी तरह के हैं। उनके यहां नए आर्थिक परिवेश के मुताबिक चीजें जब तय हो रही हैं, तब पुराने ढर्रे नेपथ्य में जा रहे हैं। इसका यह मतलब कतई नहीं कि उन्हें आगे चलकर बोन्साई हो जाना है। विस्तार के तरीके जरूर बदल जाते हैं। यही हर दशक का अपना संगम काल होता है। जो फिट बैठने की चुनौती स्वीकार पाते हैं वे नए सिरे से टिकते हैं। आर्थिक सुधारों का नरसिंह राव के जमाने की तस्वीर याद करें, मीडिया और बैंकिंग सेक्टर जब कम्पयूटरीकरण से एक नए विस्तार की तैयारी कर रहा था। तब भी कई बेकाम हो रहे थे। आरोप यह भी था कि रोजगार सिकुड़ रहा है लेकिन बाद में उसका बदलाव के साथ खूब विस्तार हुआ। लेकिन जो बदलाव के शिकार होते हैं उनका यह एक बड़ा सवाल है जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती, यह सवाल तब भी था आज भी उठ रहा है।
कोई भी सरकार इस जवाबदारी से मुंह नहीं मोड़ सकती। यह अच्छी बात है कि सरकार आर्थिक सुधारों के क्रम में पहले की तरह आगे भी कदम उठाती रहेगी। देश की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि अर्थव्यवस्था को वैश्विक मानदंड के मुताबिक ढालने की दिशा में आगे बढ़ते रहेंगे। मंदी को लेकर व्यावहारिक और तकनीकी संग्राम छिड़ा हुआ है। आर्थिक जानकार और नेतागण गिरते विकास दर का हवाला देते हुए कह रहे हैं कि देश मंदी की चपेट में है। उत्पादन के क्षेत्र में निगेटिव ग्रोथ है। गावों में डिमांड पैदा नहीं हो रही है। कृषि क्षेत्र पहले से संकट में है। सरकार कॉरपोरेट को मदद कर रही है जिससे सेंसेक्स में तो फौरी उछाल आ सकता है लेकिन लोगों के काम का सृजन नहीं हो सकता। सर्विस सेक्टर में भी बहुत धीमी ग्रोथ है। किसान तबाह हो रहा है। समर्थन मूल्य भी सबको नहीं मिल पाता। लेकिन सरकार नहीं मानती देश में मंदी है। हालांकि ताजा विकास दर 4.7 हो गया है और अभी अगले कुछ तिमाही इसके और नीचे जाने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। वैसे सरकार का मानना है कि हाल में उठाए गए कदमों का असर आगे दिखेगा, थोड़ा इंतजार करने की जरूरत है। वैसे इस बीच एक खबर राहत देने वाली है कि तीन महीने के बाद जीएसटी संग्रह नवंबर में फिर से एक लाख करोड़ रुपये के स्तर को पार कर गया।
नवंबर में जीएसटी संग्रह एक साल पहले इसी माह की तुलना में छह प्रतिशत बढक़र 1.03 लाख करोड़ रुपये रहा। इससे पहले अक्टूबर महीने में जीएसटी संग्रह 95,380 करोड़ रुपये था जबकि पिछले वर्ष नवंबर में 97,637 करोड़ रुपये की वसूली हुई थी। यह रफ्तार आगे भी जारी रही तो जीएसटी का मकसद रंग ला सकता है। हालांकि अभी यह उम्मीद लगा लेना जल्दबाजी होगी। हाल के दिनों में ऑटोमोबाइल सहित मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के आंकड़ों में भारी गिरावट का सामना करना पड़ा है। देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बीते 17 नवंबर को देश की अर्थव्यवस्था पर चिंता जताते हुए कहा कि विकास की दर पिछले 15 सालों के न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुकी है, बेरोजगारी दर 45 वर्षों के उच्चतम स्तर पर है, घरेलू मांग चार दशक के निचले स्तर पर है, बैंक पर बैड लोन का बोझ सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच चुका है, इलेक्ट्रिसिटी की मांग 15 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुकी है, कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था की हालत बेहद गंभीर है। यह बात उन्होंने अंग्रेजी अखबर द हिंदू में अपने एक लेख में कहा है, साथ में यह भी कहा कि यह बात मैं विपक्ष के नेता के रूप में नहीं कह रहा हूं।
देश की आर्थिक विकास दर साढ़े छह साल के निचले स्तर पर पहुंचने, अर्थव्यवस्था से जुड़े तमाम आंकड़ों की स्थिति बदतर होने और बेरोजगारी के आंकड़े चरम पर होने के बीच वित्तमंत्री ने कहा कि जीडीपी दर में भले ही गिरावट आई है। लेकिन यह मंदी नहीं है। राज्यसभा में अर्थव्यवस्था पर चर्चा का जवाब देते हुए निर्मला सीतारमण ने साफ कहा कि अर्थव्यवस्था में थोड़ी सुस्ती है, लेकिन मंदी कभी नहीं रही। वित्तमंत्री ने कहा अगर आप अर्थव्यवस्था को विवेकपूर्ण तरीके से देख रहे हैं तो आप देख सकते हैं कि विकास दर में कमी जरूर आई है, लेकिन अभी तक मंदी का माहौल नहीं है और मंदी कभी नहीं आएगी। सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के मोर्चे पर लगातार मायूसी की खबरों के बीच वस्तु एवं सेवा कर जीएसटी संग्रह पर खुशखबरी आई है। इस बार नवंबर में केंद्रीय जीएसटी से वसूली 19,592 करोड़ रुपये, राज्य जीएसटी से 27,144 करोड़ रुपये, एकीकृत जीएसटी से 49,028 करोड़ रुपये और जीएसटी उपकर से वसूली 7,727 करोड़ रुपये रही। एकीकृत जीएसटी में से 20,948 क रोड़ पये आयात से वसूल हुए।
इसी तरह उपकर यानी सेस की वसूली में 869 करोड़ रुपये आयातित माल पर उपकर से प्राप्त हुए। इससे पहले सितंबर और अक्टूबर महीने में जीएसटी संग्रह में सालाना आधार पर गिरावट आई थी। बयान में कहा गया कि नवंबर में घरेलू लेनदेन पर जीएसटी संग्रह में 12 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। यह इस साल जीएसटी राजस्व में सबसे अच्छी मासिक वृद्धि है। विकास को रफ्तार और लोगों को रोजगार देने के इरादे को लेकर चलाई जा रही योजनाएं आधी-अधूरी होने के चलते बेमकसद साबित हो रही हैं। केंद्रीय योजनाओं का हाल दावों के ठीक उलट है। देश के सबसे बड़े सूबे में प्रधानमंत्री आवास योजना की तस्वीर तो कुछ ऐसी ही है। यूपी के शहरों में पीएम आवास योजना रफ्तार नहीं पकड़ रही है। स्थिति का अंदाजा लगाने के लिए यह आकड़ा पर्याप्त है। 2020 तक 6.10 लाख मकान बनने थे लेकिन अभी के वल 2.42 लाख मकानों की छत पड़ पाई है। इसका यह मतलब हुआ कि 40 फीसदी काम पूरा हुआ है। तिस पर विरोधाभास यह कि प्रदेश सरकार ने 2020-2021 के लिए पीएम आवास ग्रामीण के तहत 5 लाख आवास की मांग केंद्र से की है तो यह योजनाओं का हाल है जहां फंड के बाद भी लक्ष्य अधूरा है। यह एक स्थिति है जो काफी कुछ बताने के लिए पर्याप्त है।
प्रमोद सिंह
(लेगाक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)