अफवाहों पर रोक कौन लगाएगा?

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कुछ दिन पहले सोशल मीडिया में यह अफवाह जोर-शोर से चली थी कि देश के लोगों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सम्मान में दो मिनट के लिए खड़ा होना है। कहा गया कि उन्होंने कोरोना वायरस से लड़ने में जो मेहनत की है, जो साहस और समझदारी दिखाई है उसके लिए उनके प्रति सम्मान प्रदर्शित करना है। यह अफवाह इतनी फैल गई कि खुद प्रधानमंत्री मोदी ने इसका खंडन किया और ट्विट करके कहा कि अगर किसी को उनके प्रति सम्मान दिखाना है तो वह कोरोना वारियर्स के प्रति सम्मान दिखाए। यह सोशल मीडिया की ताकत है, जो अफवाह प्रधानमंत्री के कानों तक पहुंची और यह भी कितनी अच्छी बात है कि खुद प्रधानमंत्री ने तत्काल इसका खंडन करके इस पर विराम लगा दिया।

यह कहानी का एक पहलू है। जिस समय प्रधानमंत्री ने एक अफवाह का खंडन किया, उसके थोड़े दिन पहले ही एक और अफवाह फैली थी। सोशल मीडिया में यह प्रचार हुआ कि दुनिया के तमाम बड़े देशों ने मिल कर कोरोना वायरस से लड़ने के लिए भारत के प्रधानमंत्री को अपना नेता चुना है। कहा गया कि डोनाल्ड ट्रंप, बोरिस जॉनसन, इमैनुएल मैक्रों, एंजेला मर्केल जैसे दुनिया के तमाम बड़े नेताओं ने मोदी को कोरोना से लड़ने की जिम्मेदारी सौंपी है। अफसोस की बात है कि इसका किसी ने खंडन नहीं किया। बाद में आल्ट न्यूज ने इसकी पड़ताल की ओर बताया कि यह फेक न्यूज है। हैरानी की बात है कि इस खबर को भाजपा के कई बड़े नेताओं ने शेयर किया।

अब इस महिमामंडन वाली अफवाहों को यहीं छोड़ें और महाराष्ट्र के पालघर में फैली अफवाह को देखें। उस इलाके में सोशल मीडिया के जरिए अफवाह फैलाई गई थी कि बच्चा चोरों का गिरोह इस इलाके में घूम रहा है। इसी में यह भी कहा जा रहा था कि बच्चा चोरों का यह गिरोह मानव अंगों के कारोबार करने वाला है। इसी अफवाह की वजह से दो साधु और उनका ड्राइवर मारे गए। ये साधु गुजरात के सूरत किसी के अंतिम संस्कार में जा रहे थे। हाईवे पर जब उनको पुलिस ने रोका तो वे हाईवे से नीचे उतर कर गांवों से होते हुए आगे बढ़ने लगे। गांव के लोगों ने लॉकडाउन के समय में एक बाहरी गाड़ी और उसमें बैठे लोगों को देखा तो उन्हें बच्चा चोर समझा और गाड़ी से उतार कर तीन लोगों को पीट-पीट कर मार दिया।

अफवाहें यहां खत्म नहीं होती हैं। उसके बाद यह अफवाह फैली कि मारने वाले दूसरे संप्रदाय के हैं और उन्होंने साधुओं को पहचान कर मारा है। एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें एक व्यक्ति ‘अब बस’ कह रहा है, उसे ट्विस्ट दे दिया गया, कहा गया कि एक व्यक्ति ‘शोएब बस’ कह रहा है। एक नाम की महिमा देखिए कि सारे देश में इसे सांप्रदायिक रंग मिल गया। मुख्यधारा की मीडिया भी इसे इसी रूप में पेश करने लगी। मजबूरी में राज्य सरकार के गृह मंत्री को प्रेस कांफ्रेंस करके कहना पड़ा कि मरने वाले और मारने वाले एक ही धर्म के हैं। उन्हें गिरफ्तार किए गए सभी एक सौ से ज्यादा लोगों के नाम जारी करने पड़े, ताकि अफवाह फैलाने वालों को यकीन दिलाया जा सके कि मारने वालों में कोई दूसरे धर्म या संप्रदाय का नहीं है।

सवाल है कि क्या पालघर की घटना सोशल मीडिया के जरिए अफवाह फैलाने और मॉब लिंचिंग के अखिल भारतीय प्रयोग का हिस्सा है? याद रहे कि बिल्कुल इसी तरह की घटना झारखंड के जमशेदपुर में भी हुई थी। वहां भी बच्चा चोरों के घूमने की अफवाह फैली थी और एक समूह ने पांच लोगों को घेर कर मार दिया था। उसमें मरने वाले और मारने वाले दोनों अलग अलग संप्रदाय के लोग थे। हैरानी की बात है कि ऐसी अफवाहों के समय न तो जमशेदपुर में कोई बच्चा चोरी हुआ था और न पालघर में किसी बच्चे के चोरी होने की रिपोर्ट के बारे में कुछ पता है। फिर भी इस मीडियम का इस्तेमाल करने वालों में इतनी ताकत है कि वे लोगों को भीड़ में बदल कर उससे हत्या करवा सकते हैं।

सो, यह बहुत गंभीर मसला है और इसलिए अफवाहों को रोकने का जिम्मा तकनीक मुहैया कराने वाली कंपनियों के सहारे नहीं छोड़ा जा सकता है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अपनी तरफ से कुछ कुछ प्रयास कर रहे हैं। पोस्ट शेयरिंग को लेकर नियम बदले गए हैं। वायरल हो रहे पोस्ट को नियंत्रित करने के भी उपाय हुए हैं। पर इस बात को गंभीरता से समझना होगा कि यह कोई तकनीकी समस्या नहीं है। यह एक राजनीतिक और सामाजिक समस्या है और राजनीतिक नेतृत्व को ही आगे बढ़ कर इसे संभालना होगा।

यह भी समझना होगा कि इस तरह की अफवाहें दोधारी तलवार की तरह हैं। महाराष्ट्र के पालघर में हुई मॉब लिंचिंग को सांप्रदायिक रंग