अदनान पर फिजूल का घमासान

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पाकिस्तानी मूल के जाने-माने कलाकार अदनान सामी को पदमश्री मिला नहीं कि तब से सोशल मीडिया में लोगों ने सरकार के इस कदम की आलोचना करनी शुरू कर दी है। एक जाना-माना कलाकार होने के बावजूद उनके दिवंगत पिता के कारण आलोचक उन्हें अपना निशाना बना रहे हैं। उन्हें पाकिस्तानी होने के बावजूद भाजपा की मोदी सरकार द्वारा सम्मानित किए जाने की आलोचना है। उनके पिता वहां के वायुसेना में फाइटर विमान चालक थे। उन्होंने तीन राष्ट्रपतियों व चार प्रधानमंत्रियों के एडीसी के रूप में काम किया और वे वहां की विदेश सेवा में शामिल होकर फिर राजनयिक बने। अदनान सामी भारत व पाकिस्तान के जाने-माने गायक, संगीतकार संगीत निर्देशक पियानो बजाने वाले कलाकार हैं। उन्होंने भारतीय फिल्मों में पाश्चात्य संगीत दिया हैं। उन्होंने पियानो व संतूर पर भारतीय शास्त्रीय संगीत बनाकर एक अलग स्थान प्राप्त किया।

उनका जन्म 15 अगस्त 1971 को लंदन में हुआ था जहां उनके पिता अरशद सामी खान राजदूत थे व वो पहले पाक वायुसेना में रह चुके थे। उनकी मां नौरीन जम्मू कश्मीर की रहने वाली थी। उनके पिता ने पाकिस्तानी वायुसेना में ही काम किया था व भारत के खिलाफ 1965 के युद्ध में हिस्सा लिया था। बाद में वे वहां की सरकार के काफी करीब आ गए व 14 देशों में राजदूत रहे। उनके नाना जनरल अहमद जान अफगानिस्तान के थे व उनके शासको के सैन्य सलाहकार रहे थे। उन्होंने लंदन से कानून की शिक्षा हासिल की थी। वे भारत दशको पहले ही वीजा हासिल करके आने लगे थे। अपने पिता के मुद्दे पर अदनान सामी का कहना है कि उनके पिता ने क्या किया यह उनके निजी जीवन का व्यक्तिगत विकल्प था। उनके जन्म के पहले ही उनके पिता ने पाक वायुसेना छोड़ दी थी।

कहते हैं कि उन्होंने भारत के खिलाफ 1965 व 1971 के युद्धों में हिस्सा लिया था व भारत के एक लड़ाकू विमान 15 टैंक व 12 वाहनो को नष्ट किया था। ज़ुल्फि़कार अली भुट्टो ने उन्हें विदेश सेवा में शामिल करवाया था। उनको पाक सरकार का तीसरा सर्वोच्च नागरिक पुरुस्कार सितारा-ए- इम्तियाज से सम्मानित किया गया। उन्होंने महज पांच साल की उम्र में पियानो बजाना सीखना शुरू कर दिया और जब वे नौ साल के हुए तो उन्हें जाने-माने संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा से स्कूल की छुट्टियो में शिक्षा लेनी शुरू कर दी। लंदन में आरडी बर्मन के एक समारोह में आशा भोसले की उनसे मुलाकात हुई व इस 10 के बच्चे को उन्होंने संगीत में अपना कैरियर बनाने की सलाह दी। उन्होंने बहुत जल्दी शोहरत हासिल कर ली व यूनीसेफ ने उन्हें सूखे से प्रभावित लोगों के लिए एक संगीत धुन बनाने को कहा जो बहुत लोकप्रिय हुई व उन्हें इसके लिए अवार्ड भी मिला।

इस 49 वर्षीय कलाकार ने दर्जनों देशी-विदेशी अवार्ड जीते हैं। उन्होंने 1995 में पाकिस्तानी फिल्म सरगम में संगीत लिखा व गायिका आशा भोसले ने इस फिल्म में गाना गया था जोकि बहुत लोकप्रिय हुआ। उसमें सामी ने अभिनय भी किया व उसके गीत के एलबम की बिक्री ने भारत व पाकिस्तान में बिक्री के सारे रिकार्ड तोड़ दिए। बाद में 2000 में आशा भोसले ने सामी के साथ मिलकर कभी तो नजर मिलाओ एलबम तैयार किया। इसके संगीत निर्देशक सामी ही थे व उसके 40 लाख रिकार्ड भारत में ही बिके। उनका एलबम मुझको भी लिफ्ट करा दो बहुत लोकप्रिय हुआ। उन्होंने बोनी कपूर, यश चौपड़ा, सुभाष घई जैसे जाने-माने निर्देशको की फिल्मो में संगीत दिया। पेप्सी फूड्स ने उन्हें 2002 में भारत में अपना ब्रांड एंबेसडर बनया। पाकिस्तानी अखबार डॉन के मुताबिक आज तक किसी भी पाकिस्तानी कलाकार को भारत में इतना मान-सम्मान नहीं मिला था।

उनके एलबमो में रानी मुखर्जी, अमिताभ बच्चन, महिमा चौधरी ने गाने गए। साथिया फिल्म में उन्होंने एआर रहमान के साथ काम किया। उन्होंने तमिल फिल्मो में भी गीत गए। अचानक 2005 में उनके पैर के घुटने में सूजन आ गई व लिफोईडीया हो गया। इसके कारण उन्हें बहुत परेशानी हुई। उनका वजन काफी बढऩे लगा। वे काफी मोटे हो गए। वे बताते हैं कि जून 2006 में उनका वजन 230 किलोग्राम हो गया था व डाक्टर ने उन्हें आगाह किया था कि अगर यहीं रहा तो वे केवल छह माह तक ही जीवित रह पाएंगे। उन्होंने कसरत करके व खाने पर नियंत्रण करके 16 महीनों में अपना वजन 167 किलोग्राम घटा लिया। उन्होंने 2003 के विश्व क्रिकेट कप के दौरान भारत के लिए गीत लिखे। उन्होंने विश्व स्तर पर सेटेलाइट के जरिए अपने गीत प्रस्तुत किए।

विवेक सक्सेना
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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