एक दिन में वैश्विक स्तर पर दो घटनाएं विश्व में तेजी से बदल रहे शति संतुलन को बयां कर रही है। अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने ऑकस समझौता किया है, जिसे चीन के विस्तारवाद के खिलाफ महागठबंधन माना जा रहा है, तो भारत ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की शिखर बैठक में वैश्विक शांति व विकास में बाधक कट्टरवाद और अतिवाद के खिलाफ श्लोबल ताकतों को चेताया है। ऑकस समझौता वाड शिखर समेलन से ठीक पहले हुआ है। वाड में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया है। वाड और ऑकस को चीन अपने खिलाफ वैश्विक गठबंधन मान रहा है। दरअसल, नए त्रिपक्षीय सुरक्षा गठबंधन ऑकस चीनी दादागिरी के खिलाफ शंखनाद माना जा सकता है। अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने ड्रेगन पर नकेल कसने के लिए एक नए एंग्लो सैन्य गठबंधन का निर्माण किया है। इसके साथ ही अब दुनिया में एक और सैन्य गठबंधन की शुरुआत हो गई है। अमेरिका ने रूस पर लगाम लगाने के लिए नाटो का निर्माण किया था और बदली हुई परिस्थिति में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन अमेरिका का सबसे बड़ा शत्रु हो गया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इसी चीनी खतरे से निपटने के लिए अब बाइडन ने अफगानिस्तान से अपनी सेना को हटाया है। अमेरिकी राष्ट्रपति का अब पूरा फोकस चीन हो गया है। भारत ने भी कट्टरता और अतिवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए एससीओ से एक साझा खाका विकसित करने का आह्वान किया और शांति, सुरक्षा व विश्वास की कमी को इस क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती करार देते हुए कहा कि इन समस्याओं के मूल में कट्टरपंथी विचारधारा ही है। एससीओ मैं चीन व पाकिस्तान भी है। अफगानिस्तान में आतंकी गुट तालिबान के सत्ता में आने के बाद से जिस तरह पाक व चीन तालिबान हुकूमत से गठजोड़ कर रहा है, उससे मध्य एशिया में आतंकवाद व इस्लामिक कट्टरवाद के बदने का खतरा मंडराने लगा है। अफगानिस्तान में तालिबान के जरिये अपनी पैठ मजबूत करने में जुटे पाकिस्तान और चीन की आतंकवाद व इस्लामिक कट्टरता के प्रति अनदेखी से एशिया में शांति व विकास के प्रयासों को झटका लग सकता है। हमेशा भारत के खिलाफ षड्यंत्र रचने वाले पाकिस्तान के तालिबान से जुडऩे से कश्मीर समेत सीमावर्ती क्षेत्र में भारत विरोधी आतंकवादी गतिविधियों में तेजी देखने को मिल सकती है। चीन व पाक के अलावा तालिबान के अतीत को देखते हुए भारत की चिंता जायज है।
भारत अभी इस इंतजार में है कि लोकतंत्रिक ब्लॉक अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को लेकर क्या फैसला करता है। ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में हो रही शंघाई सहयोग संगठन की सालाना बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अफगानिस्तान का जिक्र करते हुए कह रहे थे कि शांति, सुरक्षा और विश्वास की कमी से जुड़ी चुनौतियां बढ़ता हुआ कट्टरपंथ हैं, तो उस वत पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी उन्हें सुन रहे थे। एससीओ से अफगानिस्तान के हाल के घटनाक्रमों के बाद उत्पन्न चुनौतियों से मिलकर निपटने का भारत का आह्वान चीन व पाक के लिए सीधा संदेश है कि वे गलत ट्रैक पर हैं। यदि इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए तो यह पता चलेगा कि मध्य एशिया का क्षेत्र शांत और प्रगतिशील संस्कृति तथा मूल्यों का गढ़ रहा है और सूफीवाद जैसी परपराएं वहां सदियों से पनी और पूरे क्षेत्र और विश्व में फैली। मध्य एशिया की इस ऐतिहासिक धरोहर के आधार पर एससीओ को कट्टरता और अतिवाद से लडऩे का एक साझा खाका विकसित करना चाहिए।