राष्ट्रीय एकता, पार्टी एकता या किसी भी किस्म की एकता का कोई ठिकाना नहीं। हो भी जाए और न भी हो। पता नहीं कब कहां यह होती-सी लगे, पर न हो। होते-होते रह जाए। या हो जाए और पता ही नहीं चले कि हो गई। उन्हें ही पता न लगे, जिनमें कि एकता हो जाए। एकता ठहरी। हमारे यहां की एकता बड़े अलग तरह की है। यों सब देशों में एकता होती है, पर भारतीय एकता की बात अलग है। यहां एकता में हमेशा अनेकता होती है। अर्थात कभी भी अनेकता देखो तो समझ लो एकता हुआ ही चाहती है। या होगी ही, क्योंकि अनेकता में एकता होती है। संसार के और देश तो मैंने देखा, एकता की चिंता ही नहीं करते। वे तो मानकर चलते हैं कि एकता है। जैसे इंग्लैंड में या फिनलैंड में या किसी भी लैंड में एकता है कि नहीं, इसके बारे में उस देश को पता ही नहीं है। न उन्हें, न हमें। पर जब हम संसार को गर्व से बताते हैं कि भारत एक है तो वे शायद समझ न पाते होंगे कि हम क हना क्या चाह रहे हैं। क्योंकि वे तो ऐसी छोटी-मोटी बातों को मानकर चलते हैं।
जैसे हम किसी जापान वाले से यह नहीं प्रश्न करते, न वह स्वयं इस बारे में चर्चा करता है कि जापान में एकता है। वह तो है। होती ही है। पर भारत में यह चिंता और चर्चा का प्रथम विषय है। रह-रहकर हम एक -दूसरे को चिल्लाकर या खुसफुसाकर सूचना देते रहते हैं कि भारत एक है। जैसे मौसम की जानकारी दी जाती है, वैसे ही एकता की जानकारी दी जाती है। क्यों भई, आज क्या हाल है/ ठीक है। एकता नजर तो आ रही है। यह सवाल होली-दिवाली पर नहीं उठते। सारा देश थैली हाथ में ले एक होकर महंगाई का रोना रोने लगता है। जब किसी को गाली देनी होती है, राष्ट्र एक स्वर में जुड़ जाता है। पता नहीं कब एकता हो जाए, कह नहीं सकते। फिर एकता की अपील की जाती है। भाइयो, एक हो जाओ। बाप-बेटों, साले-बहनोई, ससुर-दामाद के लिए एकता की बंदिश नहीं होती, पर भाई-भाई एक हो जाएं, इसका ऊपर से बड़ा जोर आता है।
जैसे ही एकता की अपील हुई, सब एक -दूसरे से सवाल करने लगते हैं। क्यों भई, काहे को एक हों/ चक्कर क्या है/ अब ऐसे में मजा देखो कि विपक्ष भी एक होने में लगा है। कुछ और जब करने को नहीं होता है तो चलो, एकता ही करो। तो काफी दिनों तक एक-दूसरे से पूछते रहे। क्यों साहब, आपका क्या खयाल है, एक हो जाएं/दूसरे ने कहा, ठीक है, कोई बात नहीं, अगर आप क ह ही रहे हैं तो आओ, एक हो लेते हैं। मगर एक शर्त है। आपस में लडऩे के अधिकार सुरक्षित रहें तो एकता कर लेने में हमें तो कोई हर्ज नहीं लगता। अब भई, अखाड़े में भी तो एक ता होती ही है ना! यद्यपि अखाड़े का उद्देश्य तो परस्पर कुश्ती लडऩा ही है। तो यदि आप पहलवानों को परस्पर कुश्ती लड़ता देखें तो आप चिल्लाकर घोषणा कर सकते हैं कि अखाड़े में एकता है। हां, यदि वे परस्पर लड़ न रहे हों तो आप कह सकते हैं कि अखाड़े में झगड़े हैं। तो आप क्या सोचते हैं/ यदि सारे देश में सारे झगड़ों के बावजूद एकता है और यह झगड़ों के साथ बनी रहनी चाहिए तो यही विपक्ष पर लागू कर लें कि खूब लड़ो और खूब एकता करो।
स्व. शरद जोशी
(लेखक व्यंगकार थे, एनबीटी में 6 अक्टूबर, 1988 को प्रकाशित)