हिंदू मंदिर का मुस्लिम पुजारी

0
355

कर्नाटक से चमत्कारी खबर आई है। एक हिंदू मंदिर में एक मुसलमान पुजारी को नियुक्त किया गया है। यह मठ लिंगायत संप्रदाय का है। कर्नाटक में दलितों के बाद लिंगायतों की संख्या सबसे ज्यादा है। कर्नाटक के कई बड़े नेता जैसे बी.डी. जत्ती, निजलिंगप्पा, बोम्मई, येदियुरप्पा आदि लिंगायत ही हैं।इस संप्रदाय की स्थापना लगभग आठ सौ साल पहले बीजापुर के बसवन्ना ने की थी। वे स्वयं जन्म से ब्राह्मण थे लेकिन उन्होंने जातिवाद पर कड़ा प्रहार किया। उनके सिद्धांत ऐसे हैं कि कोई भी जाति, कोई भी मजहब, कोई भी वंश, कोई भी देश का आदमी उन्हें मान सकता है।

जैसे भगवान बस एक ही है। दो-चार नहीं। वही इस सृष्टि का जन्मदाता, रक्षक और विसर्जक है। कोई भी मनुष्य भगवान नहीं कहला सकता। ईश्वर निराकार है। जरुरतमंद मनुष्य ही ईश्वर का रुप है। उसकी सेवा ही ईश्वर की आराधना है। जाति, मजहब, वंश आदि ईश्वरकृत नहीं, मनुष्यकृत हैं। अहंकार, वासना, क्रोध को त्यागो। हिंसा मत करो। जो भी ईश्वर को मानते हैं, वे सब एक हैं। यही लिंगायत धर्म है।

लिंगायतों के इन सिद्धांतों और इस्लाम की मूल मान्यताओं में कितनी समानता है। सिर्फ एक असमानता मुझे दिखाई पड़ी। लिंगायत लोग मांस नहीं खाते। मैं अपने मुसलमान दोस्तों से पूछता हूं कि कुरान शरीफ में कहीं क्या यह लिखा है कि जो मांस नहीं खाएगा, वह आदमी घटिया मुसलमान माना जाएगा ? इसीलिए जब असुति गांव के 33 वर्षीय मुसलमान युवक शरीफ रहमानसाब मुल्ला ने लिंगायत मंदिर का मुख्य पुजारी बनना स्वीकार किया तो मुझे घोर आश्चर्य हुआ लेकिन मैंने इस क्रांतिकारी घटना पर विशेष ध्यान दिया।

शरीफ के पिता रहमानसाब मुल्ला ने इस मठ के निर्माण के लिए अपनी दो एकड़ जमीन भी दान दी है। शरीफ बचपन से ही बसवन्ना के वचनों का पाठ करते रहे हैं और अब उन्होंने लिंगायतों के सारे विधि-विधानों को सीख लिया है। भारत के गांवों में अभी भी दलितों और मुसलमानों का छुआ हुआ पानी भी नहीं पिया जाता लेकिन मठाधीश शरीफ मुल्ला सबके लिए आदरणीय बन गए हैं। दीक्षा लेते समय उनके फोटो में उनका मुंडा हुआ सिर, मस्तक पर तिलक और अर्धनग्न शरीर पर धोती देखकर विश्वास ही नहीं होता कि ये शरीफ मुल्ला हैं।

डा. वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here