हालात तो बेहद खराब हैं

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आजादी के बाद भारत ने बड़ी मेहनत से विकास की वो राह पकड़ी, जिसकी वजह से इस सदी में आकर उसे सबसे तेजी से उभरी अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाने लगा। गुजरे दशकों में भारत ने करोड़ों लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाया, यह उसकी एक खास उपलधि रही। लेकिन लगता है कि अब इस यात्रा की दिशा पलट गई है। भारतीय रिजर्व बैंक की हालिया सालाना रिपोर्ट से इस बारे में काफी समय से जारी आशंकाओं पर मुहर लगा दी है। रिजर्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि खपत को जो झटका लगा है, वो गंभीर है। इससे जो सबसे गरीब हैं, उन्हें सबसे ज्यादा चोट लगी है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मई और जून में अर्थव्यवस्था ने जो गति पकड़ी थी, वो अब राज्यों द्वारा स्थानीय तालाबंदी लगाने की वजह से जा चुकी है। इसका मतलब है कि आर्थिक गतिविधि का सिकुडऩा दूसरी तिमाही में भी जारी रहेगा। जानकार मानते हैं कि यूं तो अभी भी आरबीआई पूरी हकीकत नहीं दिखा रहा है। फिर भी यह रिपोर्ट स्थिति की एक ईमानदार समीक्षा के करीब है।

कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना कि हालात इतने खराब हैं कि अगर हम एक बहुत ही आशावादी परिदृश्य लेकर चलें, तब भी आर्थिक विकास दर माइनस 10 प्रतिशत से अधिक होने की संभावना है। कई रेटिंग एजेंसियों और समीक्षकों ने तालाबंदी की वजह से विा वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में जीडीपी में 20 प्रतिशत तक की गिरावट का पूर्वानुमान लगाया है। आरबीआई का कहना है कि इतिहास में पहली बार भारतीय अर्थव्यवस्था के सिकुडऩे के आसार हैं और इसके महामारी से पहले के स्तर तक वापस पहुंचने में काफी वक्त लगेगा। कुल अनुमान यह है कि एफएमसीजी, फार्मा, और आईटी को छोड़कर सभी क्षेत्रों में निवेश गिरेगा, खपत गिरेगी और सरकार के लिए राजस्व में भारी गिरावट आएगी। जीएसटी से कमाई आधी हो जाएगी, नौकरियां जाने की वजह से आयकर से कमाई भी गिरेगी, कॉरपोरेट सेक्टर घाटा दिखाएगा, जिस वजह से कॉर्पोरेट टैक्स से कमाई भी बुरी तरह से गिरेगी। यानी ये कहा जा सकता है कि इस साल जो बजट विा मंत्री ने पेश किया था, वह अर्थहीन हो गया है।

हैरतअंगेज यह है कि कि सरकार अभी भी एक फर्जी आशावादी स्थिति की धारणा बनाने की कोशिश कर रही है। चिंता का पहलू ये उभरता सवाल भी है कि क्या देश के फेडरल ढांचे पर प्रहार हो रहा है? ये सवाल पिछले काफी समय से चर्चा में है, लेकिन जीएसटी काउंसिल की 41वीं बैठक के बाद यह अंदेशा काफी गहरा हो गया है। इस बैठक में केंद्र सरकार ने साफ कर दिया कि वह इस वर्ष जीएसटी के तहत जिस मुआवजे का वादा केंद्र ने किया था, उसका भुगतान नहीं करेगा। जाहिर है, इससे राज्यों को मायूसी हुई है। बैठक के बाद गैर-बीजेपी राज्यों के विा मंत्रियों की जो प्रतिक्रिया आई, वह काफी नाराजगी से भरी हुई थी।

इसलिए अगर कर संसाधनों के बंटवारे पर विवाद बढ़ा तो उसके बेहद गंभीर नतीजे हो सकते हैं। राज्यों की शिकायत यह भी है कि केंद्र उनसे अपने एजेंडे को लागू करवाने के लिए उनकी बांह मरोड़ रहा है। मसलन, कोरोना महामारी आने के बाद जब उन्हें अतिरिक्त कर्ज लेने की इजाजत दी गई, तो उसमें सिर्फ 0.5 प्रतिशत रकम शर्त मुक्त थी। बाकी में शर्त यह लगा दी गई कि अगर राज्य केंद्र के कथित आत्मनिर्भर भारत पैकेज के लागू करने की नीति अपनाएंगे, तभी वो भारतीय रिजर्व बैंक से कर्ज ले सकेंगे। एक शिकायत है कि केंद्र की कल्याणकारी योजनाओं में आधा खर्च राज्यों से करने को कहा जाता है, लेकिन उनका नाम और ढांचा तैयार करने में राज्यों से पूछा तक नहीं जाता। तो कुल मिलाकर शिकायतें गहरा रही हैं।

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