सीमित अवधि की चुनौतियां

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केद्र सरकार की तरफ से माल, थियेटर, शराब की दुकानों और पान-तबाकू और गुटखा पर तो प्रतिबंध यथावत रहेगा लेकिन आवासीय परिसरों और किराने की मुख्य सड़कों पर दुकानों को खोले जाने की सशर्त छूट दे दी गयी है। हालांकि यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि धरातल पर निर्णय का अधिकार राज्य सरकारों को ही होगा। कुछ क्षेत्रों में पहले से ही सीमित छूट दी हुई है। कुछ राज्य सरकारें तो पहले से ही मन बनाकर बैठी थीं। अब इस दिशा में सावधानीपूर्वक
आगे बढऩे की तैयारी है। पर यूपी की योगी सरकार ने केन्द्र के दिशा निर्देश के पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि राज्य में जून माह तक किसी भी आयोजन व भीड़ की गुंजाइश नहीं रहने दी जाएगी। पहले की तरह लॉकडाउन में लगे प्रतिबंध और छूट जारी रहेगी। अब देखना होगा कि केन्द्र के निर्देश के बाद की स्थिति क्या मोड़ लेती है। लेकिन यूपी में हाल फिलहाल कोरोना संक्रमण की जो स्थिति है, उस परिप्रेक्ष्य में योगी सरकार फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है तो यह बेहद जरूरी भी है। यह सही है कि लगभग पूर्णबंदी से सभी के लिए चुनौतियां बढ़ी हैं।

उद्यमी, मजदूर या नौकरीपेशा ही नहीं, बल्कि सरकार के लिए भी आर्थिक मोर्चे पर मौजूदा संकट से निपटने में धन की कमी आड़े आ रही है। इसलिए केन्द्र सरकार के बाद यूपी सरकार ने भी अपने कर्मचारियों का महंगाई भत्ता डेढ़ साल के लिए स्थगित कर दिया है। इससे बचे राजस्व का कोरोना से जंग में संसाधनों से विस्तार पर खर्च होगा। ठीक भी है, हाल-फिलहाल की परिस्थितियों में राजस्व मिलना बंद हो गया है, बल्कि सभी तबके इस लड़ाई में सरकार की तरफ देख रहे हैं। जबकि सरकार के सामने जरूरत के हिसाब से आर्थिक पैकेज का ऐलान करना नाक के चने चबाने जैसा हो गया है। इन उठती मांगों के बीच विपक्ष बार-बार लोगों की दिक्कतें दूर करने के लिए सत्ता पक्ष को चेता रहा है, जो उसका धर्म भी है। पर सरकारों की भी अपनी विवशता है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए यह जंग अकेले सरकार के भरोसे लड़ी जानी है, सिर्फ एक मुगालता हो सकता है। हम सबको इसमें अपनी सचेत और सक्रिय भागीदारी निभानी है।

इसलिए सरकारें लॉकडाउन में सीमित छूट में और ढील देने की तरफ कदम बढ़ाती हैं तो हमें भी एक नागरिक के तौर पर उसका बेजा इस्तेमाल नहीं करना है। भीड़ नहीं करनी है, जरूरत के हिसाब से बाहर निकलना है और खरीदारी करनी है। इसके लिए मास्क और शारीरिक दूरी का पूरी तरह पालन करना है, वरना इससे स्थिति सुधरने के बजाय और बिगड़ती चली जाएगी। ऐसा इसलिए इंगित किया जाना जरूरी है कि अभी राजधानी लखनऊ के यातायात विभाग की तरफ से एक जानकारी साझा हुई है, जिसके मुताबिक इन महीनों में पिछले वर्ष की तुलना में सिर्फ पांच हजार गाडिय़ों का चालान कम हुआ। इसका मतलब यह कि लोगों ने लॉकडाउन में भी सड़कों पर फर्राटा गाड़ी चलाने से परहेज नहीं किया। यह तो एक क्षेत्र की बात हैए अन्य मामलों में कितनी मनमर्जी लोगों ने की होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। इस रोशनी में योगी सरकार सही दिशा में ही आगे बढ़ रही है, ऐसा कहा जा सकता है। यह संकट हम सबके वजूद को लेकर है, इसलिए जरूरी है कि एक-दो महीने और तपस्या की जरूरत होती है तो उससे परहेज नहीं किया जाना चाहिए।

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