सरकार के आहान को समझने की जरूरत

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कोरोना वायरस कोविड-19 जिस गति से पूरे विश्व की मानव जाति पर प्रहार कर रहा है और संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ रही है उससे ऐसा लगता है कि यदि सावधानी नहीं बरती गई तो यह पूरी मानव जाति को लुप्त करके ही दम लेगा। जब विकसित देश इस संक्रमण का कोई पुख्ता इलाज नहीं ढूंढ पा रहे हैं तो भारत में उन देशों के मुकाबले वैसे भी संसाधनों की कमी महसूस हो रही है। अमेरिकी वैज्ञानिक डॉक्टर एंथनी फाउची, जिन्होंने पिछले 36 वर्षों में हर वायरस की दवा तैयार करके मानव जाति को लाभ पहुंचाया, उन्हें भीअगले एक से डेढ़ साल में ही कुछ ठोस मिलने की उम्मीद है। मलेरिया की दवा को कोरोना का तोड़ बताने के राष्ट्रपति ट्रंप के बेतुके दावे को डा. फाउची खारिज कर चुके हैं। उन्होंने फिलहाल कोरोना का एक ही तोड़ बताया है वह है ‘एकांतवास’ यानि सबसे अलग-थलग रहना। तभी तो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके बचाव का एक मात्र इलाज सामाजिक दूरी बनाए रखने का आह्वान किया। जो तटस्था बनाए रखेंगे वह सुरक्षित रहेंगे। इन सब के विपरीत धर्मगुरुओं का तर्क है कि दुनिया का रचियता नाराज है उसे मनाने का प्रयास करो। सरकार के आह्वान लॉकडाउन के चलते सभी धर्मस्थलों में आने-जाने पर पाबंदी लगाई गई है। हर धर्म के लोग अपनी- अपनी आस्था के अनुसार घर पर रहकर ही धार्मिक अनुष्ठान कर रहे हैं। चाहे हवन या यज्ञ करके या नमाज अदा करके।

एक बात जो सामने आ रही है वह सामूहिक पूजा-पाठ करना या जमात के साथ नमाज अदा करना, ये सब वे कारक है जिनसे कोरोना वायरस के प्रसार की प्रबल संभावनाएं हैं। इसके बावजूद लोग खासकर मुस्लिम समाज में जमात के साथ नमाज अदा करना जारी है। भले ही वह मस्जिदों में न पढ़ रहे हों। घर पर भी नमाज जमात के साथ अदा कर रहे हैं। यही नहीं, आज भी संकट के समय में देश-विदेश से तलीगी जमातें निकल रही हैं, मस्जिदों में रुककर धर्म के प्रचार के नाम पर कोरोना वायरस को फैलाने का कार्य कर रही हैं। जो लोग सामूहिकता पर यकीन कर रहे हैं उन्हें भली भांति समझना चाहिए कि एक साथ रहने से ही कोरोना वायरस का प्रचार होता है, इसलिए सामाजिक दूरी ही इससे बचने का हल है। हम घर पर रहकर भी व्यतिगत तौर पर अपने धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण कर सकते हैं। कुछ लोग जो वायरस के प्रकोप को समझ चुके हैं वह सामाजिक दूरी भी बनाए हुए हैं। जो लोग सामाजिक दूरी को लापरवाही से देख रहे हैं वे भ्रम में हैं योंकि यदि सामूहिकता से नुकसान नहीं होता तो काबे को बंद नहीं किया जाता। लॉकडाउन करने से देश को प्रतिदिन अरबों रुपये का नुकसान हो रहा है। क्योंकि सरकार की आय वाले साधन चाहे परिवहन के रूप में हो या आयात-निर्यात के रूप में सबकुछ लॉकडाउन है। भारत सरकार यह सब कुछ घाटा अपने 130 करोड़ लोगों की सुरक्षा के लिए सहन कर रही है।

इसके बावजूद यदि हम सामाजिक दूरी अपनाने को तैयार नहीं है तो इसका खामियाजा हमें अपनी जान देकर तो भुगतना होगा साथ ही अपने परिवार, पड़ोस लोगों को संक्रमित करके उनकी जान भी खतरे में डालने के दोषी भी हम ही होंगे। या कोई चाहेगा जिन मां-बाप ने पैदा करके उसे पालकर बड़ा किया उन्हीं की जान लें, क्या जिन बच्चों करके पैदाकर हम उनकी परवरिश के लिए संघर्ष कर रहे है उनकी जान ले लें क्या अपने परिवार के दुश्मन बन जाएं। यदि हम यह सबकुछ नहीं करना चाहते तो हमें कुछ समय एकांतवास यानि अपनों से दूरी बनाए रखना जरूरी है। लॉकडाउन के दौरान असर यह देखने को मिल रहा है कि सरकार लोगों को इस वायरस से बचाने के लिए जितना घरों में रहने को कह रही है, कुछ लोग लॉकडाउन का उल्लंघन कर रहे हैं। ऐसे लोगों का मानना है कि धर्मस्थलों पर सामूहिक तौर पर पूजा-पाठ या इबादत करना अधिक पुण्य का काम है। लेकिन ये लोग नहीं समझ रहे हैं कि जान है तो जहान है, यदि तुम जीवित रहे और हालात सामान्य रहे तो धार्मिक अनुष्ठान आगे भी किए जा सकते हैं। दुनिया के सभी देश चाहे किसी धर्म के बाहुल्य हो वो सब लॉकडाउन के समर्थक है और अपने-अपने स्तर पर इसको लागू भी कर रहे हैं।

भारत में घनी जनसंख्या का गरीब होने से या मजदूरों के पलायन करने से लॉकडाउन के सारे नियमों का उल्लंघन किया गया। सरकार की मंशा थी कि लॉकडाउन के द्वारा संक्रमितों को छांटकर उनका वारंटाइन किया जाए ताकि उनकी जान बचाई जा सके। लेकिन प्रवासी दिहाड़ी मजदूरों के लिए कंपनियों की ओर से कोई सकारात्मक कदम न उठाया गया, जिसके परिणामस्वरूप भारी संख्या में मजदूरों का पलायन शुरू हो गया। यदि सरकार के लॉकडाउन आह्वान का सभी लोगों के द्वारा पालन किया जाता तो भारत में स्थिति इतनी विकट न होती। देखने में आ रहा है कि तब्लीगी जमात वाले लॉकडाउन से अलग हैं, जो सामूहिक रूप में रहकर इस बीमारी को बढ़ावा दे रहे हैं। कोई भी धर्म चाहे हिन्दू धर्म हो या मुस्लिम धर्म या कोई अन्य धर्म, कोई भी धर्म इस बात की इजाजत नहीं देता कि अपने सुख के लिए दूसरे का अहित करो। यदि हम मानसिकता में परिवर्तन करके सरकार के आह्वान को अपनाते हैं तो इससे अपना, परिवार, पास-पड़ोस, गांव समाज व देश का हित होगा।

एम. रिजवी मैराज
(लेखक पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं।)

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