समाज को नई दिशा की दरकार

0
206

दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र फिर एक बार शर्मसार हुआ। एक अक्षम्य अपराध फिर हुआ। एक युवती, जिसे जिंदगी के तमाम सपने देखने थे, फिर आतताइयों के कुकृत्य की भेंट चढ़ गई। उार प्रदेश में जनपद हाथरस के थाना चंदपा क्षेत्र के ग्राम बालूगढ़ी में 14 सितंबर सुबह के 9.30 बजे दलित समाज के बहन-भाई और मां बाजरे के खेत में पशुओं के लिए घास लेने गए थे। मां से कुछ दूरी पर कार्य कर रही 19 वर्षीय युवती को दबंग लोग उसके दुपट्टे से गला बांधकर खींच कर ले गए। बुरी तरह मारा-पीटा और आरोप है कि उसके साथ गैंगरेप किया। इस मामले में भी अमूमन वैसा ही हुआ जैसा कि पुलिसिया कार्यप्रणाली है। प्रथम दृष्टया पुलिस ने मामले को उन धाराओं में नहीं लिखा जिसमें मामला दर्ज होना चाहिए था। पीडि़ता का भाई और पीडि़ता थाने पहुंचे। उसके बाद उनको अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज में भर्ती करा दिया गया। बताया यह जा रहा है कि पीडि़ता को दबंग चार लोगों ने बुरी तरीके से मारा पीटा और बलात्कार किया। पीडि़ता की हालत ज्यादा गंभीर होने पर उसको अलीगढ़ से सफदरजंग अस्पताल दिल्ली भेज दिया गया। 14 दिन तक मौत जिंदगी से संघर्ष करती हुई दलित वर्ग की यह यह युवती जिंदगी की जंग हार गई।

और पुलिस ने मृतका को उसके गांव लाकर परिजनों की बिना अनुमति के आधी रात के बाद उसका अंतिम संस्कार कर दिया। यह प्रकरण अब प्रिंट मीडिया इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से इस घटना की परत दर परत खुल रहा है। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र फिर शर्मसार हुआ। यह हृदय विदारक घटना ने सभ्य समाज को एक बार फिर जोड़ दिया दिसंबर 2012 में दिल्ली में पैरामेडिकल की छात्रा के साथ हुए गैंगरेप के दोषियों से जिसमें अभी हाल में न्यायालय द्वारा सजा-ए-मौत की सजा दी गई है। वह आंदोलन जन आंदोलन बनकर चला था। आज एक बार फिर उार प्रदेश के हाथरस जनपद गांव में कमजोर, गरीब, दलित समाज की युवती के साथ जो शर्मसार करने वाली घटना आरोपी रवि, रामु,राजकुमार, लवकुश नाम के इन दबंगों ने की है, वह सभ्य समाज के लिए एक शर्मनाक कलंक बन गया। यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि दबंगई के बल पर लोग जाति और धर्म की आड़ लेकर या कुछ भी अत्याचार कर सकते हैं? क्या उनके लिए कानून का भय नहीं है? क्या कानून की भी परवाह ना करके इस प्रकार के घिनौने कार्य करने से भी नहीं डरते हैं? इन घटनाओं के मूल में जाया जाए तो यह कहा जा सकता है कि ऐसे अपराधियों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से संरक्षण भी समाज द्वारा दे दिया जाता है।

परिणाम स्वरूप अपराध, अपराधी और समाज इस प्रकार की घटनाओं को नहीं रोक पाने में सफल नहीं हो पा रहा है। इस दुखद घटना में पुलिस की कार्यशैली पर भी सवालिया निशान उठ रहे हैं। लोकतंत्र के चारों स्तंभ न्यायपालिका, कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और प्रेस आज कहीं ना कहीं अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी नहीं निभा पा रहे हैं। परिणाम स्वरूप पीडि़त वर्ग को जो न्याय मिलना चाहिए, वह नहीं मिल पा रहा है। जैसे ही हाथरस की इस बेटी की मृत्यु का समाचार मिला विपक्ष और राजनीतिक सामाजिक संस्थाएं आगे आकर मृतका और उसके परिवार को न्याय दिलाने की मांग उठाने लगे। जगह-जगह कैंडल मार्च, प्रदर्शन, परिवार को नौकरी, आवास, आर्थिक मदद, अपराधियों को सजा-ए-मौत के लिए शासन-प्रशासन को ज्ञापन दिए जाने लगे। यह सही है कि इस दलित बाल्मीकि परिवार को आर्थिक सहयोग सरकार से मिलना चाहिए। प्रदेश सरकार ने कुछ आर्थिक सहयोग किया भी है। सवाल यह उठता है कि इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए व्यवस्था में कब परिवर्तन होगा?

जहां इस प्रकार की दर्दनाक शर्मनाक घटनाओं को रोका जा सके क्योंकि कानून के प्रति समाज की आस्था कमजोर पड़ती जा रही है। इसलिए कहा जा सकता है कि कानून बनाता कौन है, कानून लागू किस पर होता है और इसका पालन कौन कराता है?इन सबके मूल में व्यवस्था ही है। इसीलिए घटनाओं के बाद धरना-प्रदर्शन अपराधी को सजा-ए-मौत आदि की मांग जोर-शोर से उठती है लेकिन समाज की सोच बदलने का कार्य अभी भी नहीं हो पा रहा है। दिल्ली में निर्भया हत्याकांड के बाद देश जागा था। आज एक बार फिर हाथरस दलित युवती मनीषा बाल्मीकि गैंगरेप दर्दनाक हृदय विदारक उसकी मौत के बाद सामाजिक राजनीतिक और समाज का जागरूक वर्ग जाग रहा है। अपराधियों को सजा-ए-मौत की मांग जगह-जगह उठ रही है। दलित परिवार को आर्थिक मदद की मांग की जा रही है। सवाल उठता है कि या सरकार शासन प्रशासन और जनमानस इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए और या नीति और दिशा प्रशासन को देता है? यह तो निश्चित कहा जा सकता है कि इन घटनाओं के पीछे सामाजिक ताना-बाना भी अपना वजूद बनाए हुए हैं जब तक दबंग को उस की दबंगई की सजा नहीं मिलेगी तब तक इस प्रकार की घटनाएं घटती रहेंगी।

जगतपाल सिंह
(लेखक वरिष्ठ एडवोकेट हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here