सभी दलों में खलबली

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राजनीतिक दल अपराधियों को टिकट देने और पदाधिकारी बनाने से बाज नहीं आ रहे। 2004 में 24 प्रतिशत सांसदों की पृष्ठभूमि आपराधिक थी, 2009 में ऐसे सांसदों की संया बढ़कर 30 प्रतिशत, 2014 में 34 प्रतिशत और मौजूदा लोकसभा में 43 पर्सेंट सांसदों के खिलाफ गभीर अपराध के मामले लंबित हैं। इस पर न तो कोई राजनीतिक दल गभीर है, न सरकार। चुनाव आयोग सिफारिशें करके थक गया, अदालत क़ानून बनाने का निर्देश दे कर थक गईं। लेकिन एक शस है जो राजनीति और समाज में शुद्धिकरण के लिए लगातार लड़ रहा है। वह है दिल्ली प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय। जो सुप्रीमकोर्ट में दर्जनों पीआईएल याचिकाएं दाखिल कर चुके हैं। चुनाव सुधारों से जुड़ी उनकी कुछ प्रमुख याचिकाओं की बानगी देखिये। सजायाफ्ता व्यक्तियों को ताउम्र चुनाव लडऩे पर पाबंदी, सजायाफ्ता व्यक्तियों पर राजनीतिक दल बनाने पर पाबंदी, सजा याफ्ता को राजनीतिक दल का पदाधिकारी बनाए जाने पर पाबंदी। चुनाव लडऩे के लिए न्यूनतम शिक्षा और अधिकतम आयु तय किया जाना।

चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति कोलिजियम के माध्यम से किया जाना। एक साथ एक से ज्यादा सीटों पर चुनाव लडऩे पर प्रतिबंध लगाया जाना। चुनाव आयोग का स्वतंत्र सचिवालय बनाया जाना। डाक घरों को वोट रजिस्टर्ड करने की नोडल एजेंसी बनाना, चुनाव आयोग को नियम बनाने के लिए अधिकृत करना। सांसदों, विधायकों के आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें। नाम से धार्मिक संकेत देने वाले राजनीतिक दलों का पुनर्नामकरण। इस के अलावा समान नागरिक संहिता, शरिया अदालतों पर प्रतिबंध, पोलिगेमी और निकाह हलाला पर प्रतिबंध, बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों को वापस भेजने, शादी की न्यूनतम आयू तय किए जाने, प्रापर्टी को आधार कार्ड से जोडऩे। फर्जी पैन, आधार, पासपोर्ट, ड्राईविंग लाईसेंस बनाने और बनवाने वाले को कड़ी सजा, मनी लांड्रिंग करने वालों बेनामी प्रापर्टी के असली मालिकों, स्मगलिंग करने वालों, आय से अधिक सम्पत्ति पकड़े जाने पर कड़ी सजा का प्रावधान करने खाद्य पदार्थों में मिलावट करने वालों को कड़ी सजा का प्रावधान किए जाने के सबन्ध में भी पीआईएल लबित हैं।

उनकी मेहनत धीरे धीरे रंग ला रही है। अश्विनी उपाध्याय की ही दो याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और राजनीतिक दलों को निर्देश दिए थे। सरकार को यह निर्देश था कि जिन लोगों के खिलाफ गभीर मामलों में चार्जशीट हो चुकी है, उन्हें चुनाव लडऩे से रोकने के लिए क़ानून बनाया जाए। सरकार ने राजनीतिक दलों की बैठक भी बुलाई लेकिन इस पर सहमति नहीं बनी। अब उपाध्याय ने केंद्र सरकार के खिलाफ अदालत की अवमानना की याचिका लगाई हुई है। दूसरी एक याचिका पर सुप्रीमकोर्ट ने राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को निर्देश दिया था कि चुनावों के दौरान वे अखबारों और न्यूज चेनलों के माध्यम से उम्मीदवार के आपराधिक रिकार्ड को तीन तीन बार जनता को बताएं। पर हुआ यह कि उम्मीन्द्वारों ने फाईल कापी छपने वाले अखबारों में अपनी तरफ से अपना आपराधिक छपवा कर और आधी रात के बाद टीवी चेनलों पर विज्ञापन चलवा कर खानापूर्ति कर ली। इस पर अश्विनी उपाध्याय ने चुनाव आयोग पर अदालत की अवमानना की याचिका लगाई हुई थी कि वह अदालत के निर्देशों का सही ढंग से पालन नहीं करवा रहा।

गुरूवार को सुप्रीमकोर्ट ने उनकी इस याचिका पर राजनीतिक दलों के होश उड़ा दिए। सुप्रीमकोर्ट ने आदेश जारी किए है कि सभी राजनीतिक दल अखबारों और न्यूज चेनलों के अलावा अपनी आधिकारिक वेबसाईटों पर अपने उम्मीन्द्वारों का आपराधिक रिकार्ड अपलोड करे। सियासी दलों को ऐसे उम्मीदवार को चुनने के 72 घंटे के भीतर चुनाव आयोग को अनुपालन रिपोर्ट भी देनी होगी जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। अगर राजनीतिक दल इस आदेश का पालन नहीं करते तो चुनाव आयोग इसे सुप्रीमकोर्ट के संज्ञान में लाएगा। जस्टिस आरएफ नरीमन और एस रविंद्र भट ने पहले दिए गए फैसले से आगे बढ़ कर यह भी कहा कि राजनीतिक दलों को यह बताना होगा कि उन्होंने एक साफ छवि के उम्मीदवार की बजाय आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार को टिकट क्यों दिया। राजनीतिक दल अपराधियों के पास धनबल और जनबल होने कारण यह मान कर टिकट देते है कि वे जिताऊ हैं, लेकिन कोर्ट ने ‘जिताऊ उम्मीदवार’ के तर्क को खारिज कर दिया है। अदालत ने राजनीतिक दलों को मिलने वाले धन के स्रोतों पर भी सवाल उठाया है।

अजय सेतिया
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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