सब हमारी क्षमता पर निर्भर

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कोरोना के साथ जीना होगा, यह जानकर निराशा होना स्वभाविक है। लेकिन उम्मीद कभी नहीं छोडनी चाहिए। निराशा में हम परिस्थिति का सामना करने में अक्षम हो जाते है। लेकिन यह कहना आसान हे कि उम्मीद बनाए रखें। अभी केवल उम्मीद भावना केंद्रित नहीं इतिहास केंद्रित होनी चाहिए। एक पुराना गीत है, गम की अंधेरी रात में दिल को न बेकरार कर, सुबह जरूर आएगी सुबह का इंतजार कर। सुबह का इंतजार करना होगा लेकिन वह अपने हिसाब से होगी। इसी इसी तरह परिस्थितियां अपने हिसाब से बदलती हैं। दुनिया में ऐसी महामारियां, समस्याएं पहले आ चुकी हैं और हम इनसे बाहर निकले हैं यही इतिहास केंद्रित उम्मीद है। फिर न्यू नॉर्मस अपनाना हमारे लिए कौन सी नई बात है। जैसे पहले बैलगाडी थी फिर गाडी आई, हवाईजहाज आया, हम सब अपनाते गए। शुरुआत में थोड़ी अनुकूलता लाकर उसे अपना लेते हैं

पहले औधोगिक क्रांति आई, तह लोग जीने के लिए नौकरी करते थे। फिर आईटी क्रांति आई लोग जीवनस्तर और बेहतर बनाने के लिए नौकरी करने लगे। अब हम डिजिटस और शोसल क्रांति को अपना रहे हैं। कितना बार हमारा नॉर्मल बदला और न्यू नॉर्मल अपनाया है। कोरोना से मुकाबला वैसे ही किया जा सकता है जैसे हम यु्द्ध के लिए हम अपने आप को शारिरिक और मानसिक तौर पर तैयार करते हैं। यहीं हमने अपने आपको सरकार की गाइड लाइन के अनुसार तैयार कर लिया है तो आसाना से हम मानवघाती वायरस को मात दे सकते हैं। इसमें जरा सी लापरवाही और चूक विनाश का कारण बन सकती है। कुछ पाने के लिए हमें अपनी इच्छाओं को खोना होगा। ताकि इससे मुक्त मिल सकें । इसलिए मेरे हिसाब से सकारात्मकता के लिए इतिहास को गौर से देखना जरूरी है। मैं अक्सर कहता हूं, अपने विचारों पर ध्यान दें, वे शब्दों में बदलते हैं। शब्दो पर ध्यान दें, वे कार्य में बदलते हैं कार्यों पर ध्यान दें, वे आदत में बदलते हैं। आदतों पर ध्यान दें, वे चरित्र में बदलती हैं और अपने चरित्र में बदलती हैं और अपने चरित्र पर ध्यान दें यह आपकी किस्मत बदलता है। यानी सबकुछ विचारों से शुरू होता है। इसलिए उन्हे बदलाना जरूरी है। न्यू नॉर्मल परिवार और पेशेवर स्तर अपनान जरूरी है हम में ऐसा करने की क्षमता है। जैसे मशहूर फिल्म लॉन किंग की कहानी है। इसमें छोटे शेर की सिम्बा में बहुत शक्ति है क्योंकि वह जंगल के राजा मुस्तफा का बेटा है। लेकिन उसका चाचा स्फार मुसाफा को मरवा देता है और आरोप सिम्वा पर डलवा देता है।

सिम्वा सब छोड़कर टिमॉन और पुम्बा (नेवला और जंगली सुअर) की संगत में चला जाता है और उसे लगने लगता है कि वह भी उन्हीं की तरह है। फिर रिफकी आकर उसको याद दिलाता है कि तुम सिम्बा हो, शेर के बच्चे हो तुम अनुकूल बनने की, एडजस्ट करने की स्कार को मात देने की क्षमता है आज की हमारी परिस्थिति में कोरोना स्कार की तरह है, लेकिन हम मुफासा की संतान हैं हम सिम्वा हैं। हम जितना अपनी क्षमता को पहचानेंगे उतना ही हम जीवन को रिडिजाइन और रीस्टार्ट कर पाएंगे । इस दौरान हमें भावनात्मक, पेशेवर और आध्यात्मिक सहारे की भी जरूरत है। स्टीव जॉब्स ने अपने एक भाषण में बताया था कि जब उन्होने एपल इंकोर्पोरेशन डायरेक्टर्श बनाया और इसी बोर्ड ने मिलकर स्टीव जॉब्स को बाहर का रास्ता दिखाया। वे निराश हो सकते थे। जिन लोगों को नोकरी दी उन्हीं लोगों ने आपको आपकी कंपनी से निकाल दिया, लेकिन स्टीव ने अपने रिश्तों, जीवन, पेशेवर कामकाज, अध्यात्म पर काम किया। वे 10 साल एपल से दूर थे। शादी हुई, पिसार और नेस्ट एनिमेशन बना, आध्यात्मिक जीवन पर भी काम किया। वे भारत आकर नीम करोली बाबा से मिले। यानी 10 सालों में उन्होंने अपने लिए भावनात्मक, पेशेवर और आध्यात्मिक सहारा बना लिया। उन्हें बढ़ता देख बोर्ड ने उन्हें वापस ले लिया। तो मुझे लगता है कि आप भी दोगुनी ताकत व ऊर्जा से जीवन को रीस्टार्ट कर सकते हैं। हम रिश्तों, अध्यात्म, पेशेवर जीवन पर काम करें। धनुष-बाण में जब बाण पीछे खींचते हैं तो यह नहीं सोचते कि बाण पीछे जा रहा है। बाण शति इकट्ठी कर दोगुनी शति से गंतव्य तक पहुंचता है। तो अगर इस लॉकडाउन को, परिस्थिति को ऐसे देखेंगे कि यह थोपी गई है, तो इससे कुछ नहीं निकलेगा। लेकिन अगर यह सोचें कि बाण की तरह में शक्ति कैसे इकट्ठी करूं, अपने आप पर काम कैसे करूं, तो जब लॉकडाउन खुलेगा और परिस्थिति सुधरेगी, तो दोगुनी शक्ति से हम अपने आपको रीलॉन्च कर सकते हैं।

(लेखक गौर गोपाल दास जाने-माने चिंतक हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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