सबके सहयोग की दरकार

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कोरोना से लड़ाई में फिलहाल अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती पेश हुई है। सरकारें लोगों की जिंदगी बचाने के वास्ते फंड को भी दांव पर लगा रही हैं। इस स्थिति में गरीब हो या अमीर, सबकी बचत का घनत्व कम हो रहा है। गरीब दो वक्त की रोटी के लिए इमदाद पर निर्भर हो गया है और सरकारी मदद का हाल यह है कि कुछ एजेंसीज, कोटेदार इसमें अतिरिक्त पैसे बनाने के वास्ते कालाबाजारी से बाज नहीं आ रहे हैं। मुनाफाखोरी की खबरें इस संकट की घड़ी में भी चर्चा में हैं। हालांकि सरकारी स्तर पर लॉकडाउन के असर को देखते हुए गरीबों के अलावा भी यदि सामान्य श्रेणी के राशन धारकों को भी अगले हफ्ते से मुफ्त राशन देने की योजना है। इस व्यापक स्तर पर मुफ्त राशन वितरण की व्यवस्था में कोई झोल
न हो, इसके लिए नोडल अफसरों की तैनाती हो रही है। यूपी में इसके लिए शिक्षकों को जिमेदारी दी जा रही है। राज्य में बेसिक शिक्षा परिषद के तहत शिक्षकों की बड़ी तादाद है। शहरी क्षेत्र से लेकर कस्बों-गांवों तक इनकी उपलधता है।

उम्मीद की जानी चाहिए कि इस सर्वहिताय अभियान में किसी तरह की कोई गड़बड़ी नहीं होगी। सवा सौ करोड़ की आबादी वाला यह देश उपलध संसाधनों के सही वितरण की मांग करता है। वैसे भी यहां की 80 फीसद आबादी रोज कुआं खोदती और पानी पीती है। इसलिए जब उद्योग-धंधे एहतियाती तौर पर बंद हैं, तब जीवन-यापन कितना कठिन हो गया होगा, यह भी मुनाफाखोरी से पहले सोचा जाना चाहिए। वैसे तो इस महामारी से लड़ाई में सभी का कुछ ना कुछ दांव पर है लेकिन वायरस के खतरे के साथ ही भूख से जंग का सवाल भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। इसलिए बिचौलियों को कम से कम इस आपात स्थिति में अपने लोभ के घोड़े बांध के रखने चाहिए। इस वक्त सर्विस सेक्टर से जुड़े लोग भी अनिश्चितता का सामना कर रहे हैं। हालांकि केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकार सबसे कहा गया है कि लॉकडाउन की स्थिति में सेवा से जुड़े लोगों की पगार में कटौती ना की जाए।

खुद सरकार ईपीएफ से जुड़े कार्मिकों के फंड में तीन महीनों का पूरा अंश खुद भुगतान करने को तैयार है ताकि नियोक्ता को भी राहत हो सके। पर इस सबके बीच सेवा क्षेत्र से जुड़े लोगों को यह सवाल लॉकलाउन अवधि में बार-बार डरा भी रहा है, स्वाभाविक है, प्राइवेट कंपनियां सरकार का दिशा-निर्देश मानें या ना मानें यह उन पर पूरी तरह निर्भर करता है। कॉल सेंटरों से जुड़े लोगों का तो और बुरा हाल है, यूरोप और अमेरिका से जुड़े होने के नाते वहां की बदहाली का यहां पर भी असर पडऩा तय है। इस क्षेत्र में लाखों की तादाद में युवा जुड़े हुए हैं। खेती-किसानी के लिए जरूर राहत की बात है, कृषि कार्य हेतु लॉकडाउन में छूट दी गयी है। खाद-बीज की दुकानों पर प्रतिबंध नहीं है। हालांकि सोशल डिस्टेंसिंग के पालन पर बल यथावत है। इसलिए ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में आवश्यक है कि महामारी की लड़ाई में सरकार की तरफ से जो व्यवस्था बताई गयी है, उसमें शत-प्रतिशत सहयोग के लिए तैयार रहें।

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