दुर्योधन और कर्ण
महाभारत में दुर्योधन और कर्ण की मित्रता भी बहुत खास थी। दुर्योधन ने कर्ण को अपना प्रिय मित्र माना और उचित मान-सम्मान दिलवाया। इसी बात की वजह से कर्ण दुर्योधन को कभी भी अधर्म करने से रोक नहीं सका और उसका साथ देता रहा। जबकि सच्चा मित्र वही है तो गलत काम करने से रोकता है। अगर दोस्ती में ये बात ध्यान नहीं रखी जाती है तो बर्बादी तय है। जिस तरह महाभारत में दुर्योधन की गलतियों की वजह से उसका पूरा कुल नष्ट हो गया। कर्ण धर्म-अधर्म जानता था, लेकिन उसने दुर्योधन को रोका नहीं।
श्रीकृष्ण और सुदामा
जब भी मित्रता की बात आती है तो श्रीकृष्ण और सुदामा को जरूर याद किया जाता है। बालपन में श्रीकृष्ण और सुदामा महर्षि सांदीपनि के आश्रम में एक साथ शिक्षा ग्रहण की थी। यहीं इन दोनों के बीच मित्रता हुई। शिक्षा के बाद दोनों अलग-अलग हो गए और अपने-अपने जीवन में व्यस्त हो गए। श्रीकृष्ण द्वारिकाधीश थे और सुदामा बहुत ही गरीब। एक प्रसंग के अनुसार जब सुदामा अपने प्रिय मित्र श्रीकृष्ण से मिलने द्वारिका पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने स्वयं सुदामा का सत्कार किया और मित्र के जीवन की सारी परेशानियां खत्म कर दीं। इनकी मित्रता की सीख यह है कि दोस्ती में अमीरी-गरीबी को महत्व नहीं देना चाहिए। मित्रता सभी समान होते हैं और इस बात ध्यान रखना चाहिए।
श्रीराम और सुग्रीव
रामायण में हनुमानजी ने श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता करवाई थी। श्रीराम ने सुग्रीव को वचन दिया था कि वे बाली से उसका राज्य और पत्नी वापस दिलवाएंगे। सुग्रीव ने सीता की खोज में सहयोग करने का वचन दिया था। बाली को मार श्रीराम ने अपना वचन पूरा कर दिया था। सुग्रीव को राजा बना दिया। राजा बनते ही सुग्रीव अपना वचन भूल गया था, तब लक्ष्मण ने क्रोध किया। इसके बाद सुग्रीव को अपनी गलती का अहसास हुआ और सीता की खोज शुरू हुई। इनकी मित्रता से ये सीख मिलती है कि हमें मित्रता में कभी भी अपने वचन को नहीं भूलना चाहिए। हमेशा मित्र की परेशानियां दूर करने की कोशिश करनी चाहिए।
श्रीकृष्ण और द्रौपदी
महाभारत में श्रीकृष्ण और द्रौपदी के बीच मित्रता का रिश्ता था। श्रीकृष्ण द्रौपदी को सखी कहते थे। द्रौपदी के पिता महाराज द्रुपद चाहते थे कि उनकी पुत्री का विवाह श्रीकृष्ण से हो, लेकिन श्रीकृष्ण ने द्रौपदी का विवाह अर्जुन से करवाया। श्रीकृष्ण ने हर मुश्किल परिस्थिति में द्रौपदी की मदद की। जब श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तो चक्र की वजह से उनकी उंगली में चोट लग गई और रक्त बहने लगा। तब द्रौपदी ने अपने वस्त्रों से एक कपड़ा फाडक़र श्रीकृष्ण की उंगली पर बांधा था।