संसद का यह सत्र तूफानी होने वाला है इसमें किसी को ज़रा-सा भी शक नहीं है

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संसद का यह सत्र तूफानी होनेवाला है, इसमें किसी को ज़रा-सा भी शक नहीं है। राष्ट्रपति के भाषण के दौरान विपक्षी सदस्यों ने जो हंगामा मचाया, वह आनेवाले कल की सादी-सी बानगी है। एक अर्थ में यह सत्र तूफानी से भी ज्यादा भयंकर सिद्ध हो सकता है। अब से 50-55 साल पहले इंदिराजी के कई सत्रों को डॉ. लोहिया और मधु लिमये के द्वारा तूफानी बनते हुए मैंने देखे हैं लेकिन यह 31 बैठकों का सत्र ऐसा होगा, जो मोदी ने कभी न पहले गुजरात में देखा होगा और न ही दिल्ली में देखा है।

यह सत्र तय करेगा कि मोदी की सरकार अगले पांच साल कैसे चलेगी ? चलेगी या नहीं भी चलेगी ? देश में मचे हुए कोहराम को वह रोक पाएगी या नहीं। यह कोहराम और इसके साथ गिरती हुई आर्थिक हालत अगले छह माह में इस जबर्दस्त राष्ट्रवादी सरकार की दाल पतली कर देगी।

भाजपा और संघ में जो गंभीर और दूरदृष्टि संपन्न लोग हैं, उनकी चिंता दिनोंदिन बढ़ रही है। वे अभी तक चुप हैं लेकिन वे वैसे कब तक रह पाएंगे ? भाजपा के समर्थक और गठबंधन के दल भी सरकार की ‘मजहबी-नीति’ का विरोध कर रहे हैं। वे नए नागरिकता कानून में संशोधन की मांग कर रहे हैं। मैं भी कहता हूं कि सरकार अपना कदम पीछे न हटाए। इस कानून को रद्द न करें। कदम आगे बढ़ाए।

याने या तो पड़ौसी शरणार्थियों में मुसलमानों का नाम भी जोड़ दे या सभी मजहबों के नाम हटा दे और तीन मुस्लिम देशों के साथ सभी पड़ौसी देशों के भी नाम जोड़ दे। यदि ऐसा करे तो यह कोहराम अपने आप खत्म हो जाएगा। जहां तक अर्थ-व्यवस्था का सवाल है, मैं सोचता हूं कि यदि आयकर एकदम खत्म् ही कर दिया जाए तो लोगों के पास खर्च करने की सुविधा बढ़ेगी और टैक्स-चोरी खत्म हो जाएगी।

ऐशो-आराम की चीज़ों पर टैक्स बढ़ाकर सरकार अपनी आमदनी को सुरक्षित रख सकती है। आयकर के खात्मे के लिए श्री वसंत साठे और मैंने 25-30 साल पहले एक आंदोलन भी चलाया था। रोटी, कपड़ा, मकान और इलाज यदि लोगों को न्यूनतम दामों पर मिलें तो देश की अर्थ-व्यवस्था रातों-रात प्राणवंत हो सकती है। यदि इस बजट में अर्थ-व्यवस्था को ठीक से नहीं सम्हाला गया तो देश और सरकार दोनों ही लड़खड़ा जाएंगे।

डा. वेदप्रताप वैदिक
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं )

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