यह हैरानी की बात है कि भारत में अब कोरोना वायरस के संक्रमण के चर्चा नहीं हो रही है। अगर हो भी रही है तो सकारात्मक बातें बताई जा रही हैं। कहा जा रहा है कि कोरोना के केसेज कम होने लगे और भारत में रिकवरी रेट यानी मरीजों के ठीक होने के दर 90 फीसदी से ऊपर पहुंच गई। कोरोना के एक्टिव केसेज की संख्या तीन महीने के निचले स्तर पर पहुंच गई है और मृत्यु दर भी लगातार कम हो रही है। हालांकि यह आंकड़ा कैसे है और क्यों है, यह समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं है। इस समय त्योहार का सीजन चल रहा है और बिहार विधानसभा के चुनावों के साथ साथ कई राज्यों में उपचुनाव हो रहे हैं। सो, आर्थिक और राजनीतिक कारणों से कोरोना वायरस की संख्या को काबू में बताया जा रहा है। असलियत बिहार का चुनाव और दिवाली, छठ का त्योहार खत्म होने के बाद के आंकड़ों से जाहिर होगी। जैसे अभी यूरोप के देशों में हो रही है। यूरोप में भी कोरोना लगभग खत्म हो गया था पर वहां अब दूसरी लहर आई हुई है और यूरोप के कई देशों में हाहाकार मचा है। हालांकि उन देशों ने पहली और दूसरी लहर के बीच अपने स्वास्थ्य सिस्टम को ऐसा बना लिया है कि लोगों के मरने की दर नहीं बढ़ रही है पर संख्या बढ़ने पर उनका काबू नहीं है।
बहरहाल, भारत में जैसे ही कोरोना वायरस के फोकस हटा है वैसे ही वैक्सीन पर फोकस बन गया है। अब चारों तरफ वैक्सीन की बातें हो रही हैं। बिहार में भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनाव घोषणापत्र में कहा कि वह वैक्सीन आते ही बिहार के सभी नागरिकों को मुफ्त में टीका लगवाएगी। इसके कानूनी, संवैधानिक और नैतिक पहलुओं पर तब से चर्चा हो रही है। लेकिन बिहार में इस घोषणा के तुरंत बाद तमिलनाडु, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में भी ऐलान हो गया कि सरकार मुफ्त में वैक्सीन लगवाएगी। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि पूरे देश में हर नागरिक को मुफ्त में टीका लगना चाहिए।
चूंकि यह एक महामारी है इसलिए सरकारों को इसकी जांच से लेकर इलाज और टीकाकरण तक का सारा काम मुफ्त कराना चाहिए और हर नागरिक के स्वास्थ्य की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। हालांकि सरकार जब भी कुछ मुफ्त में देती है तो उसका बड़ा नुकसान होता है। वह असल में सरकारी अधिकारियों और कंपनियों की कमाई का जरिया बन जाता है और आम लोगों को उसका कम ही फायदा होता है। फिर भी महामारी के समय अगर सरकार लोगों को मुफ्त में टीका लगवाती तो वह एक जरूरी कदम होगा, जिसे बहुत सावधानी से उठाना होगा।
वैक्सीन को लेकर चल रही इस बहस से बीच सवाल है कि क्या वैक्सीन से यह वायरस खत्म हो जाएगा और महामारी पर काबू पा लिया जाएगा? समझदार लोग कह रहे हैं कि अभी तुरंत तो नहीं काबू पाया जाएगा क्योंकि वैक्सीन सब तक पहुंचने में बहुत समय लगेगा। जब सभी लोगों तक वैक्सीन पहुंच जाएगी तो इस पर काबू पा लिया जाएगा। ऐसे लोग टाइम फैक्टर और वैक्सीन के डिस्ट्रीब्यूशन के नेटवर्क के आधार पर आकलन कर रह हैं कि दो साल में वायरस खत्म हो जाएगा। लेकिन असल में ऐसा है नहीं। यह वायरस वैक्सीन से खत्म नहीं होने वाला है। यह आया है तो लंबा रहेगा और हो सकता है कि हमेशा के लिए रहे। जैसे आज भी भारत में या दुनिया के अनेक देशों में चेचक के टीके लगते हैं, मलेरिया और निमोनिया के टीके लगते हैं वैसे ही कोरोना वायरस का टीका भी अनंत काल तक लगता रहेगा। लोग अनंत काल तक इससे संक्रमित होते रहेंगे और अस्पतालों में इसका महंगा इलाज जारी रहेगा। दुनिया के जो महारथी इस खेल से जुड़े हैं उनके बयानों से इसके संकेत मिलने लगे हैं।
दुनिया भर को टीकों का आपूर्ति करने वाली सबसे बड़ी कंपनी सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया कोरोना के टीके भी बना रही है। ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन सीरम इंस्टीच्यूट में बन रही है। इसके सीईओ अदार पूनावाला ने एक कारोबारी अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा है कि अगर पूरी आबादी को टीका लगा दिया जाए तब भी टीके की जरूरत खत्म नहीं होगी। उन्होंने कहा है कि अगले 20 साल तक कोरोना का संक्रमण होता रहेगा और टीके की जरूरत बनी रहेगी। उन्होंने निमोनिया, चेचक, पोलिया आदि के टीके की याद दिलाई और कहा कि इनमें से किसी वैक्सीन की जरूरत खत्म नहीं हुई है। उन्होंने उदारतावश 20 साल कह दिया पर उनकी बातों का संकेत यह है कि कोरोना की वैक्सीन अनंतकाल तक रहेगी।
अदार पूनावाला से पहले वैक्सीन के खेल के अंतरराष्ट्रीय महारथी बिल गेट्स ने कहा था कि इसकी वैक्सीन आ जाने से दुनिया पहले की तरह नहीं हो जाएगी। उन्होंने दूसरी पीढ़ी की वैक्सीन की बात कही थी। यानी अभी पहली पीढ़ी की वैक्सीन आ रही है वह सभी लोगों को लगवा दी जाएगी और लोगों का जीवन काफी हद तक सुरक्षित हो जाएगा। पर यह दुनिया के पहले जैसा हो जाने की गारंटी नहीं है। वैक्सीन की दूसरी पीढ़ी आएगी, जो पहली से बेहतर होगी और वह टीका लगेगा तब जाकर दुनिया पहले जैसी होगी। इस काम में भी कई साल तो लगेंगे ही और इस बीच कोई गारंटी नहीं होगी कि कोई दूसरा वायरस नहीं आएगा।
बहरहाल, लंबे समय तक इस वायरस के टिके रहने का दूसरा पहलू इलाज का है। यह एक संक्रामक रोग है यानी छूत से लगने वाली बीमारी है और इसी वजह से अस्पतालों में इसके लिए अलग से वार्ड बनाए गए हैं। ये अलग वार्ड भी अब स्थायी रूप से रहने वाले हैं और इसकी वजह से इसका इलाज भी बहुत महंगा होगा। जिस तरह किसी जमाने में टीबी के अलग वार्ड होते थे और उस बीमारी को खत्म करने के लिए दशकों तक अभियान चला था। कुछ कुछ उसी तरह का अभियान कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए चलाना होगा। लेकिन तब तक महंगा टीका, महंगाई दवाएं और अस्पतालों में महंगा इलाज चलता रहेगा।
(लेखक शशांक रॉय वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनकी निजी राय है)