वरुथिनी एकादशी : 24 अप्रैल, गुरुवार

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भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना से होगी मोक्ष की प्राप्ति
वरुथिनी एकादशी व्रत से लगेगा भाग्य में चार चाँद

भारतीय संस्कृति के हिन्दू धर्मशास्त्रों में प्रत्येक माह की तिथियों का अपना खास महत्व है। मास व तिथि के संयोग होने पर ही पर्व मनाया जाता है। सनातन धर्म में व्रत त्यौहार की परम्परा अनादिकाल से चली आ रही है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि चान्द्रमास में दो बार एकादशी तिथि पड़ती है, जिसकी अलग-अलग पहचान है। सबकी अपनी अलग-अलग महिमा है। तिथि विशेष पर पूजा-अर्चना करने से मनोरथ की पूर्ति के साथ ही सर्वसंकटों का निवारण भी होता है। वैशाख मास में कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि की विशेष महिमा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार वरूथिनी एकादशी के दिन, भक्त भगवान वामन की पूजा और अर्चना करते हैं जो भगवान विष्णु के अवतार हैं। शाब्दिक अर्थ में, वरुथिनी का अर्थ है ‘संरक्षित’ और ऐसा माना जाता है कि वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से विभिन्न नकारात्मकताओं और बुराइयों से भक्तगण को सुरक्षा मिलती है।

प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि वैशाख कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि वरुथिनी एकादशी के नाम से जानी जाती है। इस बार वैशाख कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि 23 अप्रैल, बुधवार को सायं 4 बजकर 44 मिनट पर लगेगी जो कि 24 अप्रैल, गुरुवार को दिन में 2 बजकर 33 मिनट तक रहेगी। शतभिषा नक्षत्र 23 अप्रैल, बुधवार को दिन में 12 बजकर 08 मिनट से 24 अप्रैल, गुरुवार को दिन में 10 बजकर 50 मिनट तक रहेगा, तत्पश्चात् पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र सम्पूर्ण दिन रहेगा। जिसके फलस्वरूप 24 अप्रैल, गुरुवार को यह व्रत रखा जाएगा। वरूथिनी एकादशी का पालन करने का महत्व कई पुराणों में वर्णित है और भगवान कृष्ण भी कहते हैं कि भक्त अपने बुरे भाग्य को बदल सकते हैं और इस एकादशी का पूरे अनुष्ठान और उपवास के साथ पालन करके मोक्ष भी प्राप्त कर सकते हैं। भक्त वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर सुख-समृद्धि, और सौभाग्य प्राप्त करते हैं। भविष्यपुराण के अनुसार इस दिन जुआ खेलना, अधिक निद्रा लेना, पान खाना, दन्तधावन, परनिन्दा, चुगली, चोरी, हिंसा, भोग-विलास, क्रोध एवं असत्य भाषण करना पूर्णतः वर्जित है। इनको अपनाने से जीवन में एकादशी के व्रत का पुण्यफल नहीं मिलता। इस विशेष दिन पर दान और पुण्य के विभिन्न कार्य करने से, भक्त अपने पूर्वजों और देवताओं के दिव्य आशीर्वाद से धन्य हो जाते हैं।

व्रत का विधान – ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर गंगा-स्नानादि करना चाहिए। गंगा स्नान यदि सम्भव न हो तो घर पर ही स्वच्छ जल से स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करके अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात् वरुथिनी एकादशी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन व्रत उपवास रखकर जल आदि कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। विशेष परिस्थितियों में दूध या फलाहार ग्रहण किया जा सकता है। आज के दिन सम्पूर्ण दिन निराहार रहना चाहिए, चावल तथा अन्न ग्रहण करने का निषेध है। साथ ही तेल से बने हुए पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। भगवान् श्रीविष्णु की विशेष अनुकम्पा-प्राप्ति एवं उनकी प्रसन्नता के लिए भगवान् श्रीविष्णु जी के मन्त्र ‘ॐ नमो नारायण’ या ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का नियमित रूप से अधिकतम संख्या में जप करना चाहिए। भगवान् श्रीविष्णु जी की श्रद्धा, आस्था भक्तिभाव के साथ आराधना करके पुण्य अर्जित करना चाहिए, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि, आरोग्य व सौभाग्य में अभिवृद्धि बनी रहे। मन-वचन कर्म से पूर्णरूपेण शुचिता बरतते हुए यह व्रत करना विशेष फलदायी रहता है। आज के दिन ब्राह्मण को यथा सामर्थ्य दक्षिणा के साथ दान करके लाभ उठाना चाहिए।

पौराणिक कथा – प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा राज्य करते थे। वह अत्यंत दानशील तथा तपस्वी थे। एक दिन जब वह जंगल में तपस्या कर रहे थे, उसी समय एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा। राजा पूर्ववत् अपनी तपस्या में लीन रहे। कुछ देर बाद पैर चबाते चबाते भालू राजा को घसीटकर जंगल में ले गया। राजा बहुत घबराया, मगर धार्मिक और अहिंसक प्रवृत्ति के होने के कारण उन्होंने भगवान श्रीविष्णु से करुण प्रार्थना की। उसकी पुकार सुनकर भगवान श्रीहरि विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने चक्र से भालू को मार डाला। राजा को दुःखी देखकर भगवान श्रीविष्णु बोले- हे वत्स ! शोक मत करो। तुम मथुरा जाकर वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। जिसके प्रभाव से पुनः सुदृढ़ अंगों वाले हो जाओगे। इस भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था। भगवान की आज्ञा मानकर राजा मान्धाता ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक वरूथिनी एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से राजा शीघ्र ही पुनः सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया। इसी एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता को स्वर्ग की प्राप्ति हुई।

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