रोडसोलर से धड़धड़ाते हुए निकले पांच साल

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हालांकि 2014 के चुनावी माहौल में संभावना यही दिख रही थी यह दौर उनके लिए स्वर्णयुग से रत्ती भर भी काम नहीं होने वाला। वह देश का अकेला ऐसा चुनाव था, जिसमें कुछ बाबाओं ने सत्ता में आने जा रही पार्टी की प्रत्याशी सूची में बाकायदा अपने लिए कोटा मांगा, जो उन्हें मिला भी। बाबा रामदेव हरियाण और बंगाल में अपने एक-एक बंदे को टिकट दिलाने और जितवाने में कामयाब रहे।

अपनी धार्मिक हनक के लिए मशहू कई बाबाओं और साध्वियों के लिए पांच साल काफी बुरे गुजरे है। हालांकि 2014 के चुनावी माहौल में संभावना यही दिख रही थी यह दौर उनके लिए स्वर्णयुग से रत्ती भर भी काम नहीं होने वाला। वह देश का अकेला ऐसा चुनाव था, जिसमें कुछ बाबाओं ने सत्ता में आने जा रही पार्टी की प्रत्याशी सूची में बाकायदा अपने लिए कोटा मांगा, जो उन्हें मिला भी। बाबा रामदेव हरियाण और बंगाल में अपने एक-एक बंदे को टिकट दिलाने और जितवाने में कामयाब रहे। जबकि श्री रविशंकर की पहल पर एक सांसद दिल्ली से चुनकर आया। लेकिन अभी जारी आम चुनाव में राजनीतिक वाले साधु-सन्यासी हशिए पर दिख रहे है। पहले से राजनीति में जमी उमा भारती मंत्री पद छोड़ने के बाद चुनाव नहीं लड़ रही है जबकि साक्षी महाराज का टिकट कटते-कटते बचा है।

अलबत्ता लखनऊ में कांग्रेस की तरफ से आचार्य प्रमोद कृष्णम जरूर राजनीति में बाबावाद की मंद पड़ती लौ को जलाए रखने में जुटे है। राजनीति से जरा हटकर देखें तो पिछले पांच साल भारत के बाबा-साध्वी परिवेश पर किसी रोडरोरल की तरह धड़धड़ाते हुए निकल गए है। लगभग 10 हजार करोड़ की प्रॉपटी वाले गुजरात के हाई-प्रोफाइल संत आसाराम बापू लाख कोशिशों के बावजूद बलात्कार की सजा पाकर जेल काट रहे है। यही हाल उनके सुपुत्र नारायण साई का भी है। सिरसा में अपने जगतविख्याता डेरे से हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में विराट शक्ति बन गए सुरमीत बाबा राम रहीम का राजनीति से जुड़ाव ज्यादा गहरा था। पिछले आम चुनाव में उन्होंने बीजेपी को खुला समर्थन दिया था।

लेकिन चंडीगढ़ हाईकोर्ट के सामने कोई 40 मौतों के सबब बने बहुत बड़े बबाल के बाद वे भी आजकल जेल में ही है। राम रहीम से पहले सरकार से सीधी टक्कर लेने की कोशिश हरियाण में सतलोक आश्रम चलाने वाले रामपाल जी महाराज ने की थी। ख्याती उनकी भी बीजेपी समर्थक वाली ही थी, लेकिन अदालत के हुक्म की तालीम न होने देना उनके लिए भारी पड़ा और वे भी अभी जेल में है। चटख लाल रंग से बुनी अपनी लकदक अल्ट्रामॉडर्न जीवन शैली और आशीर्वाद की अतिशय ऐद्रिक ग्लैमरस स्टाइल के लिए चर्चित सुखविंदर कौर उर्फ राधे मां कई संगीन आरोपों में जेल जाने के बाद जल्द ही बाहर आ गई और अपनी अध्यात्मिक गतिविधियां वे फिर से शुरू ककर चुकी है। हालांकि पहले वाले आभामंडल दोबारा हासिल करने में उन्हें शायद कुछ समय लगे।

यह सुविधा दिल्ली और आस-पास के कुछ अन्य शहरों में अध्यात्मिक विश्वविद्यालय चलाने वाले वीरेन्द्र देव दीक्षित को नहीं मिल पाएगी, क्योंकि अपने कई परिसरों में मौजूद लड़कियों की बरामदगी के बाद से वे फरार है। मध्य प्रदेश के मशहूर राजनीतिक (गृहस्थ) संत उदय सिंह देशमुख यानी भैय्यूजी महाराज तो बेचारे इतने भी सौभाग्यशाली नहीं रहे कि जीवित रूप से चर्चा में आ सकें। नई-नई पत्नी बनी अपनी एक सहायिका और उसके क्राइम पार्टनर की ब्लैकमेलिंग से तंग आकर उन्होंने पिछले साल खुदकसी कर ली। ऐसी घटनाएं पिछले पांच साल में और भी बड़ौतरी हुई है सो यह बात किसी के दिमाग में आ सकता है कि शायद मोदी सरकार और उत्तर भारत की तमाम बीजेपी राज्य सरकारों की सख्ती या उनकी प्रो. ऐक्टिव भूमिका का इनके पीछे कोई हाथ हो।

चंद्रभूषण
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

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