रामनगरी में प्रियंका वाड्रा

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शुक्रवार को कुमारगंज से कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा ने रोड शो करते हुए आयोध्या में महुनाम गढ़ी पहुंचकर पूजा-अर्चना की लेकिन श्रीराम लला के दर्शन से दूरी बनाये रखी। पूर्वाचल प्रभारी के तौर प्रियंका का यह दूसरा रोड शो था। अयोध्या यात्रा में श्रीराम जन्म स्थल तक वे जाएंगी या नहीं इस पर सभी की जनर थी। ऐसा इसलिए भी कि प्रयागराज से वाराणसी की जलमार्ग यात्रा में उन्होंने मंदिरों के दर्शन किये और यही नहीं मिर्जापूर क्षेत्र में एक प्रसिद्ध मजार पर चादरपोशी भी की। सबको आदर सबका ध्यान यह कांग्रेस का घोषित पुराकथन है। यह बात और कि वोट बैंक की सियासत में यह संतुलन कई बार चुनौतिपूर्ण साबित होता है जिसका शिकार स्वघोषित सेकुलर पार्टियां रही है। राहुल गांधी भी अपनी अयोध्या यात्रा में हनुमान गढ़ी गये थे लेकिन श्रीराम लला के दर्शन से दूरी बनाये रखी थी। यह दूरी अयोध्या पहुंचकर प्रियंका वाड्रा ने भी बनाये रखी। यह दूरी की सियासत वैसे भी कांग्रेस के लिए स्वाभाविक है। बाबरी ढाचा विध्वंस के पहले तक कांग्रेस पसंदीदा पार्टी के रूप में मुस्लिमों के बीच अपनी पहचान बनाये हुए थी पर ध्यंस के बाद खास तौर पर यूपी और बिहार जैसे बड़े राज्यों में मुस्लिमों ने क्षेत्रीय दलों सपा-बसपा और राजद पर भरोसा जताया।

हांलाकि जिन राज्यों में क्षत्रपों का उभार नहीं रहा वहां कांग्रेस के साथ ही मुस्लिम रहे उसे ही वोट किया। पर बदली परिस्थितियों में देश की बहुसंख्यक अल्पसंख्यक आबादी जानती है कि केन्द्र की सत्ता में कांग्रेस की संभावना यदि बनती है तो फिर क्यों ना उसी के हाथ को मजबूत किया जाए। इधर हाल के वर्षों में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जिस तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नोटबंदी, जीएसटी और राफेल जैसे मुद्दों पर आक्रामक ढंग से घेरने की कोशिश की है वो छवि और शैली मुस्लिमों को रास आ रही है। उन्हें लगता है कि भाजपा के मंसूबे पर कांग्रेस ही लगाम लगा सकती है। देश भर में कांग्रेस पार्टी की अपनी मौजूदगी है। कांग्रेस को लेकर मुस्लिममों की सोच में हो रहे बदलाव को गुजरात विधानसभा चुनाव से लेकर कुछ महीने पहले हुए राजस्थान छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के चुनाव नतीजों में महसूस किया जा सकता है।

जनेऊधारी हिन्दू से लेकर शिवभक्त की छवि में परिवर्तन राहुल गांधी फिर भी मुस्लिमों के लिए स्वीकार्य हैं। उन्हें लगता है कांग्रेस के शासन में उनकी तहजीब और अकीदा को कोई खतरा नहीं है। उसकी पुष्टि में उनके पास पांच-छह दशकों का तजुर्बा है पर इन पांच वर्षों में उन्हें लगता है कि उनकी सांस्कृतिक पहचान को भाजपा के शासन में बदलने की सुनियोजित कोशिश हुई है। तीन तलाक के मसले पर भाजपा की अति सक्रियता से पहले से चले आ रहे डर में और इजाफा हुआ है। तमाम कोशिशों के बावजूद भाजपा अपनी मुस्लिम विरोधी छवि से मुक्त नहीं हो पाई है। और नरम हिन्दुत्व की ओर बढ़ने के बावजूद कांग्रेस की सेकुलर छवि बरकरार है।

इसी के कारण अयोध्या विवाद से एक निश्चित दूरी कांग्रेस ने बना रखी है। ताकि मुस्लिमों की नाराजगी से बचा जा सके। यूपी जैसे बड़े और महत्वपूर्ण राज्य में यदि मुस्लिम कांग्रेस की तरफ लौट गये तो पार्टी एक नये मुकाम पर पहुंच सकती है। 20 फीसदी वोट मायने रखते हैं। यहां 35-40 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोट नतीजों को बदलने की ताकत रखते हैं। तो वोटों की ऐसी परिस्थिति में प्रियंका वाड्रा की श्रीराम लला से दूरी समझी जा सकती है। ठीक है, भाजपा इस मामले पर उन्हें घेर रही है तंज कस रही है और सवालों की झड़ी लगा रही है। लेकिन कांग्रेस का सियासी वैशिष्टय यही है कि उसे सबको साधने के सवाल पर घेरा नहीं जा सकता। जबकि भाजपा की ऐसी किसी भी कोशिश पर हर तरफ से सवाल उठते रहते हैं।

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