मोदी सरकार की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने देश में छाई मंदी को दूर करने के वास्ते महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए घरेलू कंपनियां के लिए कारपोरेट टैक्स 8 फीसदी घटाया है। कैपिटल गेन पर भी सरचार्ज बढ़ोतरी वापस ले ली गई है। उम्मीद की जा रही है कि इससे बड़ी संख्या में रोजगार पैदा होगा और इस तरह बेरोजगारों की लंबी कतार में भी कमी आएगी। ऐसे समय में जब भारतीय अर्थव्यवस्था एक कठिन दौर में पहुंच गई है, देश का सकल घरेलू उत्पाद 5 फीसदी पर पहुंच गया है, तब मोदी सरकार से ऐसे ही किसी बड़े ऐलान की उम्मीद थी। बाजार ने भी जिस तरह घोषणाओं का स्वागत किया है, वह दर्शाता है कि कारपोरेट जगत में एक नई उम्मीद का संचार हुआ है। करों में कटौती करके उद्यमियों को राहत दी गई है। देखना होगा कि कारपोरेट जगत आने वाले दिनों में कितने हाथों को काम दे पाता है। सरकार की मंशा स्पष्ट है कि वैश्विक परिदृश्य में देश के भीतर धीरे-धीरे मंदी को दूर करने की जिम्मेदारी अब कंपनियों पर है। करों में रियायत से कंपनिां उत्दादन क्षमता बढ़ा सकेंगी।
इन रियायतों के साथ उस सेक्टर की तरफ भी सरकार को इसी शीघ्रता के साथ ध्यान देना होगा, जो अपने सबसे बुरे दौर में है। बात कृषि जगत की है। कृषि के क्षेत्र में किसानों को दोगुनी आमदनी के हालात पैदा होने का इंतजार है। हालांकि कृषि मंत्रालय की तरफ से इस बाबत कमद तो उठाए गए हैं, लेकिन वे संकट में है। सीजनल पैदावार में उसे उत्पाद का सही दान नहीं मिल पाता और यदि वो ठहर कर अपने उत्पाद को बेचना चाहे तो उस हिसाब से ग्राम पंचायतों में भंडारण गृह की व्यवस्था नहीं है। औने-पौने दामों में उत्पाद की बिक्री और सूखा का अति जल वृष्टि से फसलों में इंश्योरेंस यानी नुकसान होने पर मुआवजे की दिशा में सरकार की तरफ से कुछ कदम उठाए गए हैं, लेकिन उनके अनुपालन को लेकर शिकायतें बनी रहती हैं। यह ठीक है कि लागत कम हो, सरकार इस दिशा में पहल कर रही है। जीरो बजट खेती की बात हो रही है पर इसकी व्यवहारिकता को लेकर भी कई सवाल उठाए जा रहे हैं। इसलिए आकार में भी एक बड़े ग्रामीण परिवेश में लोगों की जेब की भी समय रहते चिंता किये जाने की जरूरत है।
इसके लिए ग्रामीण स्तर पर केन्द्र की तरफ से चिंता किये जाने की जरूरत है। इसके लिए ग्राणीण स्तर पर केन्द्र की तरफ से संचालित योजनाओं पर ज्यादा पैसा खर्च किए जाने की आवश्यकता है। अर्थशास्त्रियों की राय है कि ग्रामीण स्तर पर चल रही योजनाओं की रफ्तार बढ़ाये जाने की जरूरत है ताकि लोगों को गांवों में काम मिल सके। जब उनकी जेब में पैसे होगा तब वे सामान भी खरीदेंगे। इस तरह ही मंदी के बादल छंट पाएंगे। बीते दिनों पारले जी ने जब कर्मचारियों की छंटनी की थी तब यकी कारण बताया था कि गांव-देहात में उनका पांच रुपये का बिस्कुट नहीं बिक पा रहा है। यह अच्छी बात है कि संगठित क्षेत्र में सरकार की तरफ से बड़ी पहल हुई है। यह अच्छी बात है कि संगठित क्षेत्र में सरकार की तरफ से बड़ी पहल हुई है पर इसी साथ ध्यान देना होगा सामान्य लोगों की जेब में पैसा भी पहुंचे। वैसे उम्मीद की जा रही है कि हाल-फिलहाल की पहले से तस्वीर बदलेगी।