आज जैसे ही तोताराम आया, हमने कहा- ले संभाल, अपने अटल जी को एक वैज्ञानिक श्रद्धांजलि। बोला- क्या हुआ? हमारा देश तो हमेशा से ही वैज्ञानिक दृष्टि वाला रहा है। शून्य का आविष्कार हमने ही तो किया था। हमने कहा-लेकिन केवल शून्य से काम नहीं चलता। उससे पहले कोई संख्या तो होनी चाहिए। इसे चाहे तो तू इस तरह समझ सकता है कि केवल थ्योरी नहीं, उसका कार्यान्वयन भी होना चाहिए। जैसा कि तुम कहा करते हो कि जर्मनी वाले हमारे वेदों से सारा ज्ञान निकाल कर ले गए। जब कोई केवल गर्व और बातें करता है तो उसकी यही हालत होती है। दुनिया जाने कहां से कहां पहुंच गई और तुम अपने विश्वविद्यालयों में पढ़ाओ ‘भूत बाधा ‘। क्या इसी के लिए उस ब्राह्मण ने देश भर में घूम-घूमकर चंदा मांगकर विश्वविद्यालय बनवाया था? बोला- क्या बात है? आज तो ऐसे धुआंधार हो रहा है जैसे मोदी जी पर कन्हैया कुमार या कांग्रेस पर मोदी जी।
हमने कहा- हम ज्ञान-विज्ञान की बात कर रहे हैं और तू राजनीति की बातें करके बात को घुमा रहा है। बोला- राजनीति क्या कोई विज्ञान की विरोधी होती है? ध्यान से समझेगा तो तुझे पता लगेगा कि केवल हमारी पार्टी ही वैज्ञानिक विचारधारा वाली है। गांधी जी ने क्या किया? अच्छे भले मशीनी कपड़े जलाकर लगे चरखा चलाने। उसके बाद उनके चेले आए तेरे नेहरू जी जिन्होंने नारा दिया- आराम है हराम। अरे भाई, क्या सारा जीवन ऐसे ही हाय तौबा में निकाल दें? आराम करने के लिए क्या दूसरा जन्म लेंगे। और फिर आए ‘जय जवान: जय किसान ‘ वाले शास्त्री जी। या तो सीमा पर शहीद होवो या फिर खेत में धूल में सिर दो। कहीं भी कोई वैज्ञानिक बात नहीं। लेकिन अटल जी ने आते ही नारा दिया-जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान। और मोदी जी यही तक नहीं रुके और पंजाब की एक निजी यूनिवर्सिटी में इस नारे में एक और आयाम जोड़ दिया- जय अनुसन्धान।
बिना अनुसंधान के विज्ञान का क्या मतलब? हमने कहा- तभी जिस मंत्री को देखो लगा हुआ है अनुसन्धान करने में ङ कोई बतख के पखों से ऑक्सिजन निकाल रहा है तो कोई डार्विन को झूठा सिद्ध कर रहा है। कोई मन्त्रों से रक्तचाप और डाइबिटीज का इलाज कर रहा है। जब कि असलियत यह है आयुर्वेद, योग और स्वदेशी से कुछ भी कर सकने वाले योगी बालकृष्ण की तबियत देशी गाय के शुद्ध घी-दूध से बनी मिठाई खाने से हुए ‘फूड पोइजनिंग ‘ के कारण बिगड़ गई। अब कौनसे विज्ञान पर क्या विश्वास करें? बोला- तुझ में यही खराबी है कि बात को समझे बिना भाषण देने लग जाता है। बिना ठीक से समझे और बिना उचित प्रसंग-सन्दर्भ के नोटबंदी, जीएसटी, एनआरसी, सीएए या सीएबी की तरह कुछ भी शुरू कर देता है। अखबार वाले टीआरपी बढ़ाने के लिए किसी भी समाचार को अनावश्यक रूप से रोचक बनाने के लिए उछल-कूद करते रहते हैं।
जऱा पूरा समाचार पढ़कर, समझकर बात किया कर। हमने कहा- तो फिर तू ही बता दे सही बात। बोला- पहली बात तो यह कि केवल हिन्दू धर्म वाले ही भूत प्रेतों की बात नहीं करते। इस्लाम वाले भी झाड-फूंक और गंदे ताबीज से शैतानी बाधाओं का इलाज़ करते हैं। वेटिकन में तो बाकायदा भूत भगाने का कोर्स करवाया जाता है। अपने यहां आदिवासी इलाकों में तो यूरोप में ईसाइयों द्वारा ‘विच हंटिंग ‘ की तरह औरतों को चुड़ैल बताकर जला देने की घटनाएं सामने आती ही रहती हैं। हमने कहा- इसका मतलब सभी धर्म विज्ञान विरोधी होते हैं। भले ही अपने यहां सरकार द्वारा समर्थित धर्म हो या यूरोप में तथाकथित रूप से सत्ता से अलग किया गया धर्म ईसाइयत हो। बोला- हमारे बीएचयू वाले जिस बीमारी की बात कर रहे हैं वह वास्तव में स्कीजोफ्रेनिया नामक एक मानसिक बीमारी है। यह तो राष्ट्रभक्त विद्वानों ने इसे संस्कृत नाम दिया है। हमने कहा- लेकिन हमें तो इसमें चालाकी लगती है। इसमें उन काल्पनिक, अदृश्य और अस्तित्त् वहीन शक्तियों का भ्रम फैलता है जो अंधविश्वास और झूठ हैं। सीधा-सीधा स्कीजोफ्रेनिया क्यों नहीं कह देते ? बोला- यह संसार भौतिक है, पंच भूतों से बना है इसलिए इसकी सभी बाधाएं ‘भूत बाधाएं ‘ ही तो हैं।
रमेश जोशी
(लेखक देश के वरिष्ठ व्यंग्यकार और ‘विश्वा ‘ (अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, अमरीका) के संपादक हैं। ये उनके निजी विचार हैं। मोबाइल -09460155700।
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