भाजपा में 30 महीनों से कोषाध्यक्ष नहीं अमित शाह व राष्ट्रीय कार्यकारिणी में मतभेद

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भाजपा
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आमतौर पर राजनीतिक दल संविधान से बंधे है और जैसा उनका संविधान कहता है पार्टी उसपर अमल करती है। वहीं देस में जब कोई लोकतांत्रिक पार्टी चुनाव जीतकर सत्ता मं आती है तो उक्त पार्टी की सरकार देश के संविधान पर अमल करती है। बहरहाल, कम से कम एक मामले में न तो भाजपा और न ही पार्टी की केन्द्र में मोदी सरकार नियमों के मुताबिक चलने के लिए तैयार है। दरअसल 30 महीनों से भाजपा बिना कोषाध्यक्ष के चल रही है। सूत्रों के मुताबिक इस मामले पर पार्टी में गंभीर मतभेद है। मुखिया अमित शाह जिन्हें कोषाध्यक्ष बनाना चाहते हैं वो राष्ट्रीय कार्यकारणी के कुछ सदस्यों को मंजूर नहीं। इतना ही नहीं इस पर कार्यकारणी की पसंद अमित शाह को नहीं भा रही है। पार्टी के भीतर ये अवाजें उठने लगी हैं कि फिर पार्टी बिना कोषाध्यष के काम कैसे कर रही है? कहीं कुछ घालमेल तो नहीं है? फिलहाल दबे सुर में निशाने है पर अमित शाह हैं, लिकन माना जा रहा है कि मतभेद नहीं सुलझे तो आम चुनाव से पहले भाजपा में कोई बड़ा धामाका हो सकता है।

पार्टी संविधान पृष्ठ 13 पर कहता है कि पार्टी अध्यक्ष राष्ट्रीय कार्यकारिणी के 120 सदस्यों में से अधिक से अधिक 13 उपाध्यक्ष 9 महामंत्री एक महामंत्री (संगठन) अधिक से अधिक 15 मंत्री तथा एक कोषाध्यक्ष को मनोनीत करेगा। मनोनीत किए जाने वाले पदाधिकारियों पर पार्टी के कामकाज की अलग-अलग जिम्मेदारी होगा। संविधान में किए गए इस प्रावधान के विपरीत इस पार्टी में बीते 30 महीनों से कोषाध्यक्ष का पद खाली पड़ा है। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह पर राष्ट्रीय कार्यकारिणी के किसी सदस्य को मनोनीत नहीं कर पा रहे है। दरअसल भारतीय जनता पार्टी के कोषाध्यक्ष का पद 16 जनवरी 2016 को तब रिक्त हो गया जब तत्कालीन कोषाध्यक्ष पूीयूष गोयल को केन्द्रीय कैबिनेट में जगह दे दी गई। गोयल को स्वतंत्र प्रभार के साथ खनन मंत्रालय दिया गया। इसके बाद सितंबर 2017 में रेल मंत्रालय से सुरेश प्रभु की छुट्टी के बाद गोयल को रेलवे का प्रभार दिया गया। इसके बाद एक बार फिर हाल ही में वित्त मंत्री अरुण जेटली की खराब तबीयत के चलते वित्त मंत्रालय का भी प्रभार दिया गया। वही पीयूष गोलय के केन्द्रीय कैबिनेट में आने और प्रभारों में बदलाव के बीच पार्टी में एक व्यक्ति – एक पद की नीति के चलते पार्टी बिना कोषाध्यक्ष के रही।

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पार्टी मे एक कोषाध्यक्ष का काम पार्टी के फंड को संभालने का है। इस काम में पार्टी के दफ्तरों का खर्च, चुनाव प्रचार का खर्च, अध्यक्ष एवं अन्य पदाधिकारियों के पार्टी के काम से यात्रा का खर्च जैसे महत्वपूर्ण काम शामिल हैं। जाहिर है, सवाल खड़ा होता है कि जब जुलाई 2016 से पार्टी के पास कोई कोषाध्यक्ष नहीं है तो यह काम बीते 30 महीनों के दौरान कौन कर रहा है? दबे सुर से कुछ नेता इस बात को बोलने लगे है।

खासबात है कि चुनावों के खर्च का ब्यौरा चुनावों के खर्च का ब्यौरा चुनाव आयोग को देने का काम भी पार्टी के कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी है। लिहाजा, पीयूष गोयल के बाद खाली पड़े इस पद की जिम्मेदारी बिना कोषाध्यक्ष के कैसे निभाई जा रही है? क्या पार्टी अध्यक्ष ने इस काम के लिए राष्ट्रीय कार्यकारिणी के किसी सदस्य को काम में लगाया है? यदि ऐसा है तो क्यों इस सदस्य को कोषाध्यक्ष मनोनीत नहीं किया गया है? उच्चस्तरीय सूत्रों की माने तो शीर्ष नेतृत्व में पार्टी के नए कोषाध्यक्ष को लेकर मतभेद हैं। पार्टी अध्यक्ष जिसे इस जिम्मेदारी के लिए मनोनीत करना चाहेते हैं वह सदस्य राष्ट्रीय कार्यकारणी को मंजूर नहीं है। वही राष्ट्रीय कार्यकारणी के प्रभावी सदस्यों द्वारा सुझाए गए सदस्य पर पार्टी अध्यक्ष तैयार नहीं है। इस मतभेद के चलते पार्टी बीते 30 महीनों से बिना कोषाध्यक्ष के काम कर रही है। सवाल यही है कि आखिर कैसे यह पार्टी बिना कोषाध्यक्ष के काम कर रही है?

अपडेट नहीं भाजपा की बेवसाइट

भारतीय जनता पार्टी की अधिकारिक वेबसाइट अब भी पुराने ढर्रे पर ही चल रही है। डिजिटल प्लेटफॉम और सोशल मीडिया पर हमेशा अपडेट रहने वाली बीजेपी की बेवसाइट पर अब भी छत्तीसगढ़, एमपी और राजस्थान में बीजेपी की ही सरकारें है। इतना ही नहीं, बेवसाइट पर बेजेपी शासित राज्य सरकारों की लिस्ट में इन तीनों प्रदोशों के टैब पर क्लिक करने पर पूर्व मुख्यमंत्रियों की बेवसाइट खुल रही है।

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