बारिश होने के बाद, बरसात से निपटने के लिए बैठक हर साल जरूरी आयोजित होती है, यद्यपि इस संबंध में दी जाने वाली प्रेस विज्ञप्ति में ज्यादा दिकत नहीं होती, तारीख और नाम बदलकर पिछले सालवाली ही चिपच दी जाती है। इतनी महत्वपूर्ण बैठक की अध्यक्षता वरिष्ठ अधिकारी ही कर सकते हैं, उनके लेट होने के कारण बैठक लेट होती गई और कैंटीन में चाय समोसे ठंडे। परंपरागत लेट लतीफों को फायदा रहा, वे अपने निजी काम करते करते देर से पहुंचे जिसका दोष बिना बताए आने वाली बारिश को ही जाना था, गया। अध्यक्ष गाड़ी में आए, लेकिन सड़क पर पानी भरे गड्ढे, कीचड़ व नालियों में फंसे कचरे की तरफ उन्होंने देखा तक नहीं। अध्यक्ष ने कहा, सभी सड़कों, गलियों की सफाई सही तरीके से होनी चाहिए। जहां बाढ़ आ सकती है वहां से स्थाई अतिक्रमण हटवाएं।
सख्त निर्देश दिए कि नदी किनारे रहने वालों को बरसात शुरू होने से पहले, कहीं भी जाने को कहें। सूचना तंत्र अच्छी तरह से व्यवस्थित हो, नहीं तो लोग बह जाते हैं फिर झूठ बोलना पड़ता है। उन्होंने फिर समझाया कि पिछले साल भी संवेदनशील सड़कों, जलापूर्ति योजनाओं, बिजली की तारों, बाढ़ व भूस्खलन संभावित क्षेत्रों की पहचान करनी रह गई थी। यहां तक कि जेसीबी चालक के फोननंबर नोट करने भी रह गए थे इस बार कर ही लें। यह निर्देश अधिकांश लोगों ने सिर्फ नोट करने के लिए नोट किए। बैठक में जबरदस्ती भेजे कर्मचारियों ने कुछ नोट नहीं किया। स्वास्थ्य विभाग, जल विभाग व खाद्य विभाग को दवाएं राशन व अन्य खाद्य सामग्री वगैरह की उचित व्यवस्था करने बारे कहा। इस बारे सबंधित अधिकारियों ने उचित ढंग से नोट किया योंकि इसमें उनका बहुत फायदा था। सबंधित विभाग वालों ने पिछले साल से बढिय़ा समाज सेवा करने का संकल्प लिया।
बरसात से निपटने के लिए उचित कार्ययोजना बनाने का आग्रह किया। मानव जीवन, समति नुकसान की नियमित रिपोर्ट, रंगीन फोटो, बढिय़ा प्रभावशाली वीडियो तुरंत साझा करने को कहा। अध्यक्ष को पता था पिछले साल भी वही भाषन दिया था, लेकिन उसका असर नहीं हुआ था। बैठक में यह वार्षिक ख्याल भी आया कि जो बच्चे नदी नाले पार कर स्कूल जाते हैं उनके बारे विस्तृत रिपोर्ट बनाने और कारगर कदम उठाए जाने जरूरी हैं। बैठक में बैठे-बैठे लगने लगा कि आधा दर्जन छोटे पुल बनने वाले हैं। कैंटीन वाले ने बड़े आकार के साहबों को कप प्लेट में ताजी चाय पेश की, बाकियों को गर्म कर, बासी परोस दी गई। बैठक खत्म हुई, बाहर काफी कचरा बहकर नालियों में फंस गया था। उसे अच्छी तरह देख सभी ने तय कर लिया कि जब और तेज बारिश आएगी, कचरा खुद उसमें बह जाएगा। कचरा समझ गया, वह बैठक बरसात से न निपटने की तैयारी के लिए की गई थी।
संतोष उत्सुक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)