कुछ लोग होते हैं जो थोड़ी सफलता मिलने पर ही अपने कर्तव्य भूल जाते है। यहीं वे सबसे बड़ी भूल कर देते हैं। उन्हें यह बात पता होनी चाहिए कि उन्हें सफलता तभी मिली है जब उन्हें अपने कर्तव्यों का निर्वहन ठीक प्रकार से किया है।
रामचरितमानस के अनुसार सीता की खोज करते-करते राम और लक्ष्म पहले हनुमान से मिले। हनुमान ने उनकी मुलाकात सुग्रीव से कराई। सुग्रीव को उसके बड़े भाई बाली ने अपने राज्य से निकाल दिया था। उसकी पत्नी रोमा को भी अपने पास ही रख लिया। राम ने सुग्रीव को मदद का भरोसा दिलाया। राम ने अपना वादा निभाया। राम ने बाली को मार कष्किंधा का राजा सुग्रीव को बना दिया। सुग्रीव को बरसों बाद राज्य और स्त्री का संग मिला। वो पूरी तरह राज्य को भोगने और स्त्री सुख में लगा गया। तब वर्षा ऋतु भी शुरू हो चुकी थी।
भगवान राम और लक्ष्मण एक पर्वत पर गुफाओं में निवास कर रहे थे। वर्षा ऋतु निकल गई। आसमान साफ हो गया। राम को इंतजार था कि सुग्रीव आएंगे और सीता की खोज शुरू हो जाएगी। लेकिन सुग्रीव पूरी तरह से राग-रंग में डूबे हुए थे। उन्हें यह याद भी नहीं रहा कि भगवान राम से किया वादा पूरा करना है। जब बहुत दिन बीत गए तो राम ने लक्ष्मण को सुग्रीव के पास भेजा। लक्ष्मण ने सुग्रीव पर क्रोध किया तह उन्हें अहसास हुआ कि विलासिता में आकर उससे कितना बड़ा अपराध हो गया है। सुग्रीव को अपने वचन भूलने और विलासिता में भटकने के लिए सबके सामने शर्मिदा होना पड़ा। माफी भी मांगनी पड़ी। इसके बाद सीता की खोज शुरू की गई। यह प्रसंग सिखाता है कि थोड़ी सी सफलता के बाद अगर हम कहीं ठहर जाते हैं तो मार्ग से भटकने का डर हमेशा ही रहता है। कभी भी छोटी-छोटी सफलताओं को अपने ऊपर हावी ना होने दें। अगर हम छोटी या पारंभिक सफलताओं में उलझकर रह जाएंगे तो कभी बड़े लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पाएंगे।