मुझे नहीं मालूम कि आपके यहां ट्रैफिक सिग्नल्स पर किन्नर नज़र आते हैं या नहीं, लेकिन मैं यह जरूर जानती हूं कि वे आपकी शहरी जिंदगी में मौजूद हैं। मैंने उन्हें दिल्ली की भरी-पूरी सड़कों पर देखा है। हमारे यहां वे शहर की सड़कों खासकर ट्रैफिक सिग्नल्स पर भीख मांगते नज़र आते हैं। उनके साथ कुछ (नादान) लोग जो बुरा सुलूक करते हैं, उस पर दिल दुखता है। इसलिए जब नीशा की कहानी नज़र से गुजरी तो दिल उदास होने के साथ खुश हुआ। नीशा राव का ताल्लुक राजस्थान से भी है। वह अपने घर वालों के साथ लाहौर में रहती थीं। ट्रांसजेंडर होना उनके नसीब में लिखा था।
आमतौर पर ऐसे बच्चों के साथ घर वाले अच्छा सुलूक नहीं करते लेकिन नीशा के परिजनों ने उसे मुहब्बत से पाला। नीशा ने लाहौर से मैट्रिक किया, फिर अपनी ट्रांसजेंडर दोस्तों के साथ कराची का रुख किया। वे कहती हैं- मैं समझ चुकी थी कि मेरी दुनिया, मेरी हकीकत भाई-बहनों से अलग है। घर भर की चहेती और अम्मां-अब्बा की खूब लाडली होने के बावजूद घर वालों के लिए बेहतर यही था कि मैं किसी दूसरे शहर में रहूं। बहरहाल कराची भी मेरे लिए मां की तरह ही है, जिसने मुझे पनाह दी। जमाने से मुकाबला करना सिखाया। यहीं गली-कूचों में अपने लिए कुछ ख्वाब देखे, जो आज शानदार हकीकत बन चुके हैं। यहीं जामिआ (यूनिवर्सिटी) कराची से इंटरनेशनल रिलेशंस में मास्टर्स किया। फिर 2018 में सिंध मुस्लिम लॉ कॉलेज से वकालत का इम्तिहान पास किया। वे कहती हैं, मैं कुबूल करती हूं कि इस पूरे तालीमी सफ़र के दौरान मुझे यूनिवर्सिटी प्रशासन, टीचर्स या साथी स्टूडेंट्स की ओर से किसी भी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा। कभी किसी ने मेरे साथ न बदतमीजी की, न ही मेरा मजाक उड़ाया। यही सकारात्मक माहौल मेरी कामयाबी की जमानत बना।
वे यह भी कहती हैं, मेरे एक उस्ताद ने मुझे कानून की तालीम हासिल करने और वकील बनने का मशविरा दिया था। वे जानते थे कि मुझे पुलिस से बहुत डर लगता है। एक बार जब मैं पुलिस वालों की बदसुलूकी के चलते डरी-सहमी रो रही थी तो उन्होंने कहा, ‘अगर तुम चाहती हो कि पुलिस वाले तुम्हें डराए नहीं, तुम्हारे साथ बदतमीजी न करें तो कुछ ऐसा करो कि अपनी और अपनी कम्युनिटी की आवाज बन जाओ, ऐसी आवाज जिसे सुना भी जाए और जिसे लोग पहचानते भी हों।’ उनकी बातों का ऐसा असर हुआ कि मैं आज पाकिस्तान की पहली ट्रांसजेंडर वकील बन चुकी हूं।
नीशा बताती हैं कि अब तक मैं शायद 50 से ज्यादा केस देख चुकी हूं, जो ट्रांसजेंडर्स के ही थे। ये भीख मांगने, नाच-गाने या अनैतिक गतिविधियों में संलिप्त होने के केसेस थे। वे कहती हैं, उनके सामने असल मसला जमानत का होता है कि उन बेचारों के पास न पैसे होते हैं, न ही ऐसे संसाधन या पहुंच जिससे वे जमानत करा सकें। अब मैं उनके ये छोटे-मोटे काम करा देती हूं। वैसे तालीम ही वह एकमात्र रास्ता है, जिस पर चलकर ट्रांसजेंडर्स की किस्मत बदल सकती है। अपना दर्द बयां करते हुए वह कहती हैं कि हम भी क्या करें, हमें कोई इज्जत वाला रोजगार देता ही नहीं तो पेट पालने के लिए मजबूरन नाच-गाने जैसे काम करने पड़ते हैं। अब यह तो सरकार की जिम्मेदारी है कि वह हमारे लिए नौकरियां उपलब्ध कराए। वे सरकारी दफ्तरों में ट्रांसजेंडर्स के लिए कोटा तय किए जाने की मांग भी करती हैं। नीशा ने ‘ट्रांस प्राइड सोसायटी’ के नाम से एक एनजीओ बनाया है, जो उनकी कम्युनिटी के लिए काम कर रहा है।
जाहिदा हिना
(लेखिका पाकिस्तान की जानी-मानी वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं,ये उनके निजी विचार हैं)