सोनिया गांधी पूरी तरह छोटे मोटे विपक्षी दलों पर निर्भर हो गई हैं। वे समझती हैं कि जैसे यूपीए बना कर उन्होने 2004 में वाजपेयी सरकार को अपदस्थ करने में कामयाबी पाई थी उसी तरह कभी न कभी मोदी को अपदस्थ कर देंगीं। लेकिन काठ की हांडी बार बार नहीं चढती। कांग्रेस की हालत तब इतनी खराब नहीं हुई थी जितनी अब है। राहुल गांधी की हमलावर राजनीति के बावजूद उस की स्थिति में मई 2019 में कोई सुधार क्यों नहीं हुआ, सीटें भले ही आठ बढ़ गई , लेकिन अखिल भारतीय वोट में 1.03 प्रतिशत की गिरावट हुई। कांग्रेस भले ही अब राफेल सौदे में तथाकथित घोटाले का नाम नहीं लेती , मोदी को चोर भी नहीं कहती पर वह यह मानने को तैयार नहीं कि कांग्रेस को झूठ बोलने का नुकसान हुआ। अगर वह यह मान लेती तो भविष्य में झूठ के सहारे राजनीति करने से परहेज करती। वह जिन वामपंथी और क्षेत्रीय दलों के बूते नकारात्मक राजनीति कर रही हैं 2019 के चुनावों में उन का भी सात प्रतिशत वोट भाजपा खा गई।
कांग्रेस अभी तक विश्लेष्ण करने को तैयार ही नहीं है कि जनता उस से इतनी नाराज क्यों है? इसका कारण सिर्फ यूपीए सरकार का भ्रष्टाचार नहीं है , इसकी असली वजह यह है कि समाज के बहुसंयक वर्ग के दिलो-दिमाग में यह बात घर कर गई है कि कांग्रेस सत्ता में बने रहने के लिए उन पर नहीं अलबत्ता मुस्लिम वोट बैंक पर निर्भर है , इसलिए सत्ता में आने पर वह उन्हीं के हित में काम करती है, मनमोहन सिंह का तब यह कहना कि भारत के आर्थिक संसाधनों पर पहला हक अल्पसंयकों का है,आज भी बहुसंयक हिन्दू समाज को चुभता है। जिस तरह राहुल गांधी ने किसी जुमलेबाज से राफेल चोर का जुमला सीख कर कांग्रेस के पैरों पर कुल्हाड़ी मारी थी , ठीक उसी तरह अब कांग्रेस नागरिकता संशोधन क़ानून , जनसंख्या रजिस्टर और नागरिकता रजिस्टर का विरोध कर के अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है। कांग्रेस जब सत्ता में थी तो इन तीनों मुद्दों पर उस का स्टेंड वही था , जो अब मोदी सरकार का है। जनसंख्या रजिस्टर तो पी. चिदम्बरम ने खुद शुरू किया था , जो आज उसी मुद्दे पर मोदी को पांच लोगों से बहस की चुनौती दे रहे हैं।
कांग्रेस के वकील पी. चिदम्बरम , कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी समझते है कि जैसे वे पैसे ले कर अदालत में किसी भी पक्ष में खड़े हो जाते हैं , वैसे ही वे जनता की अदालत में भी किसी एक ही मुद्दे के पक्ष में और फिर उसी मुद्दे के विपक्ष में तर्क देकर अपनी बात मनवा लेंगे। सिर्फ कांग्रेस नहीं , भाजपा भी जब जब अपने वकील नेताओं पर ज्यादा निर्भर रही है , जनता ने उसे सबक सिखाया है। राफेल के मुद्दे पर मोदी का बचाव आम जनता नहीं करती थी , क्योंकि वह तथ्यों से वाकिफ नहीं थी , सिर्फ मोदी भक्त ही मोदी का बचाव करते थे , लेकिन नागरिकता संशोधन क़ानून , जनसंख्या रजिस्टर और नागरिकता रजिस्टर के मुद्दे पर जनता मोदी सरकार के पक्ष में आ कर खडी है। धार्मिक आधार पर भारत के बंटवारे के बाद कांग्रेस की यह दलील किसी भारतीय के गले नहीं उतर रही कि नागरिकता संशोधन क़ानून में मुसलमानों को भी शामिल किया जाना चाहिए थ। न तो यह गांधी का मन्तव्य था , न नेहरु का जब उन्होंने हिन्दुओं और सिखों का जिक्र किया था।
न ही 2003 में बांग्लादेश के अल्पसंयकों को नागरिकता की मांग करते समय मनमोहन सिंह का यह मन्तव्य था। देश की जनता कांग्रेस के दोगलेपन को समझ रही है इसलिए वह तीनों मुद्दों पर मोदी सरकार के साथ है। कांग्रेस का इतिहास राष्ट्रवाद का रहा है ,कम्युनिस्ट खुद को कभी भी राष्ट्रवादी नहीं कहते। वे खुद को अंतर्राष्ट्रीय समझते हैं और अलग अलग देश में एक ही मुद्दे पर उन का स्टेंड अलग अलग होता है। चीन में वह मुसलमानों को कुचल रहे हैं , भारत में वे मुसलमानों को हिन्दुओं के खिलाफ भडका कर देश का अमन-ओ-चेन खराब कर रहे है। सोनिया गांधी की बैठक का बहिष्कार करते हुए यह बात अब ममता बनर्जी ने भी कह दी है। उन कम्युनिस्टों की पिच्छलग्गू बन कर कांग्रेस अपनी हालत उन जैसी न कर ले , जिन का वोट बैंक 15 प्रतिशत से घट कर 2 प्रतिशत रह गया है और सीटें पिछले चार लोकसभा चुनावों में लगातार घट रही हैं। कांग्रेस जितनी जल्दी राष्ट्रवाद और सकारात्मक राजनीति की ओर लौट जाए उस के लिए उतना अच्छा होगा।
अजय सेतिया
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)