तोक्यो ओलंपिक की मशाल में देसी चमक

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नए साल 2020 में तोक्यों में ओलंपिक खेलों का आयोजन होना है। जिस साल यह आयोजन होता है उस साल खेल जगत का सारा फोकस ओलंपिक पर ही केन्द्रित हो जाता है। यह सही है कि भारत ने ओलिंपिक खेलों में बड़े तीर नहीं मारे हैं और इक्का-दुक्का पदक जीतने पर ही हम खुश हो जाया करते हैं। मगर पिछले कुछ सालों में देश में खेलों की शक्ल बदली है और यंग ब्रिगेड ने यह अहसास कराया है कि वह विश्व स्तर पर चमक बिखेरने की क्षमता रखती है। युवा खिलाड़ी पिछले कुछ सालों से जिस तरह का प्रदर्शन कर रहे हैं, उससे लगता है कि इस बार तोक्यो से हमारा दल पिछले ओलिंपिक खेलों के मुकाबले ज्यादा पदक लेकर आ सकता है। भारतीय दल इस बार अगर दो अंकों में मेडल ला सका, वह भी कम से कम एक गोल्ड के साथ, तभी दुनिया हमारे खेल ढांचे का सही दिशा में आगे बढऩा दर्ज करेगी। इस तरह की सफलता पाने में जिनकी सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रहने वाली है, वे हैं हमारे निशानेबाज। 2004 के एथेंस ओलिंपिक में राज्यवर्धन सिंह राठौर ने सिल्वर और 2008 के पेइचिंग ओलिंपिक में अभिनव बिंद्रा ने गोल्ड जीतकर भारतीय निशानेबाजों में यह भरोसा पैदा किया कि उनमें भी ओलंपिक पोडियम पर चढ़ने का मद्दा है। पिछले कुछ सालों में इनसे प्रेरणा लेकर देश में युवा निशानेबाजों की एक फौज खड़ी हो गई है।

इस यंग ब्रिगेड ने आईएसएएसएफ विश्व कपों में एक के बाद एक सफलता हासिल करके उम्मीदें जगा दी हैं। इस बार सौरभ चौधरी और मनु भाकर पर सबकी नजरें टिकी हैं। सौरभ ने 2019 में आईएसएसएफ विश्व कपों में छह गोल्ड और एक ब्रॉन्ज पर निशाना साधा है। ये पदक उन्होंने पुरुषों की 10 मीटर एयर पिस्टल और मिक्स्ड स्पर्धा में जीते हैं। वहीं मनु भाकर ने इस साल आईएसएसएफ विश्व कपों में पांच और दोहा एशियाई चैंपियनशिप में दो स्वर्ण पदक जीते हैं। सौरभ और मनु ने 10 मीटर एयर पिस्टल की मिक्स्ड स्पर्धा में चार स्वर्ण पदक जीते हैं। भारत निशानेबाजी में सिर्फ इन दो निशानेबाजों से उम्मीद लगा रहा है, ऐसा भी नहीं है। इस बार देश के 15 निशानेबाजों ने तोक्यो ओलिंपिक का टिकट कटाया है, जिसमें देश की तीन अनुभवी निशानेबाज अंजुम मौदगिल, अपूर्वी चंदेला और राही सरनोबत शामिल हैं। यह सही है कि ओलिंपिक में भाग लेते समय एक अलग ही तरह का दबाव रहता है, जिस पर कौशल के साथ धडक़नों को काबू में रखकर ही पार पाया जा सकता है। लेकिन भारतीय यंग ब्रिगेड को अब देश के पूर्व दिग्गज निशानेबाजों से प्रशिक्षण मिल रहा है और इनके पिछले एक साल के प्रदर्शनों को देखें तो लगता है कि दबाव इनके लिए कोई खास मायने नहीं रखता। भारतीयों के लिए किसी खेल की सबसे ज्यादा अहमियत है तो वह है हॉकी।

इसमें भले ही भारत को सबसे ज्यादा आठ गोल्ड और एक सिल्वर जीतने का गौरव हासिल है, लेकिन 1980 के मास्को ओलिंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के बाद से हमारी टीम पोडियम पर नहीं चढ़ सकी है। यही नहीं, 2008 के पेइचिंग ओलिंपिक में तो हमारी टीम क्वालिफाई तक नहीं कर सकी थी। टोक्यो के लिए भारतीय टीम ने रूस को हराकर क्वालिफाई तो कर लिया है पर टीम की असली परीक्षा ओलिंपिक में ही होनी है। हमारी टीम भले ही पोडियम पर न चढ़े, बस सेमीफाइनल तक चुनौती पेश कर दे तो भी देश में खुशी की लहर दौड़ जाएगी। पिछले कुछ सालों में भारतीय टीम ने चैंपियंस ट्रॉफी में रजत पदक और वर्ल्ड सीरीज फाइनल्स में कांस्य पदक जीतकर अपने को बिग लीग टीमों में शामिल कराया है। अभी कुछ माह पहले यूरोपीय दौरे पर विश्व की नंबर दो टीम बेल्जियम और स्पेन को हराकर टीम ने दिखाया है कि कोच ग्राहम रीड की देखरेख में तैयारी अच्छे से हो रही है। पर इस तैयारी की सार्थकता तब सिद्ध होगी, जब टीम 40 साल बाद पदक के साथ लौटे। बैडमिंटन, बॉक्सिंग और कुश्ती तीन और ऐसे खेल हैं, जिनमें हम मेडल की उम्मीद कर सकते हैं। बैडमिंटन में पीवी सिंधु ने 2016 के रियो ओलिंपिक खेलों में सिल्वर मेडल जीता था। इस साल विश्व चैंपियनशिप का स्वर्ण जीतने के बाद वह टोक्यो में भी इस पदक की मजबूत दावेदार नजर आ रही हैं।

सिंधु ने फाइनल में जिस तरह जापानी खिलाड़ी नोजोमी ओकुहारा को एक तरफा अंदाज में हराया था, उससे तोक्यो में उनसे गोल्ड की उम्मीद ज्यादा नहीं जान पड़ती। लेकिन विश्व चैंपियनशिप के बाद वह कभी भी रंगत में खेलती नहीं नजर आई हैं। उनके अलावा बी साई प्रणीत ने भी विश्व चैंपियनशिप में पदक जीतकर उम्मीदें जगाई हैं। प्रकाश पादुकोण के बाद यह गौरव उन्हें ही हासिल हुआ है। महिला मुक्केबाज एमसी मैरीकॉम से भी पदक की उम्मीद लगाई जा सकती है। कुश्ती में भारत ने पिछले तीनों ओलिंपिक में पदक जीते हैं। इस बार भी बजरंग पूनिया और विनेश फोगाट इस सिलसिले को आगे बढ़ाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। दोनों ने ही पिछले दिनों विश्व चैंपियनशिप में पदक जीतकर दावेदारी और मजबूत की है। रूस की गिनती दुनिया की खेल महाशक्तियों में होती है। पहले जैसी ताकत तो वह अब नहीं रहा, फिर भी बड़ी मात्रा में पदकों पर कब्जा जमाता रहा है। लेकिन पिछले दिनों डोपिंग को लेकर वाडा ने रूस पर चार साल की पाबंदी लगा दी है। उसके पाक -साफ खिलाडिय़ों के पास अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक समिति के झंडे तले भाग लेने का मौका है। रूस इस फैसले के खिलाफ खेल पंचात जा सकता है लेकिन वहां भी उसे राहत नहीं मिली तो फिर उसकी कमी महसूस की जाएगी। उसकी अनुपस्थिति में खेलों का जलवा फीका पड़ सकता है, लेकिन आईओसी के सामने खेलों को साफ-सुथरा बनाने की चुनौती भी है। देखते हैं, आने वाले दिनों में क्या हालात बनते हैं?

मनोज चतर्वेदी
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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