जिन्दिगी वैल्यू एड करने के वास्ते

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सेहत हो, फाइनेंस हो या रिश्ते हर किसी की जिंदगी में ग्रे क्लाउड्स आते ही हैं। लेकिन हर बाधा में कोई न कोई सिल्वर लाइनिंग जरूर होती है। हम मुश्किल हालात (खुद कैंसर से पीडि़त रहीं) से निपटकर ही बेहतर इंसान बनते हैं। मैं बुद्धिज्म को फॉलो करती हूं- जो बताता है कि अगर खोई समस्या आई है तो मुझे कुछ सिखाने आई है। मेरा तरीका यह था कि चैलेंज को एक चैलेंज की तरह लो और अपना बेस्ट सामने लाओ। ऐसे समय में किसी मजबूत सपोर्ट सिस्टम की जरूरत पड़ती है, जैसे मेरे लिए बुद्धिज्म की प्रैक्टिस। मैंने अपनी मनोदशा ऐसी रखी कि बीमारी को खुद पर हावी नहीं होने दिया। और यह कहना बड़ा अजीब लगता होगा लेकिन मैं अपने इस सफर को सेलिब्रेट करना चाहूंगी और मैंने किया भी। मैं उन सभी महिलाओं को सलाम करती हूं, उनको भी जिन्होंने कैंसर से लड़कर यह जंग जीती और उन्हें भी जो यह नहीं जीत पाए। इन सबकी कहानियां प्रेरणा देने वाली हैं। मुझे महिलाओं से प्यार है, यह एक ऐसी प्रजाति है जो कभी हार नहीं मानती, हारकर भी फिर खड़े होने की हिम्मत रखती है। कैंसर की सर्जरी के बाद मैंने फूड, वर्कआउट का ध्यान रखा। और यह भी सुनिश्चित रखा कि मेरी मानसिक सेहत अच्छी रहे। मैं अपनी खुशी पर फोकस करती हूं।

और हम सब खुश रहना चाहते है। परेशान नहीं होना चाहते। जिंदगी कट रही है., जिंदगी काटने के लिए नहीं है वैल्यू एड करने के लिए है और हम सब खुश होने के हकदार है और यही मेरा रोज का मंत्र है। मैं बहुत शुक्रगुजार हूं कि मेरे पास कुछ करने के लिए था। जब हमारे पास कोई मिशन होता है तो हमारी मानसिक ताकत शारीरिक ताकत से बेहतर हो जाती है। तो तब मैं अपनी फिल्म के प्री-प्रोडक्शन पर काम कर रही थी। तभी सर्जरी हुई, कीमो थैरेपी शुरू हुई। प्रोड्यूसर ने कहा कि अभी पोस्टपोन कर देते है। लेकिन मैंने कहा कि आप मुझसे मेरी जिंदगी ले लोगे। मैंने डॉक्टर्स से परमिशन ले ली है। डॉक्टरों ने यह कहा था कि जाओ लेकिन केयर करना डल्यूवीसी नहीं गिरना चाहिए। किसी को कोई इन्फेक्शन है तो उससे दूर रहना। तो मेरे ऑफिस के सभी लोगों ने इसका ध्यान रखा कि मेरे आसपास कोई खांसी-जुकाम वाला न हो। इस दौरान मंडे टू फ्राइडे काम करती रही, शनिवार को कीमो करवाती थी। संडे को डल्यूवीसी गिरता था तो मैं ग्रेफिन शॉट लगवाती थी। मुझे नहीं लगता कि कीमो की इतनी साइडइफेक्ट थी जितनी ग्रेफिन की थी। ऐसे में जब तक मैं काम कर रही होती थी तो दर्द का एहसास नहीं होता था। लेकिन जिस दिन छुट्टी होती तो पता चलता कि यहां दर्द हो रहा है।

मेरी मां ने कहा भी – कि ऑफिस में दस घंटे रहती हो तब नहीं पता चलता है। तो हम अपने मन को मजबूत बना ले तो शरीर को उसकी माननी ही पड़ेगी आधी जंग आप जीत लेंगे। और यही बात हर चैलेंज पर लागू होती है। मैं बहुत खुशनसीब हूं कि मुझे ऐसा परिवार मिला। मैंने हॉस्पिटल में देखा कि कई परिवारों ने औरतों को छोड़ दिया जब उन्हें मालूम हुआ कि उन्हें कैंसर हुआ है। टाटा मेमोरियल गई तो वहां देखा कि ब्रेस्ट कैंसर वाले फलोर पर कई पेशेंट के साथ उनके परिवार के लोग थे कईयों के साथ कोई नहीं। यह मेरे लिए झटका था। इसलिए मैं अपने परिवार के सपोर्ट के लिए शुक्रगुजार हूं। पिन्नी(पंजाबी लड्डू) मेरी दूसरी शॉर्ट फिल्म होगी। इससे पहले शॉर्ट फिल्म टॉफी रिलीज हो चुकी है। मेरे नानके जालांधर में है। गर्मियों में वहां जाती थी। वहां टीवी, इंटरनेट नहीं था। अकेली बच्ची थी, तो कैसे टाइम बिताया जाए? वहां एक लड़की मिली ऋ तु जिसकी उम्र मेरे बराबर ही थी। वो टॉफियां बेचती थी। मुझे उसके साथ खेलना होता था तो टॉफियां लपेटने में मैं उसकी मदद करती थी, ताकि काम जल्दी खत्म हो औऱ् हम खेल सकें। फिर एक बार जब मैं 13 साल की उम्र में नानके पहुंची तो पता चला उसकी शादी हो गई। टॉफी का कॉन्सेप्ट यहीं से मिला। चाइल्ड मैरिज की प्रॉलम मेरे दिल के बहुत करीब है। मुझे इसके लिए लडऩा है। ( लेखिका कैंसर सर्वाइवर हैं साथ ही फिल्म निर्देशिका व एंकर भी और अभिनेता आयुष्मान खुराना की पत्नी भी)

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