छुट्टी लो, घूमने निकलों- मंदी दूर

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अगर लाखों भारतीय सिर्फ छुट्टियां मनाने देश के पर्यटक स्थलों पर जाएं तो क्या उससे सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ लेगी? क्या अर्थव्यवस्था हमारे ज्यादा काम करने के बजाय काम से छुट्टी लेकर चार धाम की यात्रा करने से पटरी पर लौटेगी? आप मानें या न मानें, दोनों सवालों के जवाब हां में हैं। हम ज्यादा काम करके अपनी आमदनी बढ़ाते हैं और अपनी उस क माई को खर्च करके भी देश की जीडीपी में योगदान करते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में घरेलू पर्यटकों का और पर्यटन का योगदान ठीक से रेखांकित नहीं हो पाया है। हाल के दशकों में घरेलू पर्यटकों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। साल 2000 में 22 करोड़ घरेलू पर्यटक यात्राएं दर्ज की गई थीं जो 2018 आते तक करीब नौ गुना बढक़र 182 करोड़ हो चुकी थी। इन का एक बड़ा हिस्सा धार्मिक यात्राओं का है, लेकि न खर्च आप चाहे केदारनाथ की तीर्थयात्रा पर करें या कुफ्री में स्कीइंग पर, जुड़ेगा वह जीडीपी में ही। विदेशी पर्यटकों का आना भी बढ़ा है, पर इनका अनुपात काफी म है।

2000 में इनकी संख्या 60 लाख थी जो 2016 में बढ़कर 2.47 करोड़ हुई। किसी देसी पर्यटक के मुकाबले एक विदेशी सैलानी काफी ज्यादा खर्च करता है, लेकिन देशी पर्यटकों की संख्या इतनी विशाल है कि इनका योगदान बहुत ज्यादा हो जाता है। प्रसंगवश, अर्थशास्त्री और वित्त मंत्रालय में पूर्व मुख्य सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने जीडीपी के ‘गलत आकलन’ पर प्रस्तुत अपने हार्वर्ड पेपर में विदेशी सैलानियों के आने को एक कारक माना था। मेरे गयाल से अगर उन्होंने घरेलू पर्यटकों की यात्रा को कारक माना होता तो उनका जीडीपी आकलन थोड़ा ज्यादा होता। पहले के एक आर्थिक सर्वेक्षण में सुब्रमण्यन ने आंतरिक यात्रा के आंकड़े उससे कहीं ज्यादा दर्ज किए थे जो आम तौर पर आर्थिक सर्वेक्षणों में झलकते रहे हैं। इससे जीडीपी विकास दर भी थोड़ी बढ़ी हुई लग रही थी, हालांकि मैन्युफैक्च रिंग से जुड़े पारंपरिक संकेत 7 फीसदी विकास का संकेत नहीं दे रहे थे । घरेलू पर्यटन पर वापस लौटें तो लाल किले से स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से आह्वान किया कि वह 2022 तक देश के अंदर 15 पर्यटन स्थलों की यात्रा करें और घरेलू पर्यटन में ऊर्जा का संचार कर दें।

पहल अच्छी है, लेकिन काम कठिन। पहल अच्छी इसलिए क्योंकि पर्यटन श्रम प्रधान उद्योग है। इसमें अच्छा पैसा आता है तो इसका सीधा मतलब है कि रोजगार पैदा होंगे और लोगों की आमदनी बढ़ेगी। कठिन काम इसलिए क्योंकि मोदी चाहते हैं, हम साल में पांच यात्राएं करें। 2018 की सालाना औसतन डेढ़ यात्राओं से कहीं ज्यादा। अगर 20 फीसदी भारतीयों ने भी उनकी सुन ली तो घरेलू पर्यटन दोगुना हो जाएगा। पर्यटन के उद्देश्य से यात्रा करना एक लग्जरी है। यह हम तभी करते हैं जब इसका खर्च उठाने की हालत में होते हैं। लोग अक्सर घर बनवाने, उसकी मरम्मत करवाने, या फिर शिक्षा का खर्च जुटाने के लिए कर्ज लेते हैं। घूमने के लिए वे शायद ही कभी उधार लेते हों। घरेलू बजट में पर्यटन संबंधी खर्च निवेश नहीं, खपत में आता है।

हालांकि हालिया रिसर्च लगातार दर्शा रही है कि छुट्टियां मनाना हमारी उत्पादकता और रचनात्मकता बढ़ाता है, तनाव कम करके मानसिक स्वास्थ्य बेहतर बनाता है। छुट्टियों को लेकर नजरिया भी अलग-अलग देशों मे अलग-अलग दिखता है। यूरोप इस मान्यता को काफी गंभीरता से लेता है कि छुट्टियों वाले दिन तनाव घटाते हैं और शारीरिक – मानसिक सेहत बनाते हैं। इसलिए छुट्टियां वहां अनिवार्य हैं। कई यूरोपीय देशों में तो जुलाई-अगस्त में जब लोग छुट्टियां मनाने निकलते हैं तो पूरे एक महीने तक कार्यस्थलों में ताला लग जाता है। काम के बोझ से लदे अमेरिका में यूएस ट्रैवल असोसिएशन और ऑक्सफर्ड इक नॉमिक्स-इप्सॉस की 2019 की एक स्टडी के मुताबिक इस्तेमाल न की गई छुट्टियों की लागत सालाना 151.5 अरब डॉलर पड़ती है। भारी इजाफे के बावजूद भारतीय पर्यटन में आज भी जबर्दस्त संभावनाएं हैं।

ऐसे में यह सवाल बचा रह जाता है कि आखिर भारत की समृद्ध विरासत, सांस्कृतिक विविधता, अनोखे खानपान और सभ्यता के लंबे इतिहास के बावजूद दुनिया के सैलानियों और पर्यटन राजस्व का इतना छोटा सा हिस्सा हमें क्यों मिलता है? वल्र्ड इक नॉमिक फोरम (डब्लूईएफ ) का ट्रैवल एंड टूरिज्म कॉम्पिटिटिव इंडेक्स-2017 इस पर कुछ रोशनी डालता है। 136 देशों के ग्रुप में टूरिज्म कॉम्पिटिटिव इंडेक्स में भारत 40वें स्थान पर, इंटरनैशनल ओपननेस में 55वें, सूचना व संवाद तक नीक की तैयारी के मामले में 112वें, टूरिस्ट सर्विस इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिहाज से 110वें, सुरक्षा की दृष्टि से 114वें, स्वास्थ्य और आरोग्य के हिसाब से 104वें और कारोबारी माहौल के लिहाज से 89वें स्थान पर है। भारत में पर्यटन कभी उच्च प्राथमिकताओं में नहीं रहा। डब्लूईएफ यात्रा एवं पर्यटन प्राथमिकता के मामले में हमें 104वें स्थान पर रखता है। इसका सकारात्मक पहलू यह है कि पर्यटन में विस्तार की अपार संभावनाएं हैं।

नीरज कौशल
(लेखिका अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में सोशल पॉलिसी की प्रोफेसर हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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