छीं-छीं : देश में चमड़ी की दमड़ी भी खाने लगे हैं फर्जी-दागी पत्रकार

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एक जमाने में पत्रकारों को एक सम्मान था लेकिन अब ये बिरादरी चाहे माने या ना माने लेकिन पत्रकार भी उस श्रेणी में आ गए हैं जहां उन्हें ना तो कोई बैंक लोन देने को आसानी से तैयार होता और ना ही कोई मकान मालिक किराए पर दिल से मकान। ये हालत हुई है देश भर में फर्जी पत्रकारों की फौज से और पत्रकारिता के प्रोफेशन में दागी पत्रकारों के कारण। जहां लक्ष्मी वहां नकली पत्रकार। जहां तक दागी पत्रकारों का सवाल है तो बेदाग भी आपको हजारों मिल जाएंगे लेकिन कड़वा सच ये भी है कि भारत का कोई भी मीडिया संस्थान ऐसा नहीं बचा है जहां कोई ना कोई दागी ना रहा हो। माफिया, नेता, अफसरशाही व ठेकेदारों के काकस में शामिल होकर थोड़े ही समय में इन फर्जी औ दागी पत्रकारों ने दौलत भी कमाई और समाज में गंदगी भी फैलाई, नतीजा अब भोपाल हनीट्रैप केस में भी पत्रकार लिप्त पाए जाते हैं और बेरोजगारों को लूटने वाले भी यही।

प्रभात की इस मुहिम के लिए देश भर से सैकड़ों पत्रकारों ने संदेश भेजे हैं जो इस बात का प्रमाण है कि इस प्रोफेशन को गंदगी से निजात मिलनी चाहिए। भोपाल से टीवी जगत में जाना-माना नाम अनुपमा सिंह कहती हैं कि कमाई खाएंगे तो फिर ईश्वर ही मालिक है। उन्होंने भोपाल का उदाहरण देते हुए लिखा कि आखिर इस शहर में ऐसा क्या हो जो दो साल के भीतर ही 22 हजार महीना कमाने वाला पत्रकार घर, गाड़ी व अन्य सुविधाएं जुटा लेता है। वो कहती हैं कि अगर ऐसे लोग पत्रकारिता नहीं करेंगे तो क्या भूली मर जाएगा कोई, किसके पुरखे कह गए हैं कि पत्रकारिता ही करो। पत्रकारिता व्यवसाय कभी नहीं था लेकिन गंदे लोगों ने आकर इसे भी रेड लाइट एरिया बना दिया है।

वो औरतें मजबूरी में करती है, किसी को ब्लैकमेल नहीं करती लेकिन इन महानुभाव की गजब की तरक्की है। चकाचौंध भी, सम्मान भी, नेताओं व अफसरों से रिश्ते भी, दागी भी फिर सम्मानीय ये कैसे संभव है? पत्रकार महेन्द्र सिंह चौहान ने लिखा कि कुछ गंदी मछलियां पूरे तालाब को गंदा कर देती है। कश्यप सिन्हा के मुताबिक कुछ तमाम फर्जी व कुछ घटिया लोग आ गए है पत्रकारिता में। इनको लात मारकर भगाना चाहिए। शंकर भाई के मुताबिक किस तरह से महिलाओं का दुरुपयोग चंद घटिया पत्रकारों की ओर से होता है। ऐसा करने वालों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए। पत्रकार आर के सिंह के मुताबिक फर्जी पत्रकारों को कौन बढ़ावा देता है? अफसर या पुलिस वाले उन्हें अपने साथ क्यों बैठाते है?

दागी पत्रकारों को कार और बंगले किसने दिए? इनके धंधे कौन से है कहां से आए इतने रुपये? सबकी चांज होनी ही चाहिए, देश के हर शहर व कस्बे में। वो कहते हैं कि देश के प्रतिष्ठित संस्थान ऐसे गंदे लोगों को क्यों झेल रहे है। अभिमन्यु जैन के मुताबिक बड़े शहरों में करोड़ों कमाने वाले पत्रकारों की संपत्ति की जांच हो, उनसे पूछा जाना चाहिए कि आखिर, इतना माल आया कहां से? इनके आकाओं से लेकर प्यादों से भी पूछताछ होनी चाहिए। पर सवाल यही है कि प्याज के छिलके छीलने की जहमत कौन सरकार उठाए? चंद फर्जी और मीडिया में दागी लोगों ने पत्रकारिता में माहौल खराब कर रखा है, इनका कुछ होना चाहिए अब सही समय आ गया है। क्या वास्तव में सही समय आ गया है, ये तो वक्त ही बताएगा। बाकी भी ढेरों पत्रकारों ने मन की पीड़ा भेजी है

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