चीनी राष्ट्रपति शी चिन फिंग की यह भारत-यात्रा दोनों राष्ट्रों के आपसी संबंध को सहज और बेहतर बनाने में अवश्य ही योगदान करेगी। वैसे कश्मीर के सवाल पर भारत की जनता चीनी राष्ट्रपति के विचार जानना चाहती थी, जैसा कि पत्रकारों ने भी विदेश सचिव विजय गोखले से बार-बार यही सवाल पूछा लेकिन ऐसा लगता है कि गोखले ने इस सवाल को टालने की कोशिश की। फिर भी उनके मुंह से निकल पड़ा कि शी ने इमरान की चीन-यात्रा का जिक्र किया था।
दूसरे शब्दों में कश्मीर के मामले पर दोनों नेताओं के बीच बात तो हुई होगी लेकिन दोनों पक्षों ने तय किया होगा कि उसे सार्वजनिक नहीं किया जाए। यह ठीक ही है। दोनों देशों के बीच दूसरा बड़ा मुद्दा था- व्यापारिक असंतुलन का! चीन 60 बिलियन डालर ज्यादा का माल भारत को बेचता है। यहां असली सवाल यह है कि यदि दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ेगा तो क्या यह घाटा भी बढ़त चला जाएगा ?
चीन-अमेरिका व्यापारिक तनाव का भारत फायदा उठा सकता है लेकिन पुराना ढर्रा चलता रहा तो भारत चीनी माल का विराट कूड़ेदान भी बन सकता है। व्यापार के इस मुद्दे पर और सामरिक सहयोग पर दोनों देशों के वाणिज्य और रक्षा मंत्री विस्तार से बात करेंगे। दोनों देशों के आम लोगों के बीच संपर्क, सहयोग और यात्रा आदि बढ़े, इस पर विशेष समझ पैदा हुई है।
मैं खुद चीन आठ-दस बार गया हूं। भारत का जितना सम्मान चीन में है, दुनिया के किसी देश में नहीं है। चीनी लोग भारत को ‘गुरु-देश’ और पश्चिमी स्वर्ग कहते हैं। भारत और चीन मिलकर 16 एशियाई देशों के साथ संयुक्त सहयोग का भी कोई उपक्रम करने वाले हैं। चेन्नई में चीनी वाणिज्य दूतावास खुलने की भी संभावना है। दोनों देशों ने आतंकवाद के विरुद्ध भी एक होने की बात कही है लेकिन इस दिशा में वे क्या ठोस कदम उठाएंगे, यह पता नहीं।
इसी प्रकार दोनों देशों के बीच जो सीमा-समस्या है, उसे भी दोनों देशों ने ताक पर रखा हुआ है। शी चिन फिंग की इस भारत-यात्रा के दौरान चाहे कोई बहुत ठोस समझौते नहीं हुए हैं लेकिन यह मानना पड़ेगा कि उनके लिए सही माहौल बना है। दोनों देशों के मंत्रियों और अफसरों पर निर्भर होगा कि वे क्या करेंगे। हमारे प्रधानमंत्री यदि अपने साथ वाणिज्य और रक्षा मंत्री को भी साथ रखते तो अच्छा होता लेकिन शायद नौकरशाहों के साथ वे बेहतर महसूस करते हैं।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं