केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को राज्यसभा में कहा कि सरकार देश की एक एक इंच जमीन घुसपैठियों से खाली करने के लिए प्रतिबद्ध है। उनकी यह बात चुनाव प्रचार के दौरान घुसपैठियों पर दिए गए उनके बयान का विस्तार है। उन्होंने तब कहा था कि पड़ोसी देशों से परेशान होकर भारत में आए हिंदू, बौद्ध, सिख शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी और बाकियों की पहचान करके उन्हें देश से बाहर निकाला जाएगा। उनके लिए बाकी कौन हैं, यह समझना मुश्किल नहीं है।
घुसपैठिए हमेशा भाजपा की राजनीति का अहम हिस्सा रहे हैं। बरसों से हर चुनाव में भाजपा बांग्लादेशी घुसपैठियों को भारत से निकालने का वादा करती रही है। उसकी इस राजनीति को असम में बन रहे राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर से और ताकत मिली है। अकेले असम में करीब 40 लाख लोग एनआरसी से बाहर छूट रहे हैं। ये ऐसे लोग हैं, जिनके पास इस बात का कोई सबूत नहीं है कि 24 मार्च 1971 की आधी रात से पहले वे या उनके परिवार के लोग इस देश में रहते थे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक 31 जुलाई को एनआरसी की आखिरी सूची प्रकाशित होनी है।
सरकार एनआरसी की आखिरी सूची प्रकाशित करने का समय बढ़वाना चाहती है। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री ने राज्यसभा में बताया कि करीब 25 लाख लोगों की शिकायत और आपत्तियां सरकार और राष्ट्रपति को मिली है। इसके मुताबिक काफी सारे भारतीयों के नाम इस सूची से बाहर छूट गए हैं और कई ऐसे लोगों के नाम इसमें शामिल हो गए हैं, जिनके बारे में लोग जानते हैं कि वे विदेशी हैं। इन सारी आपत्तियों को सुनने और ठीक करने के बाद भी अगर 30-40 लाख लोग विदेशी ठहराए जाते हैं तो क्या भारत सरकार उन सबको देश से निकाल देगी? क्या ऐसा कर पाना संभव है?
भारत क्या दुनिया का कोई भी देश ऐसा नहीं कर सकता है। व्यावहारिक रूप से यह संभव ही नहीं है कि इतने लोगों को विदेशी घुसपैठिया ठहरा कर देश से निकाला जाए। ध्यान रहे भारत में एक अनुमान के मुताबिक 40 हजार रोहिंग्या हैं, जो म्यांमार से भारत में घुसे हैं। पिछले पांच साल से भाजपा इस मुद्दे पर राजनीति कर रही है। पर सरकार अक्टूबर 2018 में सात और जनवरी 2019 में पांच रोहिंग्या को भारत से निकाल सकी है। यानी पांच साल में 12 लोग निकाले गए हैं।
इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अकेले असम में पहचाने गए 30-40 लाख लोगों को निकालने में कितना समय लगेगा। पर अब मामला सिर्फ असम का नहीं रहा है। अब तो अमित शाह ने देश की इंच इंच जमीन खाली कराने की बात कही है। इससे ऐसा लग रहा है कि सरकार पूरे देश के लिए एनआरसी जैसा कुछ प्लान कर रही है। पर ऐसा लग रहा है कि घुसपैठियों से इंच इंच जमीन खाली कराने का जुमला पश्चिम बंगाल की राजनीति को ध्यान में रख कर उछाला गया है। असम के बाद बंगाल में सबसे ज्यादा बांग्लादेशी घुसपैठियों के होने का दावा भाजपा करती रही है। वहां इसे लेकर राजनीति होगी। उसके बाद इसे 2024 के चुनाव के लिए भी एक बड़े राजनीतिक मुद्दे के तौर पर तैयार किया जाएगा।
इसमें संदेह नहीं है कि विदेशी नागरिकों की पहचान होनी चाहिए और उन्हें निकाला भी जाना चाहिए। पर उसके व्यावहारिक पक्ष को ध्यान में रखना चाहिए। अमेरिका जैसा देश अपने पड़ोसी मेक्सिको से आए लोगों को न निकाल पा रहा है और न उन्हें अपने देश में आने से रोक पा रहा है तो भारत के लिए यह काम और भी मुश्किल होगा। फिर भी सरकार का पहला प्रयास यह होना चाहिए कि विदेशी नागरिकों के अवैध रूप से भारत में घुसने से रोका जाए। उन्हें रोकना, उनकी पहचान करना और अंतरराष्ट्रीय कानून के हिसाब से उनके साथ बरताव करना एक बड़ा काम है पर उनके नाम पर राजनीति करना बहुत आसान है।
अजित द्विवेदी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं…