मथुरा के एक मंदिर में नमाज़ पढऩे के अपराध में पुलिस चार नौजवानों को गिरफ्तार करने में जुटी हुई है। उन चार में से दो मुसलमान हैं और दो हिंदू हैं। ये चारों नौजवान दिल्ली की खुदाई खिदमतगार संस्था के सदस्य हैं। इस नाम की संस्था आजादी के पहले सीमांत गांधी बादशाह खान ने स्वराज्य लाने के लिए स्थापित की थी। अब इस संस्था को दिल्ली का गांधी शांति प्रतिष्ठान और नेशनल एलायंस फॉर पीपल्स मूवमेंट चलाते हैं। इस संस्था के प्रमुख फैजल खान को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है और उसके तीन अन्य साथी अभी फरार हैं। इन चारों नौजवानों के खिलाफ मंदिर के पुजारियों ने पुलिस में यह रपट लिखवाई है कि इन लोगों ने उनसे पूछे बिना मंदिर के प्रांगण में नमाज़ पढ़ी और उसके फोटो इंटरनेट पर प्रसारित कर दिए।
इन चारों नवयुवकों का कहना है कि दोपहर को वे जब मंदिर में थे, नमाज़ का वत होने लगा तो उन्होंने पुजारियों से अनुमति लेकर नमाज़ पढ़ ली थी। उस समय वहां कोई भीड-भाड़ भी नहीं थी। मेरी समझ में नहीं आता कि इन लड़कें को पुलिस ने गिरफ्तार क्यों किया? उन्होंने मूर्तियों के सामने जाकर तो नमाज़ नहीं पढ़ी, उन्होंने हिंदू देवताओं के लिए कोई अपमानजनक शब्द नहीं कहे। यदि उन्हें अनुमति नहीं मिली तो उन्होंने नमाज़ कैसे पढ़ ली? क्या पुजारी लोग उस वक्त खर्राटे खींच रहे थे? सबसे बड़ी बात तो यह कि जिस फैसल खान को गिरफ्तार किया गया है, वह रामचरित मानस की चौपाइयां धाराप्रवाह गा कर सुना रहा था। यदि आप सच्चे हिंदू हैं, सच्चे मुसलमान हैं और सच्चे ईसाई हैं तो आप सबका भगवान या एक नहीं है?
भगवान ने आपको बनाया है या आपने कई भगवानों को बनाया है? मंदिर में बैठकर कोई मुसलमान अरबी भाषा में वही प्रार्थना कर रहा है, जो हम संस्कृत में करते हैं तो इसमें कौन सा अपराध हो गया है? मैंने लंदन के एक गिरजे में अब से 51 साल पहले आरएसएस की शाखा लगते हुए देखी है। एक बार न्यूयार्क में कई पठान उद्योगपतियों ने मेरे साथ मिलकर हवन में आहुतियां दी थीं। बगदाद के पीर गैलानी की दरगाह में बैठकर मैंने वेदमंत्रों का पाठ किया है और 1983 में पेशावर की बड़ी मस्जिद में नमाज़े तरावी पढ़ते हुए बुरहानुद्दीन रब्बानी ने मुझे अपने साथ बिठाकर संध्या करने दी थी। लंदन के साइनेगॉग यहूदी मंदिर में भी सभी यहूदियों ने मेरा स्वागत किया था।
डा.वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)