कोरोना संक्रमितों की कुल संख्या और एटिव केसेज के मामले में भारत तेजी से ऊपर बढ़ रहा है और यहीं रफ्तार रही तो इस महीने के आखिर तक भारत संक्रमितों की संख्या और एटिव केसेज के मामले में दुनिया में दूसरे स्थान पर पहुंच जाएगा। या इतनी सारी बातें सरकार को चिंता में डालने के लिए पर्याप्त नहीं हैं? पर ऐसा नहीं लग रहा है कि सरकार कोरोना वायरस को लेकर किसी तरह की चिंता में है। उलटे सरकार का फोकस इस बात पर दिख रहा है कि किस तरह से कोरोना पर से ध्यान हटाकर रखा जाए। सरकार के इन प्रयासों का नतीजा है कि वायरस के संक्रमण की खबरें ज्यादातर अखबारों के पहले पन्ने से हट गई हैं। टेलीविजन चैनलों पर कुछ अलग ही तमाशा सारे दिन चल रहा है। पहले सुशांत सिंह राजपूत की खुदकुशी के मामले पर बहस होती रही। फिर भारतीय मीडिया ने राफेल का नाम लेकर कई दिन तक चीन को डराने का काम किया और फिर एक हफ्ते तक अयोध्या में राममंदिर के शिलान्यास और भूमिपूजन का मामला चलता रहा। इस दौरान अकेले जुलाई के महीने में भारत में 12 लाख से ज्यादा केसेज आए।
यानी औसतन हर दिन 40 हजार से ज्यादा मामले आए। सोचें, तमाम तरह की सावधानी बरते और लोगों से दूरी बना कर रखने वाले लोग संक्रमित हो गए। इसके बावजूद सरकार के किसी कदम से नहीं लग रहा है कि वह इस महामारी को लेकर गंभीर है। महामारी से लडऩे की केंद्रीय कमान लगभग निष्क्रिय है। केंद्र सरकार ने सब कुछ राज्यों के हवाले छोड़ा है। राज्य अपने सीमित संसाधनों के दम पर कोरोना से निपटने की प्रयास कर रहे हैं पर फिलहाल एक-दो राज्यों को छोड़ कर बाकी जगह हालात बिगड़ते दिख रहे हैं। दक्षिण भारत के राज्यों में स्थिति ज्यादा खराब हुई है। देश में एक लाख से ज्यादा संक्रमण वाले छह में से तीन राज्य दक्षिण भारत के हैं। तमिलनाडु में तो संक्रमितों की संया पौने तीन लाख हो गई है। आंध्र प्रदेश में एक लाख 86 हजार और कर्नाटक में डेढ़ लाख से ज्यादा संक्रमित हैं। एक तथ्य यह भी है कि महाराष्ट्र में मुंबई के बाद पुणे दूसरा शहर है, जहां संक्रमितों की संख्या एक लाख से ज्यादा हो गई है। आर्थिक रूप से भी ये राज्य संपन्न हैं और इनके यहां मेडिकल सुविधा भी बेहतर है।
इसके बावजूद इन राज्यों में कोरोना का कहर इस तेजी से फैल रहा है तो पूर्वी और उत्तर भारतीय राज्यों की स्थिति का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। ध्यान रहे जिन राज्यों में मेडिकल सुविधा अच्छी हैं या जिन राज्यों ने टेस्टिंग, ट्रेसिंग और ट्रीटमेंट के फार्मूले पर काम किया उनके यहां पहले कोरोना का कहर फूटा। मुंबई, पुणे, दिल्ली, चेन्नई, इंदौर, अहमदाबाद आदि महानगरों या बड़े शहरों के बाद अब कोरोना का संक्रमण धीरे धीरे अपेक्षाकृत छोटे शहरों में बढ़ रहा है। देश के अमीर और औद्योगिक राज्यों के बाद अब गरीब और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाले राज्यों में कोरोना का संक्रमण पहुंच रहा है। इन राज्यों में न तो टेस्टिंग की सुविधा है और न इलाज की। बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, झारखंड, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में प्रति दस हजार व्यक्ति अस्पतालों में बेड की बहुत कमी है और डॉक्टरों की भी कमी है। इन राज्यों में कोरोना का संक्रमण अब तेजी से फैल रहा है। इनमें से ज्यादातर राज्य ऐसे हैं, जो अपनी मौजूदा मेडिकल सुविधा के आधार पर इसका मुकाबला नहीं कर सकते हैं। उनके पास आर्थिक संसाधन भी सीमित हैं और इसलिए वे लॉकडाउन की जोखिम भी लेने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसे में केंद्र सरकार को इसकी गंभीरता को समझते हुए राज्यों के लिए जल्दी से जल्दी आर्थिक पैकेज की घोषणा करनी चाहिए। प्रधानमंत्री को इन राज्यों के मुयमंत्रियों से बात करनी चाहिए और उन्हें मेडिकल सुविधा भी उपलब्ध करानी चाहिए।