काश, इस काबिलियत का पहले पता होता

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हमने तोताराम से कहा- तोताराम, काश, इस काबिलियत का पहले पता होता |

बोला- तुझे किसने बहका दिया ? यदि कोई काबिलियत होती तो आज तक तुझे सरकार ने मास्टरी से आगे क्यों नहीं बढ़ाया? क्यों आडवाणीजी की तरह निर्देशक मंडल में बैठा कर कुढ़ा-कुढ़ाकर मार रहे हैं? और तू भी न सही देश का प्रधानमंत्री नगर परिषद का वार्ड पार्षद तक नहीं बन सका। खैर, मैं भी तो सुनूं आज कौन सी काबिलियत का इल्हाम हो गया है, आदरणीय को?

हमने कहा- बंधु, हम अपनी काबिलियत की बात नहीं कर रहे हैं। हम तो देश के बैंकों और अपने हाई स्कूल में कॉमर्स के मास्टर गुप्ताजी की बात सोच रहे हैं।

बोला- चल, अपनी नहीं तो गुप्ताजी की ही बता।

हमने कहा- कभी हमारी बैंलेंसशीट का दोनों तरफ का टोटल नहीं मिलता था। गुप्ताजी कहते थे- यदि परीक्षा में ऐसा हो तो सस्पेंस अकाउंट खोलकर दोनों तरफ का टोटल बराबर कर देना। उनकी बात अलग थी लेकिन हम तो भविष्य के बारे में सोचा करते थे कि वास्तव में कहीं नौकरी में ऐसा किया तो इधर हम सस्पेंस अकाउंट खोलेंगे और उधर मालिक हमें जेल में बंद करवा देगा। इससे तो हिंदी ही ठीक है। दोहे में यदि चौबीस की जगह 22 या 26 मात्राएं भी कर दी तो एक दो नंबर की तो काटेंगेस जेल तो नहीं होगी। सो कॉमर्स छोड़ दी।

इसी तरह 1965 में जब बैंक निजी क्षेत्र में थे तो एक मित्र की सिफारिश से कैशियर की नौकरी की बात चली लेकिन हमने इस डर से मना कर दिया कि यदि दस हजार का एक नोट भी किसी को अधिक दे दिया तो गई चार महीने की तनख्वाह। उस समय दस हजार का नोट भी चला करता था।

बोला- तो क्या अब तुझमें अहमदाबाद के दो सहकारी बैंकों की तरह छह दिन में 1300 करोड़ के हजार और पांच सौ के नोट गिनकर और बदलकर देने जितनी काबिलियत आ गई?

क्या अहमदाबाद सहकारी बैंक में 5 दिनों में 750 करोड़ की गिनती हो सकती है?

हमने कहा- वह बात नहीं है। हमारा तो वही हाल है कि आज भी आयकर का फॉर्म नहीं भरना आता और बैंक से पेंशन लाते हैं तो चार बार गिनकर अंत में संबंधित बाबू पर ही विश्वास करके चले आते हैं।

बोला- तो फिर क्यों रणबीर कपूर और सलमान खान की शादी जैसा बिना बात का सस्पेंस बना रहा है।

हमने कहा- पहले माल्या स्टेट बैंक का कर्जा ले भागा, फिर नीरव मोदी ने पंजाब नैशनल बैंक की काबिलियत का पर्दाफाश कर दिया, इसके बाद दो डायरेक्टरों ने महाराष्ट्र पंजाब बैंक को फेल कर दिया और अब रिज़र्व बैंक ने घपला पकड़ा है कि स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने अपने डूबते खाते वाले हिसाब में 1200 करोड़ रुपए कम दिखाए हैं।

बोला- तो क्या तू जेटलीजी है या सीतारामन है जो लोग तुझसे हिसाब मांगेंगे? और उन्होंने ही कौनसा हिसाब दे दिया जो तू परेशान हो रहा है?

हमने कहा- जब बैंकों में घपलों की इतनी गुंजाइश है तो हमने अपनी काबिलियत पर शंका करके क्यों कॉमर्स और बैंक की नौकरी छोड़ दी? यदि उस समय लग गए होते तो कम से कम डिविजनल मैनेजर तक तो पहुंच ही जाते।

बोला- अच्छा ही हुआ जो बैंक में नहीं लगा, नहीं तो किसी न किसी बैंक को जरूर डुबाता या कोई तुझे नीरव मोदी की तरह उल्लू बनाकर तुझसे ‘लेटर ऑफ अंडर स्टैंडिंग’ ले गया होता।

     
रमेश जोशी
लेखक देश के वरिष्ठ व्यंग्यकार और ‘विश्वा’ (अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति, अमरीका) के संपादक हैं। ये उनके निजी विचार हैं। मोबाइल – 9460155700
blog – jhoothasach.blogspot.com
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