कांग्रेस में सलाह का दौर

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एक दिन पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कर्ण सिंह ने कहा था कि पार्टी को देर किए बिना वर्किंग कमेटी की बैठक बुलानी चाहिए। उन्होंने पार्टी के मौजूदा संकट पर चिंता जताते हुए कहा था कि राहुल गांधी को मनाने में एक महीने बर्बाद कर दिए गए। अब पार्टी के एक और वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी ने राहुल गांधी को सुझाव दिया है कि नए अध्यक्ष के लिए उन्हें पैनल बनाना चाहिए। इस्तीफों के दौर के बीच यह सुझावों का सिलसिला वैसे तो पार्टी का भीतरी मामला है, जब संकट का समय होता है तो अपने अनुभवी लोग रास्ता सुझाते और सलाह देते हैं। पर इस पूरी कवायद से एक बात तो साफ है कि कांग्रेस का नया अध्यक्ष गांधी परिवार की पसंद का ही होगा। भले ही ऑन रिकार्ड कुछ भी कहा जाए लेकिन कांग्रेस की भीतरी फिजा ऐसी है, जहां पार्टी, गांधी परिवार के साए में खुद को एक जुट और सुरक्षित महसूस करती है। जब तय है पसंद होगी राहुल गांधी की तो इतनी देरी क्यों? ऐसा तो नहीं मौजूदा स्थिति में कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं?

वैसे एके एंटनी जैसे पुराने विश्वस्त नेताओं को आगे आने के लिए कहा गया था पर स्वास्थ्य का हवाला देते हुए लोगों ने अपना पल्लू झाड़ लिया। जिस तरह का संकट इस बार पार्टी के सामने है वैसा पहले नहीं रहा। पहली बार तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भारी पराजय का सामना करना पड़ा था लेकिन ढाई साल बाद उनकी सत्ता में वापसी हो गई। लेकिन इस बार लगातार दो बार देश की सत्ता से दूर हो जाने का दुख बड़ा है और इससे पार्टी में निराशा और भ्रम का माहौल है। वर्षों से पार्टी की हाईक मान संस्कृति के चलते नेतृत्व की दूसरी खेप तैयार नही हो पाई, आज के संकट में इसी तरह किसी ऊर्जावान चेहरे की पार्टी को दरकार है। मिलिंद देवड़ा, ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट जैसे नेता तो हैं पर इनकी अपनी सीमाएं भी हैं। इसके अलावा राज्यों में यह पार्टी भारी गुटबाजी का शिकार भी है।

पर संजय निरूपम जो सियासी चुटकियां ले रहे हैं, उससे साफ है कि गांधी परिवार के अलावा किसी और के हाथ कमान आने पर हालात बेहतर के बजाय खराब हो सकते हैं। एक और बात इस संकट को लम्बा करने की वजह बन रही है कि किसी नये को अपने ढंग से कार्य करने का माहौल मिलेगा। स्थिति ये है कि दिल्ली दरबार के नाम पर ही तो नवजोत सिंह सिद्धू, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को अपना कैप्टन नहीं मानते। स्थिति कितनी चिंताजनक है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सक ता है कि सिद्धू से ऊर्जा मंत्रालय का प्रभार संभालने को कहना पड़ रहा है। सवाल यही है कि नेतृत्व परिवर्तन के बाद भी जो राहुल गांधी के प्रिय होंगे उन पर कैसे लगाम लगेगी। इसीलिए कर्ण सिंह चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाये जाने की बात कर रहे हैं। राहुल गांधी को सलाह पर जनार्दन द्विवेदी का कहना है कि तकनीकी तौर पर वह तब तक अध्यक्ष बने रहेंगे जब तक अध्यक्ष चुन नहीं लिया जाता। लगता है अभी यह संकट बरकरार रहने वाला है।

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