कांग्रेस बनने पर क्यों उतावली है भाजपा?

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भारतीय जनता पार्टी थोक के भाव में दलबदल करा रही है। देश के हर राज्य में नेता अपनी पुरानी पार्टी छोड़ कर भाजपा में शामिल हो रहे हैं। हर जगह इस दलबदल का मकसद एक जैसा नहीं है। कहीं भाजपा को अपनी सरकार बनानी है उसके लिए विधायक तोड़े जा रहे हैं। कहीं अपनी सरकार को मजबूती देनी है तो कहीं विपक्षी पार्टी को कमजोर करना है। तीन राज्यों की मिसाल से इसे समझा जा सकता है।

गोवा में भाजपा को महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी, गोवा फारवर्ड पार्टी और निर्दलीय विधायक के समर्थन पर टिकी सरकार मजबूत करनी थी इसलिए कांग्रेस को तोड़ कर उसके विधायकों को भाजपा में शामिल कराया। कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस की सरकार गिरा कर अपनी सरकार बनानी है इसलिए दोनों पार्टियों में दलबदल कराई जा रही है और उधर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को कमजोर करना है इसलिए उनकी पार्टी में तोड़फोड़ हो रही है।

पर सवाल है कि तात्कालिक लाभ के अलावा भाजपा को इससे क्या मिल रहा है? क्या इससे भाजपा मजबूत हो रही है? क्या वैचारिक और सैद्धांतिक निष्ठा वाली पार्टी समझी जाने वाली भाजपा की इससे स्वीकार्यता व्यापक हो रही है? इन दोनों सवालों का जवाब नकारात्मक है। इससे पार्टी मजबूत नहीं हो रही है। उलटे पार्टी के पुराने और निष्ठावान कार्यकर्ता निराश हो रहे हैं। उनकी बरसों और दशकों की मेहनत का फल उनकी बजाय दूसरी पार्टियों से आने वाले नेताओं को मिल रहा है।

तभी गोवा से लेकर हरियाणा, दिल्ली, झारखंड सब जगह भाजपा के कार्यकर्ता बाहरी नेताओं को पार्टी में लाने का विरोध कर रहे हैं। कार्यकर्ताओं के विरोध की वजह से भाजपा को कई राज्यों में दलबदल रोकनी पड़ी है या यह कहना पड़ा है कि बाहर से आने वाले नेताओं को विधानसभा की टिकट नहीं मिलेगी। इसके बावजूद भाजपा के पुराने और निष्ठावान कार्यकर्ता संशय में हैं।

भाजपा को दूसरा नुकसान यह हो रहा है कि उसका सैद्धांतिक व वैचारिक आधार खिसक रहा है। वैसे भी अब पार्टी ने अपने वेबसाइट पर से पार्टी विद डिफरेंस का स्लोगन हटा दिया है। फिर भी जमीनी स्तर पर लोग भाजपा को बाकी पार्टियों से अलग मानते रहे हैं। उनको लगता रहा है कि भाजपा बाकी पार्टियों की तरह जातिवादी नहीं है, धनबल का इस्तेमाल नहीं करती है, बाहुबलियों को भाजपा में जगह नहीं मिलती है, पर पिछले कुछ समय से यह धारणा बुरी तरह से प्रभावित हुई है। तमाम जातिवादी नेता, बाहुबली, धनबली या दागी नेताओं का भाजपा में जगह मिल रही है। यह प्रचार होने लगा है कि भाजपा दागियों को पवित्र करने की फैक्टरी चला रही है। पर याद रखें गंगा भी ऐसे ही गंदी हुई थी। शुरू में शहरों की नालियों को गंगा में गिरा देने को आसान विकल्प माना गया था पर गंगा गंदी हो गई तो उसकी सफाई अब लगभग नामुमकिन हो गई है। हालांकि भाजपा कोई गंगा नहीं है पर जैसी भी नदी है, कई मामलों में वह दूसरों से ज्यादा साफ थी पर अब जिस रफ्तार से उसमें नालियां गिर रही हैं उसे देख कर लगता है कि इसमें गंदगी भर जाने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।

पिछले करीब पांच साल से नरेंद्र मोदी न्यू इंडिया बनाने की बात कर रहे हैं और उससे थोड़े दिन पहले से उन्होंने कांग्रेस मुक्त भारत बनाने की बात शुरू की थी। क्या ऐसे ही उनका नया भारत बन रहा है और ऐसे ही देश कांग्रेस मुक्त हो रहा है? बाद में उन्होंने कहना शुरू किया था कि वे कांग्रेस संस्कृति से देश को मुक्त करना चाहते हैं। पर दुखद बात यह है कि उन्होंने कांग्रेस की संस्कृति को पूरी तरह से अपना लिया है।

जिस तरह कांग्रेस अपने अच्छे दिनों में विपक्ष को कुछ नहीं समझती थी, विपक्षी नेताओं का मजाक उड़ाती थी, राजनीतिक नैतिकता और संवैधानिक व्यवस्था को ठेंगे पर रख कर पार्टियों में तोड़फोड़ कराती थी और सरकारें गिराती थी, राजनीति में धनबल और बाहुबल को बढ़ावा देती थी, वहीं काम नरेंद्र मोदी की भाजपा भी कर रही है। तो ऐसे कैसे नया भारत बनेगा? यह तो उलटा हो रहा है। पुराने भारत की जिन खामियों की नरेंद्र मोदी आलोचना करते थे उन्हें ही अपनी राजनीति का हिस्सा बनाते जा रहे हैं!

भाजपा में बदलाव की यह प्रक्रिया थोड़े समय पहले शुरू हुई थी। तभी राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के विचारक गोविंदाचार्य ने भाजपा को भगवा कांग्रेस कहा था। पर नरेंद्र मोदी और अमित शाह से पहले इसकी रफ्तार धीमी थी। अब इसकी रफ्तार बहुत तेज हो गई है। इसने तेजी से कांग्रेस के सारे मूल्यों, सिद्धांतों और उसकी संस्कृति को आत्मसात करना शुरू कर दिया है। बड़ी तेजी से भाजपा कांग्रेस में बदल रही है। अभी भले भाजपा को इसका लाभ दिख रहा हो पर लंबे समय में इसका नुकसान होगा। कांग्रेस ने भी विपक्ष को कमजोर करना भरपूर प्रयास किया था। उसे भी वक्ती तौर पर सफलता मिल गई थी पर लंबे समय में कांग्रेस का जो नुकसान हुआ वह उसकी आज की स्थिति में दिख रहा है।

भाजपा को कांग्रेस के इतिहास से सबक लेना चाहिए। यह भी समझना चाहिए कि भारत में लोकतंत्र की जड़ें बहुत गहरी हैं और लोग भले हर चीज पर प्रतिक्रिया नहीं देते हों पर समय आने पर उन्होंने बहुत सावधानी से अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का इस्तेमाल किया है। भाजपा को आज जो जीत मिल रही है वह कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों के नेताओं से लोगों की नाराजगी की वजह से है। पर जब भाजपा भी उन्हीं पार्टियों की तरह हो जाएगी तो लोग उसका भी विकल्प खोजेंगे। और उसमें भी बहुत समय नहीं लगेगा।

अजित द्विवेदी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं…

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