मध्यप्रदेश की राजनीति का दंगल अब तक सर्वोच्च न्यायालय के अखाड़े में खेला जा रहा था। अदालत भी दंगल का मजा ले रही थी। कांग्रेस और भाजपा, अध्यक्ष और राज्यपाल तथा कमलनाथ और शिवराज सिंह चौहान अदालत के सामने द्रौपदी का चीर खींचे चले जा रहे थे। जिस प्रश्न को पांच मिनिट में हल किया जा सकता था, उसे खींचकर घंटों और दिनों का मामला बनाया जा रहा था।
दोनों पार्टियों और अन्य पार्टियों के विधायकों को न तो राज्यपाल, न अध्यक्ष और न ही अदालत के आगे परेड करने की जरुरत है। वे सब विधानसभा के सदन में क्यों नहीं जाते ? वहां जाकर शक्ति-परीक्षण क्यों नहीं करते? राज्यपाल, अदालत, अध्यक्ष कुछ भी कहें, अंतिम फैसला तो सदन में ही होगा। कांग्रेस चाहती रही है कि सदन के शक्ति-परीक्षण को टाला जाए लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने अभी-अभी फैसला दिया है कि कल ही शक्ति-परीक्षण करवाया जाए। अदालत ने राज्यपाल की मांग पर मुहर लगा दी है। कांग्रेस की बहानेबाजी पर पर्दा पड़ गया है। अब रातों-रात कांग्रेस क्या करेगी ? क्या उसके पास इतने पैसों का इंतजाम है कि वह 16 विधायकों को पल्टा खिला सके ?उसका आरोप है कि भाजपा ने कांग्रेसी विधायकों को मोटा पैसा खिलाया है। यदि ये विधायक पैसे खाकर पल्टी खानेवाले होते तो वे आज भी कांग्रेस की तिजौरी खाली करवा देते और उसे इसी भ्रम में जीने के लिए मजबूर कर देते कि वे नेताओं के अहंकार के कारण नहीं, पैसों के कारण भाजपा के साथ गए हैं।
मध्यप्रदेश ने कांग्रेस के नेताओं को बड़ा गहरा सबक सिखाया है लेकिन वे सीखने को तैयार हों तब ना ! कमलनाथ ने सवा साल तक मप्र की सरकार काफी अच्छी चलाने की कोशिश की लेकिन अगर वे स्वयं पहल करके इस्तीफा देते तो उनकी छवि एक त्यागी राजनेता की बनती, जिसका फायदा उन्हें व कांग्रेस को बड़े पैमाने पर मिलता। मैं तो अब कहता हूं कि अभी भी मौका है। चौधरी चरणसिंह जैसे शक्ति-परीक्षण के लिए लोकसभा में जाने की बजाय राष्ट्रपति भवन जाकर अपना इस्तीफा सौंप आए, ऐसे ही कमलनाथ भी करें। उन्हें पता है कि शक्ति-परीक्षण में क्या होना है ?
डा.वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)