वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बड़ी कंपनियों पर टैक्स घटाने की घोषणा करके रुपए और सरकार की छवि, दोनों को बढ़त दिला दी है। नोटबंदी और जीएसटी ने भारत की अर्थ-व्यवस्था को पहले से हिलाकर रखा हुआ था। फिर इस साल के बजट ने कोढ़ में खाज का काम किया। देश का सकल उत्पाद 5 प्रतिशत तक नीचे चला गया। लाखों लोग बेरोजगार होते चले जा रहे हैं। बड़े-बड़े उद्योग-धंधे अपनी आखिरी सांसें गिनने लगे हैं।
यह माना जाने लगा कि सरकार की अनगढ़ टैक्स-व्यवस्था के कारण विदेशी पूंजी भी भारत आने से ठिठकने लगी है। डालर के मुकाबले हमारा रुपया पोला होता चला जा रहा है। यह ठीक है कि बालाकोट हमले और कश्मीर के पूर्ण विलय के कारण मोदी सरकार की छवि में चार चांद लग गए हैं और विदेशों में भी भारत का डंका खूब बज रहा है लेकिन अर्थ-व्यवस्था का हाल यही रहा तो सरकार की ये सब राजनीतिक उपलब्धियां दरी के नीचे सरक सकती हैं।
इसीलिए सरकार ने कंपनियों को 1.45 लाख करोड़ रु. की छूट देकर एतिहासिक कदम उठाया है। भारत की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए पिछले 28 दिन में यह पांचवीं पिचकारी छोड़ी गई है। कंपनियों पर 30 प्रतिशत से घटाकर टैक्स 22 प्रतिशत कर दिया गया है। नई कंपनियों पर अब 29.12 प्रतिशत टैक्स को घटाकर 17.01 प्रतिशत कर दिया गया है।
इससे सरकार की आमदनी जरुर घटेगी लेकिन लोगों की नौकरियां सुरक्षित रहेंगी। बेरोजगारी घटेगी। कंपनियों का मुनाफा बढ़ेगा तो चीजों के दाम घटेंगे। बिक्री बढ़ेगी। मुनाफा बढ़ेगा। टैक्स-क्षेत्र का विस्तार होगा। टैक्स का सरकारी घाटा घटेगा। बैंकों का पैसा वापस लौटने में कर्जदारों को आसानी होगी तो वे नए कर्ज देने में उदारता बरतेंगे। इससे व्यापार-उद्योग बढ़ेंगे। विदेशी कंपनियां भी भारत में पैसा लगाने के लिए प्रोत्साहित होंगी।
शेयर बाजार में आज जो उछाल आया है, वैसा दस साल में पहली कभी नहीं आया। डालर के मुकाबले रुपया मजबूत हुआ है और सोने-चांदी के दामों में गिरावट आई है। 28 साल में पहली बार टैक्स प्रणाली में इतना मौलिक सुधार हुआ है। यह भूल-सुधार अभी तो देखने में बहुत उत्तम लग रहा है लेकिन पहले से घाटे में चल रही सरकार का जो घाटा अब बढ़ रहा है, यदि किसी कारण उसकी भरपाई नहीं हुई तो सरकार की मुसीबतें काफी बढ़ सकती हैं।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है, ये उनके निजी विचार हैं