इंटरनेट पर थियेटर ही भारी

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आगे बढ़ती तकनीक के साथ मनोरंजन के रूप भी बदल रहे हैं। फिल्मकारों की कोशिश आज यही रहती है कि वे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी पहुंच बना सकें। नई तकनीक इसे संभव बना रही है। इंटरनेट के साथ ही ऐसी कई सेवाएं आई हैं, जो हमें लाइव खेल, फिल्में, वेब सीरीज आदि फोन और टीवी पर ही देखने का मौका देती हैं। हॉटस्टार, नेटफ्लिस, अमेजन प्राइम जैसे कई सारे ओवर-द-टॉप (ओटीटी) मीडिया स्ट्रीमिंग प्लैटफॉर्म आज घर-घर में मौजूद हैं, जिनकी लोकप्रियता दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। अधिकतर स्ट्रीमिंग सेवाएं केवल सब्सक्रिप्शन के साथ इस्तेमाल की जा सकती हैं, हालांकि कुछ ऐसी भी हैं जो विज्ञापनों के साथ मुफ्त मिलती हैं। बड़ी संख्या में लोग फिल्मों और संगीत के लिए भी स्ट्रीमिंग सब्सक्रिप्शन खरीद रहे हैं। केपीएमजी मीडिया और एंटरटेनमेंट रिपोर्ट 2018 के अनुसार भारत में ओटीटी का तंत्र 45 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ते हुए साल 2023 तक 138 अरब रुपये का हो जाएगा। अर्न्स्ट एंड यंग की रिपोर्ट के अनुसार देश में इस साल ओटीटी यूजर्स की संख्या 50 करोड़ हो जाएगी।

इस तरह भारत ओटीटी यूजर्स के मामले में अमेरिका के बाद विश्व में दूसरे नंबर का देश बन जाएगा। ऐसा माना जाने लगा है कि ऑनलाइन मीडिया स्ट्रीमिंग प्लैटफॉर्म्स के आने से हमारे सिनेमा के ऊपर वैसा ही खतरा मंडराने लग गया है, जैसा नब्बे के दशक में वीसीआर ने सिनेमा के सामने पैदा किया था। लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहानी कह रहे हैं। ऑनलाइन मीडिया स्ट्रीमिंग प्लैटफॉर्म्स के यूजर्स भले ही बढ़ रहे हों पर आज भी लोग सिनेमा हॉल में ही जाकर फिल्में देखना पसंद कर रहे हैं। देश के सबसे बड़े सिनेमा चेन पीवीआर की आय पिछले साल के मुकाबले मार्च 2019 में 32 प्रतिशत की दर से बढ़कर 3118.70 करोड़ रुपये हो गई। वहीं सिनेमा हॉल में आने वाले लोगों की संख्या भी 25 प्रतिशत बढ़ी है। सिनेमा हॉल परिसर में लोगों द्वारा खाने-पीने पर किए जाने वाले खर्च में भी 38 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हुई है, जिसका मुनाफा भी थियेटर को हुआ। इन आंकड़ों के आईने में माना जा सकता है कि देश में सिनेमा हॉल में टिकट खरीद कर फिल्म देखने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है, जबकि उनके पास ओटीटी का सस्ता और अच्छा विकल्प भी मौजूद है।

जाहिर है, स्ट्रीमिंग की सुविधा सिनेमा हॉल में फिल्मों के आकर्षण को कम नहीं करती है। कबीर सिंह और उरी जैसी फिल्मों की बीते साल बॉस ऑफिस पर क्रमश: 276 करोड़ रुपये और 244.01 करोड़ रुपये की कमाई यही बताती है। इनके अलावा मिशन मंगल, छिछोरे, द लायन किंग और ड्रीम गर्ल ने भी आश्चर्यजनक रूप से शानदार प्रदर्शन किया। आयुष्मान खुराना की सभी छोटे बजट वाली फिल्में जैसे आर्टिकल 15, बाला और ड्रीम गर्ल उम्मीदों से कहीं ज्यादा कमाई करने वाली निकलीं, जबकि बड़े बजट वाली ठग्स ऑफ हिन्दुस्तान जैसी फिल्में मुंह के बल गिरीं। आंकड़े बताते हैं कि देश का सिनेमा बदल रहा है और दर्शकों का सिनेमा देखने का नजरिया भी। फिल्म देखना देश में आज भी एक सामूहिक काम है और यही सामूहिकता सिनेमा की लोकप्रियता के लगातार बढऩे का कारण है। मोबाइल की स्क्रीन और बड़े एंड्रॉयड टीवी एक दर्शक को वह अनुभव नहीं दे सकते जो सिनेमा हॉल देता है। माना जाता है कि सिनेमा हॉल में दर्शक उसकी विषयवस्तु के साथ एक तरह का तादात्य स्थापित कर लेता है जबकि ओटीटी पर सिनेमा का अनुभव टुकड़ों में कटा हुआ सा मिलता है। सिनेमा देखने की आदत हमारे सामाजिक ताने-बाने का हिस्सा रही हैं। आज भी एक औसत भारतीय मध्यवर्गीय परिवार के लिए आउटिंग का मतलब घूमना-फिरना, सिनेमा देखना और खाकर-पीकर घर लौटना है।

संपन्न समाज के लिए लब और रेसकोर्स जैसी चीजें भी रही हैं लेकिन मध्यवर्गीय पारिवारिक मूल्यों में इनकी जगह नहीं बन सकी। मिडल लास के लिए घूमने-फिरने का मतलब ही है सिनेमा देखना। आज हर छह में से एक भारतीय हर हफ्ते एक फिल्म देखता है। सिनेमाघरों में ही कई रिश्तेदार और दोस्त भी मिल जाया करते हैं और हाल तक शादी के लिए लड़कियां भी सिनेमा परिसर में स्थित किसी रेस्त्रां में ही देखी जाती थीं। ये रुझान कम हुएं हैं, पर खत्म नहीं हुए हैं। वैसे रोचक बात यह है कि देश में मांग की तुलना में सिनेमा स्क्रीन की संख्या अब भी कम है। साल 2018 में चीन में 30,000 से ज्यादा सिनेमा स्क्रीन थे, जिसके बरस भारत में 10,000 स्क्रीन भी नहीं हो पाए थे। देश में प्रति दस लाख लोगों पर केवल आठ स्क्रीन हैं। थियेटर इंडस्ट्री हर साल 300 से 400 मल्टीप्लेस स्क्रीन जोड़ रही है। अप्रैल 2019 में आईनॉस ने अगले दो वर्षों में 850 स्क्रीन जोडऩे का लक्ष्य रखा है, जबकि अजय देवगन की कंपनी एनवाई सिनेमा का लक्ष्य अगले पांच साल में 250 स्क्रीन बढ़ाने का है।

मुकूल श्रीवास्तव
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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