अयोध्या मसले को बातचीत से सुलझाने के प्रयास

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गौरतलब है कि कोर्ट ने इससे पहले मध्यस्था के प्रस्ताव पर पक्षकारों की राय पूछी थी, जिसमें मुस्लिक पक्ष और निर्मोही अखाड़ा की ओर सहमति जताई गई थी। रामलला, महंत सुरेश दास और अखिल भारत हिन्दू महासभा ने प्रस्ताव से असहमति जताते हुए कोर्ट से ही जल्द फैसला सुनाने का आग्रह किया था। उनका तर्क था कि इस प्रकार के प्रयास पूर्व में भी हो चुके हैं, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।

आखिरकार इस बात का पटापेक्ष हो ही गया कि अयोध्या विवाद आम चुनाव से पहले नहीं सुलझेगा। पूर्व में चार बार बातचीत की नाकाम कोशिशों के बाद अब एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के तहत अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद मामसे को मध्यस्थ के जरिए बातचीत से सुलझाने का प्रयास होगा। सुप्रीम कोर्ट की संविधान के लिए तीन लोगों का पैनल गठित किया है। इस पैनल में श्री श्री रविशंकर, जस्टिस इब्राहिम खलीफुल्ला और श्रीराम पंचू मध्यस्था करेंगे। कोर्ट ने मध्यस्थता प्रक्रिया के दौरान मीडिया की रिपोर्टिंग पर भी रोक लगाई है। प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 6 मार्च 2019 को मामला मध्यस्थता को भेजे जाने के मुद्दे पर सभी पक्षों की बहस सुनकर अपना फैसला सुनाया। मध्यस्थता के लिए कुल 8 हफ्तों का वक्त निश्चित किया गया है। मध्यस्थता पीठ फैजाबाद में बैठेगी। राज्य सरकार, मध्यस्थता पीठ को सुविधाएं उपलब्ध करवाएगी। कोर्ट ने कहा है कि मध्यस्था शुरु होने में एक सप्ताह से अधिक का समय न लगे। साथ ही कोर्ट ने कहा है कि मध्यस्थता पैनल को 4 हफ्तों में मामले की रिपोर्ट देनी होगी।

गौरतलब है कि कोर्ट ने इससे पहले मध्यस्था के प्रस्ताव पर पक्षकारों की राय पूछी थी, जिसमें मुस्लिम पक्ष और निर्मोही अखाड़ा की ओर से सहमति जताई गई थी। रामलला, महंत सुरेश दास और अखिल भारत हिन्दू महासभा ने प्रस्ताव से असहमति जताते हुए कोर्ट से ही जल्द फैसला सुनाने का आग्रह किया था। उनका तर्क था कि इस प्रकार के प्रयास पूर्व में भी हो चुके हैं, लेकिन कोई नतीजा नहीं लिकला। गौरतलब है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में नतीजा नहीं निकला। गौरतलब है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 अपीलें दायर की गई हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को तीनों पक्षों-सुन्नी वक्फ वोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर? बराबर बांटने का आदेश दिया था। सूत्र बतातें है कि सुप्रीम कोर्ट के मध्यस्था के फैसले का यह मतलब नहीं निकाला जा सकता है कि अयोध्या विवाद की तारीख बढ़ गई है। दरअसल, जब तक सभी दस्तावेजों का अनुवाद नहीं हो जएगा, तब तक सुनवाई की उम्मीद नहीं की जा सकती है और अनुवाद में करीब दो माह का समय लग सकता है।

बहराल, बात पूर्व अयोध्या मामले को मध्यस्था के जरिए, सुलझाने की कोशिशों की कि जाए तो इसके लिए पहली कोशिश 90 के दशक में वीपी सिंह सरकार के समय में हुई थी। विवाद हल होता दिख भी रहा था। समझौते का ऑर्डिनेंस भी आ गया, लेकिन सियासत ने ऐसी करवट ली कि वीपी को अयोध्या विवाद को सुलझाने वाला ऑर्डिनेंस वापस लेना पड़ गया। दूसरी पहल चंन्द्रशेखर सरकार के दौरान हुई। मामला समाधान के करीब था लेकिन दुर्भाग्य था कि उनकी सरकार चली गई। नरसिम्हा राव की सरकार ने भी समझौते का प्रयास किया था, लेकिन फिर भी अंतिम हल तक नहीं पहुंचा जा सका। अटल बिहारी वाजपेयी ने 2003 में कांची पीठ के शंकराचार्य के जरिए भी अयोध्या विवाद सुलझाने की कोशिश की थी। तब दोनों पक्षों से मिलकर जयेन्द्र सरस्वती ने भी भरोसा दिलाया था, मसले का हल महीने भर में निकाल लिया जाएगा, लेकिन ऐसा तब भी कुछ नहीं हुआ।

व्यक्तिगत स्तर पर भी अयोध्या मामले की कई बार समझौते की पहल की जा चुकी हैं। आर्ट ऑफ लिविंग के श्री श्री रविशंकर ने पिछले दिनों हिन्दू? मुस्लिम दोनों पक्षकारों से मिलकर मध्यस्थता की कोशिश की, लेकिन बात बनी नहीं। इस बार सुप्रीम कोर्ट द्वारा तक किए गये मध्यस्थों में श्री श्री रविशंकर का नाम शामिल है। अयोध्या में बाबरी मस्जिद? राममंदिर विवाद को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन मध्यस्थों के नाम तक किए हैं। इन नामों में सुप्रीम कोर्ट ने तीन मध्यस्थों के नाम तय किए हैं। इन नामों में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस फकीर मुहम्मद इब्राहिम खलीफुल्ला, आर्ट ऑफ लिविंग के प्रमुख श्री श्री रविशंकर और सीनियर अधिवक्ता श्रीराम पंचू शामिल हैं। तीन सदस्यों के इस पैनल के सामने दोनों पक्षकार अपनी बात रखेंगे और ये मध्यस्था फैजाबाद में होगी।

       अजय कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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