अपने ही ले डूबेंगे साध्वी को

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आलाकमान ने नरेन्द्र सिंह तोमर को उनके अपने क्षेत्र से टिकट देकर और शिवराज को प्रज्ञा को विजय श्री दिलवाने की जिम्मेदारी देकर पार्टी में अन्तर्विरोध टालने की कोशिश की, किन्तु आलाकमान यह भूल गया कि नेताओं की मूल ताकत उसके कार्यकर्ता होते है और आज की रणनीति में नेताओं का दोहरा चलन किसी से भी छुपा नहीं है।

क्या मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेताओं को पार्टी आलाकमान की भोपाली रणनीति का पता नहीं था? क्या आलाकमान ने दिग्गजों को अंधेरे में रखकर साध्वी प्रज्ञा को भोपाल से दिग्विजय सिंह के सामने मैदान में उतारा? क्या प्रज्ञा को टिकट देने से पहले शिवराज, नरेन्द्र सिंह तोमर व उमा भारती का नाम चलाना भी आलाकमान की चुनावी रणनीति का एक अंग था? ऐसे कई सलाव है जो भाजपा में खलबली मचाए हुए है, यद्यपि आलाकमान ने नरेन्द्र सिंह तोमर को उनके अपने क्षेत्र से टिकट देकर और शिवराज को प्रज्ञा को विजय श्री दिलवाने की जिम्मेदारी देकर पार्टी में अन्तर्विरोध टालने की कोशिश की, किन्तु आलाकमान यह भूल गया कि नेताओं की मूल ताकत उसके कार्यकर्ता होते है और आज की रणनीति में नेताओं का दोहरा चलन किसी से भी छुपा नहीं है, इसिलिए नेता तो ठीक पज्ञा के साथ खड़े होने का दिखावा कर रहे है, किन्तु उनके कार्यकर्ता कहां व किसके लिए काम कर रहे है? यह किसी से भी छूपा नहीं है। शिवराज जी को मलाल इस बात का है कि मुख्यमंत्री रहते हुए दो बार आतंकी करार देते हुए जिस साध्वी महिला को उन्होंने गिरफ्तार करवाकर जेल भेजा था, आज उसी के चुनाव प्रचार के लिए मुखिया पद के दायित्व का निर्वहन करना पड़ रहा है।

सबसे बड़ी विड़म्बना यह है कि उमा जी ने एक दशक से राजगद्दी पर बैठे जिस कथित भाई से उसका सिंहासन छीना था, आज वही भाई भोपाल में साध्वी प्रज्ञा के सामने है और आलाकमान उमा जी से अपेक्षा कर रहा है कि वह अपनी उसी भूमिका को दोहराएं, जबकि उमा भारती किसी भी स्थिति में इसके लिए तैयार नहीं है। आलाकमान ने नरेन्द्र सिंह तोमव व शिवराज जी को तो जिम्मेदारियां सौप दी और उमा भारती को सिर्फ एक प्रचारक रखा, इससे खिन्न होकर पहले तो उमा भारती ने अगले कुछ सालों के लिए सक्रिय राजनीति से मुक्त होकर गंगाजी की परिक्रमा करने की घोषणा की और बाद में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के खिलाफ व्यंगात्मक भाषा बोलनी शुरु कर दी, उमा ने व्यंग में कहा ‘प्रज्ञा जी तो महामण्डेलेश्वर है और मैं साधारण साध्वी। मेरी उनके साथ तुलना कैसे की जा सकती है?’ जबकि प्रज्ञा जी ने भोपाल आकर कहा था “एक साध्वी ने दिग्विजय की एक दशक की गद्दी छीनी थी, अब दूसरी साध्वी उनका राजनीतिक अस्तित्व खत्म कर देगी।”

अब उमा जी को प्रज्ञा को भोपाल से टिकट देना क्यों अखर रहा है, यह तो वे स्वयं जाने क्योंकि आलाकमान का कहना है कि प्रज्ञा से पहले उमा जी को ही ‘ऑफर’ दिया गया था, किन्तु शायद उमा जी को इस बात का शायद अफसोस है कि एक चर्चित साध्वी को टिकट देकर आलाकमान ने पार्टी के हित में ठीक नहीं किया। यहां यह भी उल्लेखित है कि उमा जी ने 2004 में दक्षिण भारत में तिरंगा फहराने के अरोप में कोर्ट से नोटिस मिलने पर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था जब कि साध्वी प्रज्ञा आतंकी गतिविधियों के आरोप में नौ साल जेल में रहने क बाद दिग्विजय के मुकाबले के लिए भोपाल भेजी गई है, प्रज्ञा और दिग्जिवज के मुकाबले के बीच दुश्मनी तभी से है जब प्रज्ञा को गतिविधियों को दृष्टिगत रखकर दिग्विजय ने ‘हिन्दू आतंकवाद’ का नारा दिया था, और इसी दुश्मनी के चलते भाजपा आलाकमान ने साध्वी प्रज्ञा को दिग्विजय के मुकाबले के लिए भोपाल भेजा। अब इन सब राजनीतिक परिदृष्यों को देखते हुए भाजपा के अन्तर्विरोध को वैसे ही कल्पना की जा सकती है, साथ ही भाजपा नेताओं व पूर्व विधायकों के दल बदल का श्रोत भी और तेजी से बहने लगा है।

रवीन्द्र कुमार
लेखक पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार है

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