एक लोक कथा के अनुसार पुराने समय में किसी गांव में एक विद्वान संत रहते थे। क्षेत्र के लोग उनका बहुत सम्मान करते थे। भक्त उन्हें दान में धन के साथ ही सुख-सुविधा का सामान भी देते थे। गांव के एक चोर ने सोचा कि संत के पास चोरी के लिए बहुत कुछ है। एक दिन चोर रात में उनके आश्रम में पहुंच गया। उस समय संत सो रहे थे। चोर संत के कमरे से कीमती सामान चुराने लगाए तभी संत की नींद खुल गई और उन्होंने देखा कि कोई व्यक्ति उनका सामान चुरा रहा है। वे चुपचाप लेटे रहे और देखते रहे। चोर को लग रहा था कि उसे कोई देख नहीं रहा है। उसने पूरे कमरे का सामान एक जगह रखा और बड़े कपड़े में बांधकर गठरी बना ली। गठरी का वजन ज्यादा हो गया था। इस वजह से वह गठरी उठा नहीं पा रहा था। तब संत ने कहा कि भाई ये सब सामान मेरे किसी काम का नहीं हैए तू डर मतए आराम से ये सामान ले जा। मैं गठरी उठाने में तेरी मदद कर देता हूं।
ये सुनकर चोर हैरान हो गयाए लेकिन वह कुछ बोला नहीं। वहीं खड़ा रहा। संत उठे और उन्होंने गठरी उठाने में चोर की मदद की। चोर सारा सामान लेकर अपने घर पहुंचा और पूरी बात अपनी पत्नी को बता दी। पत्नी ने उससे कहा कि आपने ये या अनर्थ कर दिया। एक भोले-भाले संत के यहां चोरी की। ये तो महापाप हो गया है। आप अभी जाकर ये सारा संत को वापस देकर आओ। पत्नी की बातें सुनकर चोर को भी पछतावा हुआ। वह तुरंत ही आश्रम गया और सारा सामान संत को लौटा दिया और क्षमा याचना की। संत ने उसे क्षमा कर दिया। इसके बाद उस व्यक्ति ने चोरी न करने का संकल्प ले लिया और वहीं आश्रम में रहकर सेवा करने लगा। संत की अच्छे आचरण की वजह से एक चोर का हृदय परिवर्तन हो गया। कथा की सीख हमारे अच्छे आचरण की वजह से बुरे लोगों का हृदय परिवर्तन हो सकता है। इसीलिए हमें अपने आचरण को धर्म के अनुकूल बनाए रखना चाहिए।