भाजपा के बुजुर्ग नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी ने अपने ब्लॉग में अपना मुंह खोलने की कोशिश की है। जब मोदी-राज शुरु हुआ था तब उन्होंने थोड़ी हिम्मत की थी और कहा था कि भारत में आपात्काल जैसे हालात बन रहे हैं लेकिन पिछले चार-पांच वर्षों में उन्होंने अपनी हालत इतनी दयनीय बना ली थी कि गांधीनगर से उनका टिकिट कट गया और वे टुकर-टुकर देखते रह गए। डॉ. मुरलीमनोहर जोशी ने तो फिर भी हिम्मत दिखाई लेकिन इन दोनों वरिष्ठ और सुयोग्य नेताओं के मरियल रवैए ने यह सिद्ध किया कि इन दोनों में बर्दाश्त करने की असीम शक्ति है।
कई समारोहों में टीवी चैनलों पर करोड़ों दर्शकों ने देखा कि नरेंद्र मोदी ने इन दोनों की कितनी उपेक्षा की लेकिन ये हाथ जोड़े खड़े रहे। इनमें से किसी की हिम्मत नहीं हुई कि वे मार्गदर्शक मंडल की बैठक की मांग करते। मोदी ने इन दोनों नेताओं को ‘मार्गदर्शक मंडल’ में बिठाकर ‘डीप फ्रीज’ में डाल दिया। मोदी ने जैसे पांच साल में एक भी पत्रकार-परिषद नहीं की, वैसे ही मार्गदर्शक मंडल ने एक भी बैठक नहीं की।
मार्गदर्शक मंडल के ये सदस्य सिर्फ मार्ग देखते रह गए। उन्हें मार्ग दिखाने का अवसर ही नहीं मिला। डॉ. जोशी ने एक संसदीय कमेटी के अध्यक्ष के तौर पर सरकार की खाट खड़ी करने की कोशिश जरुर की लेकिन उन्होंने मार्गदर्शक मंडल की बेइज्जती को मुद्दा क्यों नहीं बनाया? उनका टिकिट भी कट गया। लेकिन मोदी की चतुराई या चालाकी भी बेजोड़ है।
आडवाणीजी की टिप्पणी पर मोदी की प्रतिक्रिया ऐसी है कि जो कान काट लेती है। यदि आडवाणी यह कहते हैं कि जो हमसे असहमत हैं, उन्हें हम राष्ट्रविरोधी नहीं मानते। हमारा राष्ट्रवाद विचारों की आजादी में विश्वास करता है। जो हमसे सहमत नहीं, वे हमारे विरोधी जरुर हो सकते हैं लेकिन वे हमारे दुश्मन नहीं हैं। देश और पार्टी दोनों में लोकतंत्र होना चाहिए। हमारे लिए पहले राष्ट्र है, फिर पार्टी और फिर स्वयं!
आडवाणीजी ने यह बयान भाजपा के स्थापना दिवस के अवसर पर दिया है। जाहिर है कि उन्होंने बिना नाम लिए मोदी और जेटली की खिंचाई की है लेकिन मोदी ने भी बड़ा चालाकी भरा जवाब दिया है। मोदी ने आडवाणीजी को महान बताते हुए कहा है कि मैं उनके बताए हुए रास्ते पर ही चल रहा हूं। पहले देश, फिर पार्टी और फिर मैं ! वास्तव में भाजपा और संघ के किसी भी जिम्मेदार नेता से आप पूछें तो वह यही कहेगा कि आडवाणीजी का कथन आज शीर्षासन की मुद्रा में है। याने पहले मैं, फिर पार्टी और फिर देश !
डॉ. वेद प्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं