मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार का बचना अब असंभव-सा लग रहा है। कुछ अन्य छोटी-मोटी पार्टियों और निर्दलीय विधायकों की मदद से चल रही यह कांग्रेस सरकार यों भी तलवार की धार पर चल रही थी लेकिन मप्र की भाजपा के शीर्ष नेताओं ने उसे गिराने की साजिश नहीं की। वे उसे बर्दाश्त किए जा रहे थे लेकिन वह अब अपने ही बोझ तले दबकर धराशायी हो रही है। भोपाल में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिर रही है तो उसके लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार है, भाजपा नहीं। यहां मुख्य प्रश्न यह है कि कांग्रेसी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बगावत क्यों की ? यदि वे अपने गुट के विधायकों समेत भाजपा में नहीं जाते तो शायद कांग्रेस सरकार चलती रह सकती थी, क्योंकि कमलनाथ सरकार काफी लोक-लुभावन कदम उठा रही थी और अपनी गलत पहलों को वापस लेने का साहस भी दिखा रही थी लेकिन कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को जो बीमारी पोला कर रही है, उसने मप्र में भी डेरा जमा लिया था।
सिंधिया की उपेक्षा प्रांतीय नेतृत्व तो कर ही रहा था, केंद्रीय नेतृत्व ने भी कोई कमी नहीं छोड़ी है। यह ठीक है कि सिंधिया लोकसभा का चुनाव हार गए थे लेकिन फिर भी वे वजनदार युवा नेता रहे हैं। उनके पिता और उनकी दादी का भी काफी प्रभाव रहा है। उनके अहंकार को चोट लगनी स्वाभाविक थी। यदि उनका उचित सम्मान किया जाता तो कांग्रेस को यह दिन नहीं देखना पड़ता। अब वे उस भाजपा में आ गए हैं, जो उनकी दादी राजमाता विजयराजे सिंधिया की पार्टी थी। जाहिर है कि यह भाजपा की अखिल भारतीय उपलब्धि मानी जाएगी। ज्योतिरादित्य भाजपा में आ तो गए हैं लेकिन उन्हें अब अपने स्वभाव को ऐसा बनाना पड़ेगा, जिससे उनका भाजपा के साथ सही ताल-मेल बैठ सके।
उनकी दादीजी से मेरा बहुत ही आत्मीय संबंध रहा है। वे विलक्षण महिला थीं। ज्योति को राजमाताजी के व्यवहार और आचरण की कला को आत्मसात करना होगा। राजमाताजी इतनी सहज और विनम्र थीं कि विरोधी दलों के नेता भी उनका हृदय से सम्मान करते थे। ज्योतिरादित्य का कांग्रेस से पिंड छुड़ाना उनके लिए आगे जाकर बहुत फायदेमंद सिद्ध हो सकता है। माधवरावजी और ज्योति, दोनों अपने आपको महाराजा तो समझते रहे लेकिन मैं दोनों से कहा करता था कि आपको अपने से कम योग्य लोगों के मातहत बनकर रहना पड़ रहा है। इससे अब वे मुक्त हुए। अब उनके लिए देश के सभी पदों के द्वार खुल गए हैं।
डा.वेदप्रताप वैदिक
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं )