जुलाई में बने या अगस्त में, क्या फर्क पड़ता है। यदि आज के नंबर एक अमेरिका में दस लाख लोगों के पीछे 69,737 टेस्ट कराने काउसका जो आंकड़ा है उसके आधे टेस्ट भी याकि भारत35 हजार टेस्ट प्रति दस लाख पर आज से करवाने लगे तो भारत दस-पंद्रह दिनों में दुनिया का नंबर एक होगा। इन पंक्तियों के लिखने तक का भारत का टेस्टीग आंकड़ा सिर्फ 3,889 टेस्ट का है।
उस नाते कम टेस्ट पर ही भारत जब चौथे नंबर पर पहुंच गया है तो यदि पूरे भारत में अपने से ऊपर के अमेरिका, रूस, ब्राजिल जैसी टेस्टींग होने लगे तो भारत में दिन में रोजाना एक लाख संक्रमित मरीजों का आंकड़ा निकलेगा और जून खत्म होने से पहले ही भारत नंबर एक होगा। मैंने गपशप के इस कॉलम में और ‘ अपन तो कहेगे’ कॉलम में मार्च-अप्रैल में लिखा था कि जून में भारत में वायरस का प्रारंभ होगा। दिल्ली दुनिया की अछूत राजधानी बनेगी।
अब वह होता दिख रहा है। जून के बारह दिनों में ही भारत नंबर चार पर पहुंच गया है। वायरस पूरे भारत में सर्वत्र फैल चुका है। वह आबादी के कितने प्रतिशत में फैला है और आने वाले महिनों में कितनी तेजी से फैलेगा इसका हिसाब लगाना बेमानी है क्योंकि केंद्र की मोदी सरकार और राज्य सरकारों ने पूरे भारत को, 138 करोड़ लोगों की जान को भगवान भरोसे छोड़ दिया है। उस नाते भारत में पीक लगातार महिनों , दिशंबर या अगले साल जून में तब तक चलेगा जब तक वैक्सीन भारत में पचास फिसदी आबादी को लग नही जाए। भारत कई महिने, शायद दो-तीन साल कोरोना वायरस में नंबर एक पर बना रहे तो आश्चर्य नहीं होगा। उसके साथ पूरा दक्षिण एसिया याकि पाकिस्तान, बांग्लादेश भी चलेंगे।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बहुत सही बात कही थी कि यदि भारत, चीनज्यादा टेस्ट कराए तो भारत आज दुनिया में नंबर एक हो जाए। ध्यान रहे अमेरिका अभी नंबर एक पर है लेकिन उसके यहां पीक आकर गुजर गया है। यदिवहा दूसरी लहर आती है तो वह सर्दियों में आएगी, तब तक अमेरिका अपने को उसके लिए तैयार कर लेगा।
अमेरिका के बाद ब्राजील और रूस हैं। रूस 12 करोड़ की आबादी वाला देश है। उसके यहां डेढ़ करोड़ कोरोना टेस्ट हो चुके है, तब जाकर उसके यहां संक्रमितों का आंकड़ा पांच लाख के ऊपर गया है। उसमें भी उसके यहां ठीक होने की दर बहुत ऊंची और मृत्यु दर बहुत कम है। पांच लाख संक्रमितों में से अभी छह हजार के करीब लोगों की मौत हुई है। इसके उलट भारत में संक्रमितों की संख्या तीन लाख पहुंची है व आठ हजार से ज्यादा लोग मर चुके हैं। अपनी बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के दम पर रूस वायरस को काबू में कर लेगा। ब्राजील की हालत जरूरत बिगड़ेगी क्योंकि वहां के राष्ट्रपति ने सब कुछ खोल कर लोगों का जीवन दांव पर वैसे ही लगाया है, जैसे भारत में सरकार ने लगाया है।
कुल मिलाकर मामला सरकार की नियत और टेस्टींग का है। टेस्टिंग जितनी बढ़ेगी संक्रमितों की संख्या उतनी बढ़ेगी। दिल्ली में टेस्टिंग और संक्रमण का अनुपात 30 फीसदी का है। यानी जितने लोगों की टेस्टिंग हो रही है उनमे से करीब 30 फीसदी लोग संक्रमित निकल रहे हैं। सोचें, दिल्ली की आबादी दो करोड़ है। अगर दो करोड़ लोगों की जांच हो जाए और 30 फीसदी या 20 फीसदी भी संक्रमित निकले तो 40 लाख यानी तुरंत अमेरिका से दोगुनी हो जाएगी संक्रमितों की संख्या। गुजरात सरकार ने हाई कोर्ट में माना था कि टेस्टिंग हो जाए तो अहमदाबाद में 70 फीसदी लोग संक्रमित निकलेंगे, जिससे घबराहट फैल जाएगी। इसलिए कम टेस्ट किए जा रहे थे। इस पर अदालत की टिप्पणी थी कि इसका मतलब है कि सरकार कृत्रिम तरीके से संक्रमितों की संख्या कम दिखाने का प्रयास कर रही है। इसके बावजूद बात बन नहीं रही है।
सवाल है अगर टेस्टिंग इसी रफ्तार से चलती रही तब भारत कितने दिन में नंबर एक होगा, इसका प्रोजेक्शन वैज्ञानिक तरीके से बनाना होगा। जैसे दिल्ली सरकार ने आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के साथ मिल कर बनाया है। उसके मुताबिक 31 जुलाई तक दिल्ली में साढ़े पांच लाख संक्रमित होंगे। इसका मतलब है कि अगले डेढ़ महीने में दिल्ली में संक्रमितों की संख्या पांच गुना बढ़ेगी। लेकिन इस आधार पर राष्ट्रीय औसत का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। राष्ट्रीय स्तर पर बताया जा रहा है कि 17 दिन में मामले दोगुना हो रहे हैं। इस लिहाज से इस महीने के आखिरी हफ्ते में देश में छह लाख मरीज होंगे और सब कुछ ऐसा ही चलता रहा, जिसकी संभावना ज्यादा है तो 17 दिन में दोगुना होने के हिसाब से जुलाई के अंत में भारत में 24 लाख या उससे ज्यादा मामले होंगे। यानी जुलाई के अंत में या बड़ी हद अगस्त के पहले हफ्ते में भारत नंबर एक देश बनेगा। वह भी इतनी कम टेस्टिंग में।
हिसाब से यदि भारत की सरकारों में अक्ल बची है तो उन्हे तत्काल टेस्टिंग बढ़ानी चाहिए क्योंकि कोरोना वायरस से लड़ने का एकमात्र हथियार टेस्टिंग है। दुनिया के जिन देशों ने कोरोना वायरस पर काबू पाया है और कोरोना से मुक्त हुए हैं या मुक्त होने की ओर बढ़ रहे हैं उन्होंने ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग की है। टेस्टिंग बढ़ाने पर मामले बढ़ेंगे और पैनिक भी होगा पर इससे कोरोना को काबू करना आसान हो जाएगा।
अछूत राजधानी बनेगी दिल्ली: अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी टिप्पणी कर दी। संक्रमित मरीजों की देश की राजधानी में जैसी दुर्दशा दिख रही है वह चिंता में डालने वाली है। लोग अस्पतालों के सामने मरीज को लेकर खड़े हैं, मरीज को भरती करने के लिए गिड़गिड़ा रहे हैं और अस्पताल के सामने दम तोड़ दे रहे हैं। यह सिलसिला आगे बहुत बढ़ेगा। इसलिए क्योंकि बिना लक्षण के संक्रमित लोगों की टेस्टिंग या तो बंद की हुई है या नहीं के बराबर है। ऐसे में अचानक मरीजों का बढऩा और दो-चार घंटों में मौत के वाकिये होंगे ही। सोचे, इससे दुनिया में भारत और उसकी राजधानी की या छवि बनेगी? ऐसा किस्सा किसी और शहर को लेकर नहीं बन रहा है कि लोग मरीज को लेकर अस्पतालों के चकर काट रहे हैं। कोरोना के मरीजों की छोड़ें, दूसरी बीमारियों से ग्रस्त लोगों को भी अस्पतालों में भर्ती नहीं किया जा रहा है। गर्भवती महिलाओं को डिलीवरी के लिए अस्पताल में जगह नहीं मिल रही है और कहीं पुलिस की वैन में डिलीवरी हो रही है तो कहीं ऑटो में। सोचें, अभी दिल्ली में सिर्फ 33 हजार संक्रमित हैं और उनमें से भी खुद मुख्यमंत्री ने बताया है कि सिर्फ तीन हजार लोग अस्पतालो में भर्ती हैं। संक्रमितों में से 15 हजार ठीक हो गए हैं और बचे हुए 18 हजार में से 15 हजार को होम आइसोलेशन में रखा गया है। यानी सिर्फ तीन हजार मरीज अस्पतालों में हैं और इसके बावजूद अव्यवस्था के ऐसे हालात है। केजरीवाल बता रहे हैं कि 31 जुलाई तक साढ़े पांच लाख मामले होंगे और उस समय 80 हजार बेड्स की जरूरत होगी। चूंकि दिल्ली में बाहर से लोग भी आकर इलाज करा सकते हैं इसलिए बाहर के लोगों के लिए बेड्स की जरूरत होगी। केजरीवाल का आंकड़ा 50 फीसदी बाहरी लोगों का है।
इस लिहाज से डेढ़ लाख से ज्यादा बेड्स की जरूरत होगी। जिस राजधानी में तीन हजार मरीजों के लिए बेड्स उपलब्ध नहीं हो रहे हैं और लोग मारे मारे फिर रहे हैं तो डेढ़ लाख मरीजों के लिए बेड्स की जरूरत होगी तब दिल्ली की या स्थिति होगी, इसकी सिर्फ कल्पना की जा सकती है।दिल्ली में साढ़े पांच लाख मामले पहुंचने का परसेप्शन इस आधार पर बना है कि दिल्ली में सात हजार के करीब टेस्ट हो रहे हैं। इसमें भी पिछले दिनों गिरावट आई। पिछले हते टेस्ट 36 सौ के करीब हो गया था। दो करोड़ की आबादी में तीन से सात हजार के बीच टेस्ट होंगे तो संक्रमण है कि महीनों, सालों संक्रमण बढ़ता रहे। सोचें, तब देश की राजधानी का या होगा? दुनिया दिल्ली के बारे में या सोच रही होगी और कैसे दिल्ली से दूरी बना रही होगी? टेस्टिंग नहीं हो, मरीजों की संया बढ़े, अस्पतालों में जगह न मिले तो दुनिया से कौन भारत आकर काम करना चाहेगा? केंद्र और दिल्ली सरकार ने अनलॉक-एक के जरिए सारी चीजें खोल दी हैं। रेस्तरां खुल गए हैं, शॉपिंग मॉल्स खुल गए हैं और मंदिर-मस्जिद भी खुल गए हैं। सभी सरकारी और निजी दफ्तर खुल गए हैं। इसके बावजूद लोग नदारद हैं खास कर विदेशी लोग दिल्ली की सड़कों पर नहीं दिख रहे हैं। दिगी में दुनिया भर के राजनयिकों का अड्डा खान मार्केट है पर वहां उनकी उपस्थिति बिल्कुल नहीं है। खान मार्केट के अच्छे फूड ज्वाइंट्स बंद हो रहे हैं। इसके बावजूद सरकार अगर यह मान रही है कि कोरोना टर्निंग प्वाइंट है या कोरोना में अवसर है तो वह ऐतिहासिक भूल कर रही है। दुनिया के सम्य और विकसित देश कभी उन देशों की ओर रुख नहीं करेंगे, जहां संक्रमण का खतरा मौजूद होगा।भारत सरकार ने आर्थिकी बचाने की चिंता में सब कुछ खोल दिया है, जिसकी वजह से संक्रमण फैलने में तेजी आई और अस्पतालों पर अचानक बोझ बढ़ा। इसी वजह से अब ज्यादा जगहों पर संक्रमण पहुंच गया है।
जांच, इलाज का बदले प्रोटोकॉल: भारत में कोरोना वायरस की टेस्टिंग और इलाज दोनों को लेकर बहुत कंफ्यूजन है। केंद्र और राज्यों की एजेंसियों में तालमेल नहीं है और कोई साझा प्रोटोकॉल तय नहीं किया गया है। जो प्रोटोकॉल तय किया गया है वह कोरोना से लडऩे के लिए पर्याप्त नहीं है। जैसे दिल्ली में और कई जगह कहा जा रहा है कि जो असिम्प्टमैटिक यानी बिना लक्षण वाले मरीज हैं उनकी जांच नहीं होगी। पहले तो जिसमें लक्षण नहीं हैं वह मरीज है या नहीं इसका कैसे पता चलेगा, यहीं तय नहीं है। जब जांच होगी तभी तो पता चलेगा कि किसी को कोरोना वायरस का संक्रमण है या नहीं। ध्यान रहे चीन ने अपने तमाम अध्ययनों के आधार पर बताया है कि 44 फीसदी मरीज बिना लक्षण वाले सामने आ रहे हैं। भारत में 24 फीसदी से लेकर 70 फीसदी तक मरीजों के बिना लक्षण वाला बताया जा रहा है। यह तो वे लोग हैं, जो किसी न किसी संक्रमित के संपर्क में आए हैं और कांटैट ट्रेसिंग के दौरान उनकी जांच हुई है और पता चला कि उनमें लक्षण नहीं हैं पर वे कोरोना वायरस से संक्रमित हैं। पर जो कांटैट ट्रेसिंग के दायरे में नहीं आए उनमें भी तो लाखों लोग ऐसे हो सकते हैं, जिनमें कोई लक्षण नहीं दिख रहा हो और वे कोरोना से संक्रमित हों! ऐसे लोगों का पता लगाने का एकमात्र जरिया यह है कि रैंडम टेस्टिंग हो। सबसे अच्छा तरीका तो यह है कि सबकी जांच हो। सरकार अपना खजाना खोले, टेस्टिंग किट मंगाए, मशीनें लगवाए और सबकी जांच कराए। या कम से कम यह व्यवस्था करे कि जो भी चाहे वह अपनी जांच करा सके। पर सरकारें ऐसा भी नहीं कर रही हैं।
कई राज्यों में तय किया गया था कि अगर किसी को लगता है कि वह संक्रमित है या संक्रमित होने की संभावना है तो वह जांच करा सकता है। पर बाद में इस प्रोटोकॉल को भी बदल दिया गया और कहा गया कि जब तक डॉक्टर लिख कर नहीं देगा, तब तक जांच नहीं होगी। डॉटर से लिखवाना और जांच कराना अपने आप में बहुत कष्टप्रद काम हो गया है। सरकार को यह नियम बदलना चाहिए और सबके लिए जांच फ्री करनी चाहिए। किसी भी किट्स से या किसी भी तकनीक से जितनी ज्यादा जांच होगी उतने ज्यादा मामले आएंगे और तब लोगों को बचाना ज्यादा आसान हो जाएगा। सरकारों को यह कंफ्यूजन दूर करना चाहिए औऱ इसमें एकरूपता लानी चाहिए। इसी तरह दवाओं के इस्तेमाल को लेकर भी कंफ्यूजन है। कहां हाइड्रोसीलोरोक्वीन का इस्तेमाल होना है और कहां रेम्डेसिवीर का इस्तेमाल होगा, यह भी तय कर देना चाहिए।
हरिशंकर व्यास
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)