सरकार का इकबाल ही कहां बचा है

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एक बार बहुत साल पहले मैं आतंकवाद की कवरेज करने पंजाब गया। वहां मुझे कुछ जानकारी लेने के लिए थाने भी जाना पड़ा। जब वहां पहुंचा तो पता चला कि थानेदार कहीं गया हुआ था व कुछ देर में आने वाला था। वहां ड्यूटी पर पहरेदारी कर रहे जवान पहरेदार ने मुझे बैठने का कहा और मैं थाने में ही बैठ कर ऊंघते हुए थानेदार का इंतजार करने लगा।

कुछ देर बाद एक जोर की आवाज सुन कर मेरी नींद खुली। मैंने देखा की थानेदार के जीप से उतरते ही जवान ने उसे सैल्यूट ठोकते हुए जमीन पर जोर से पैर मारने के साथ कहा कि ‘हुजूर का इकबाल बुलंद हो’। इसके बाद मैं थानेदार से मिला और हम लोग लंबी बातचीत करने लगे।

अपनी गपशप के दौरान मैंने थानेदार से जब जवान द्वारा हुजूर का इकबाल बुलंद हो कहे जाने के बारे में पूछा तो वह हंसते हुए कहने लगा कि यह परंपरा अंग्रेजों ने डाली थी जो कि आज तक चली आ रही है। उन दिनों हर जगह पुलिस नहीं होती थी व उन्हें भारतीयों के जरिए ही भारतीयों को नियंत्रित करना पड़ता था। एक खाकी कपड़े वाला चौकीदार महज अपने एक डंडे के सहारे पूरे गांव को नियंत्रण में रखता था।

उन दिनों भारतीय जवान अपने अंग्रेज अफसर के लिए यह शब्द कहते थे जो कि वास्तव में उन लोगों के लिए नहीं, बल्कि भारतीय जनता के लिए होते थे, जिससे पुलिस वाला यह विश्वास दिलाता था कि अंग्रेज का विश्वास (इकबाल) बुलंद है। मतलब यह कि उस पर भरोसा किया जा सकता है। मगर अब लगता है कि आजादी के बाद विशेष कर पिछले कुछ सालों से सरकार या अपने शासकों को लेकर लोगों का विश्वास ही खत्म हो गया है।

यह सब इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि सुबह अखबार में वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर का संसद में दिया गया यह बयान देखा कि सरकार दो हजार रुपए के नोट बंद नहीं करने जा रही है। वे दो हजार के नोटों को बंद होने की अटकलें खारिज कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि संसद में जो चिंता व्यक्त की जा रही है, मुझे लगता है कि आपको ऐसी चिंता नहीं करनी चाहिए। इससे पहले समाजवादी पार्टी के सांसद विश्वंभर प्रसाद निषाद से सवाल किया था कि क्या दो हजार रुपए के नोट बंद हो रहे हैं। और अब इनकी जगह एक हजार रुपए के नोट फिर से चालू किए जाएंगे।

ठाकुर ने नोटबंदी को देश की अर्थव्यवस्था के लिए लाभकारी फैसला बताते हुए कहा कि न केवल करंसी की संख्या बढ़ी, बल्कि इससे फेक करंसी पर रोक भी लगी। यह खबर पढ़ कर मुझे लगा कि जब कि संसद के उच्च सदन में एक सांसद ऐसी चिंता जता रहा हो तो आम आदमी का तो इसे लेकर चिंतित होना स्वाभाविक ही है। जब से मैं अपने फ्लैट में रहने आया हूं, सुबह शाम फ्लैट के अंदर ही टहल लेता हूं।

क्योंकि ऐसा करना बढ़ते प्रदूषण व अपराधों के कारण मैं सुरक्षित भी मानता हूं। अक्सर यहां रहने वाले तमाम बुजुर्ग लोग भी टहलते नजर आ जाते हैं। वे पत्रकार होने के नाते न केवल मेरा आदर करते हैं, बल्कि यह भी मानते हैं कि तमाम मामलों में मेरी जानकारी उनके सुनने में आई अफवाहों से बेहतर होगी।

पिछले कुछ दिनों में मुझे उनके तरह-तरह के सवालों का जवाब देना पड़ा। एक पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि मुंबई में यह खबर गर्म है कि सरकार अगला हाथ बैंकों के लॉकर पर डालेगी। रातों-रात देश भर के सभी बैंकों के लॉकर सील कर दिए जाएंगे व फिर आय कर के बाबुओं की देख-रेख में लॉकर खुलवाए जाएंगे। और उसमें रखे जेवरों का ब्योरा तैयार कर उनके मालिकों से जवाब मांगा जाएगा।

अब बताइए कि दशकों पहले जो जेवर मेरी शादी मे मेरी सास ने पत्नी को दिए थे व जो जेवर मेरी मां ने मुंह दिखाई में अपनी बहू को दिए मैं उसका रिकार्ड कहां से लाऊंगा। भारत में तो सोना एकत्र करना हर वर्ग की महिला की पहली पसंद रही हैं। आम आदमी की ऐसी-तैसी हो जाएगी व सरकारी बाबूओं की कमाई हो जाएगी।

वहीं कुछ लोग जानना चाहते हैं कि वे अपनी जिदंगी भर की कमाई, जिसमें प्रोविडेंट फंड व ग्रेच्यूटी की रकम भी शामिल है उसे कहा लगाएं। आए दिन बैंको का घाटा बढ़ रहा है। बैंक फेल हो रहे हैं। अचानक किसी बैंक द्वारा अपने ग्राहकों के पैसे की निकासी पर रोक लगाने और महीने में महज एक हजार रुपए निकालने की इजाजत देने की खबर आती हैं। बड़े व्यापारी सरकारी बैंकों का हजारों करोड़ रुपए लेकर फरार हो रहे हैं। आम आदमी क्या करे वह कहां जाए। कल तो स्टेट बैंक ऑफ इंडिया द्वारा अपना 11 हजार करोड़ रुपए का घाटा छुपा लेने की खबर आई हैं।

जब मैंने पिछली बार अपने ड्राइवर को दो हजार रुपए के नोट में तनख्वाह दी तो वह कहने लगा कि दो हजार रुपए के नोट बैंक से मत लिया करो। सब कह रहे हैं कि पता नहीं सरकार इन्हें कब बंद कर दे। जब अर्थशास्त्र की पढ़ाई कर रहा था तो पढ़ा था कि नोट पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर द्वारा दस्तख्त के साथ यह वादा किया जाता है कि मैं धारक को इतने रुपए अदा करने का वचन देता हूं। यह सरकर का इकबाल ही होता है, जिसे नोटबंदी के दौरान प्रधानमंत्री व सरकार ने खो दिया।

उन्होंने टेलीविजन चैनलों पर कहा कि पुराने नोट 31 मार्च तक बदले जा सकेंगे। फिर उन्होंने इन्हें 31 दिसंबर के बाद बदलना बंद कर दिया और आम आदमी खुद को ठगा महसूस करने लगा। अब तो लगने लगा है कि इस सरकार का इकबाल ही समाप्तु हो गया है। इस संबंध में एक जोक याद आता है बोइंग सरीखी विश्वविख्यात विमान कंपनी तक के लिए इंजन बनाने वाली रॉल्स रॉयस कंपनी कार भी बनाती है।

एक बार किसी भारतीय ने उसकी एक कार खरीदी। उसने कई दिनों तक कार चलाई व फिर एक दिन अचानक कार चलना बंद हो गई। उसने तुरंत कंपनी से संपर्क किया व कंपनी ने विशेष विमान से अपने एक इंजीनियर को भारत भेजा। उसने कार की खराबी देखने के लिए जब बोनट उठाया तो देखा कि उसमें इंजन था ही नहीं।

वह नई कार भेजने का वादा करके उस कार को साथ ले गया। उस कंपनी के भारतीय मालिक ने रॉल्स रॉयस कंपनी के मैनेजर को फोन करके पूछा कि तुम इंजन लगा रहे हो यह तो अच्छी बात है मगर एक बात मेरी समझ में यह नहीं आई कि बिना इंजन के कार दो दिन तक कैसे चल गई। उसने मुस्कुराते हुए कहा कि सर यहीं तो इकबाल व विश्वास का उदाहरण है वह तो अपनी साख पर इतना चल गई। मगर यहां तो इकबाल नाम की चीज ही नहीं बची है।

विवेक सक्सेना
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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